उत्परिवर्तन ( Mutation ) : परिभाषा, इतिहास, प्रकार, प्रजनन की विधि, प्रयोग

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उत्परिवर्तन ( Mutation )

 

परिभाषा ( Definition ) : किसी जीव के किसी लक्षण में आकस्मिक एवं वंशागत परिवर्तन को उत्परिवर्तन ( Mutation ) कहते हैं । उत्परिवर्तनों की उत्पति जीन की एवं प्लाज्मा जीन की संरचना में परिवर्तन के कारण होती है ।

 

उत्परिवर्तन का इतिहास ( History of Mutation ) : म्यूटेशन शब्द का सर्वप्रथम उपयोग ह्यूगो डि ब्रीज ( Hugo de Vries ) ने 1900 में किया । उन्होनें कई उत्परिवर्तनों का वर्णन किया परन्तु इनमें से अधिकांश उत्परिवर्ती संख्यात्मक क्रोमोसोम विपथनों के कारण पैदा हुए थे । परन्तु डि ब्रीज के समय के बहुत पहले ही उत्परिवर्तनों का उपयोग किया जा चुका था । सेट राइट ( Sett wright 1791 ) नामक एक अंग्रेज किसान ने एक छोटे पैरों वाली प्रभावी उत्परिवर्तन वाली भेड़ का उपयोग कर छोटे पैरो वाली ऐंकल नस्ल का विकास किया था । तत्पश्चात् मोर्गन ( Morgan ) ने 1910 में ड्रोसोफिला में सफेद आँख उत्परिवर्तनों की खोज की और इस लक्षण की वंशागति के आधार पर लिंग सहलग्नता की समुचित व्याख्या की ।

 

उत्परिवर्तन के प्रकार ( Types of Mutation ) –

1. स्वतः उत्परिवर्तन ( Spontaneous Mutation ) : जो उत्परिवर्तन बिना किसी उत्परिवर्तजन के उपचार ( treatment ) के उत्पन्न होते है , उन्हें स्वतः उत्परिवर्तन ( spontaneous mutation ) कहा जाता है । ये उत्परिवर्तन बहुत ही कम दर ( 10-7 से 10-4 प्रति जीन प्रति पीढ़ी ) पर उत्पन्न होते हैं । विभिन्न जीनों की स्वतः उत्परिवर्तन दर काफी भिन्न हो सकती हैं ।

2. प्रेरित उत्परिवर्तन ( Induced Mutation ) : जब उत्परिवर्तन किसी भौतिक या रासायनिक उत्परिवर्तजन से उपचार करने पर उत्पन्न होते हैं , तो उन्हें प्रेरित उत्परिवर्तन ( Induced Mutation ) कहते हैं । सामान्यतया प्रेरित उत्परिवर्तन ठीक उसी तरह के होते हैं , जैसे कि स्वतः उत्परिवर्तन होते है किन्तु प्रेरित उत्परिवर्तनों की दर स्वतः उत्परिवर्तनों की दर की कई गुना होती है ।

3. उत्परिवर्तन प्रेरण ( Induction of Mutation ) : कुछ भौतिक एवं रासायनिक कारकों द्वारा उपचार करने पर जीनों में उत्परिवर्तन होने को उत्परिवर्तन प्रेरण कहते हैं । उत्परिवर्तन प्रेरण में सक्षम कारकों को उत्परिवर्तजन ( Mutagen ) कहते हैं । इन कारकों के इस गुण को उत्परिवर्तनी गुण ( Mutagenic Character ) कहा जाता है ।

 

उत्परिवर्तजन ( Mutagens ) – जो भी कारक उत्परिवर्तन पैदा करते हैं उन्हें उत्परिवर्तजन कहा जाता । उत्परिवर्तजन मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं –

• भौतिक उत्परिवर्तजन ( Physical Mutagens ) : भौतिक उत्परिवर्तन विकिरण के द्वारा होता है । जैसे – X किरणें , गामा किरणें , पराबैंगनी किरणें इत्यादि ।

• रसायनिक उत्परिवर्तजन ( Chemical Mutagens ) : अनेक रसायनों में उत्परिवर्तनी गुण पाये जाते हैं । बहुत से उपयोग में लिये जा रहे कृषि रसायन जैसे कीटनाशक , कवक नाशक आदि भी उत्परिवर्तजनी होते हैं ।

 

उत्परिवर्तन प्रजनन ( Mutation Breeding ) – मुलर ( Muller ) द्वारा 1927 में एक्स किरणों की उत्परिवर्तनजनी प्रकृति की खोज के बाद उत्परिवर्तन प्रजनन के कार्यक्रम शुरू किये गए । उत्परिवर्तजनों ( Mutagens ) के उपयोग से किसी जीव में उत्परिवर्तन प्रेरण को उत्परिवर्तजनन कहते है । इस प्रकार के प्रेरित उत्परिवर्तजनों का पादप प्रजनन या फसल सुधार में उपयोग उत्परिवर्तन प्रजनन कहलाता है ।

 

उत्परिवर्तन प्रजनन की विधि ( Procedure of Mutation Breeding ) : प्रथम वर्ष में उत्परिवर्तजन से उपचारित बीजों को उचित दूरी पर बुवाई करते हैं । सभी पौधों में स्वपरागण व उनके बीजों को अलग – अलग एकत्रित करते हैं । दूसरे वर्ष में एकल पादप संततियाँ उगाते हैं । जिन संततियों में वांछित उत्परिवर्ती विकल्पी हो या होने की संभावना हो , उन पौधों के बीजों को अलग – अलग एकत्रित करते हैं । तीसरे वर्ष में एकल पादप संततियाँ उगाते हैं । उत्कृष्ट उत्परिवर्ती वंशक्रमों को अलग – अलग पुंज में काटते हैं । विसंयोजित हो रहे वंशक्रमों में उन्नत पौधों का चयन करते हैं । चौथे वर्ष में प्रारंभिक उपज परीक्षण करते हैं । उत्तम वंशक्रमों का चयन किया जाता है । पाँचवें से लेकर सातवें वर्ष तक समन्वित उपज परीक्षण करते हैं । सर्वोत्कृष्ट वंशक्रम का नई किस्म के रूप में विमोचन किया जाता है एवं नई किस्म के बीज का गुणन किया जाता है ।

उत्परिवर्तन प्रजनन की विधि ( Procedure of Mutation Breeding )

 

उत्परिवर्तन प्रजनन का प्रयोग ( Application of Mutation Breeding ) : उत्परिवर्तन प्रजनन द्वारा उपज सहित विभिन्न मात्रात्मक लक्षणों में सुधार किया गया है और इस विधि से कई किस्में भी विकसित की गयी हैं ।

 

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