कम्पोस्ट बनाने की विधि एवं प्रयोग
कम्पोस्ट (Compost) : कम्पोस्टिंग एक जैव – रासायनिक क्रिया जिसमें वायवीय तथा अवायवीय जीवाणु कार्बनिक पदार्थों को विघटित कर बारीक खाद बनाते हैं । यह पूर्ण सड़ा हुआ कार्बनिक पदार्थ की कम्पोस्ट कहलाता है ।
भारत में तैयार किया जाने वाला कम्पोस्ट इस प्रकार है –
1. फार्म अवशिष्टों से तैयार कम्पोस्ट (Farm waste compost) – इसमें खरपतवार , फसल अवशेष , पशुओं का बचा हुआ चारा , पेड़ – पौधों की पत्तियाँ आदि काम में लिये जाते हैं ।
2. शहर व कस्बों के अवशिष्ट से तैयार कम्पोस्ट (Compost prepared from waste of cities and towns) – यह शहर का मल , कूड़ा – करकट अन्य कार्बनिक कचरा आदि से तैयार किया जाता है ।
कम्पोस्ट बनाने की विधियाँ (Methods of making compost) –
1. इन्दौर विधि
2. बैंगलोर विधि
3. नेडेप विधि
1. इन्दौर विधि – यह विधि ए . होवार्ड तथा यशवन्त डी . वाड के द्वारा ” इन्स्टीट्यूट ऑफ प्लांट न्यूट्रीशन “ इन्दौर में वर्ष 1924 से 1931 के मध्य विकसित की गई । इस कारण इसको इन्दौर विधि कहते हैं । इस विधि में पशुओं के गोबर , फसलों व पौधों के अवशेष तथा अन्य अवशिष्टों का प्रयोग कर कम्पोस्ट तैयार की जाती है ।इस विधि में कम्पोस्ट वायवीय दशा में चार माह में तैयार हो जाती है ।
विधि – इन्दौर विधि से कम्पोस्ट बनाने की विधि इस प्रकार है –
1. गड्ढे का आकार (Pit size) – गड्ढे की लम्बाई 10 फीट या आवश्यकतानुसार बढ़ा सकते हैं । गड्ढे की चौड़ाई 6-8 फीट रखते हैं तथा गहराई 2-3 फीट रखते हैं । गड्ढे की गहराई 3 फीट से अधिक नहीं रखनी चाहिए । गड्ढा सदैव ढालू जगह पर बनाना चाहिए ।
2. कम्पोस्ट बनाने के लिये आवश्यक सामग्री (Ingredients needed to make compost) –
( अ ) पौधों व फसलों के अवशेष , खरपतवार , गन्ने की पत्तियाँ , लकड़ी की राख , धान की चूरी आदि मिश्रण ।
( ब ) पशुओं की गोबर बिछावन सहित ।
( स ) पशुओं के मूत्र से सोखी हुई मिट्टी भी कम्पोस्ट में काम में लेते हैं।
( द ) लकड़ी की राख , जो कम्पोस्ट की अम्लीयता कम करती है तथा पोटाश की मात्रा बढ़ाती है ।
3. गड्ढ़ा भरने की विधि (Pit filling method) – गड्ढे के प्रत्येक भाग में अपशिष्ट अलग – अलग परत में भरते है । पहली परत में पशुशाला से इकट्ठे किये गये कचरे की 3 इंच माटी परत रैक की सहायता से फैला देते हैं । अगर लकड़ी की राख उपलब्ध हो तो पशु मूत्र व कीचड़ के साथ उसके ऊपर फैला दें । उसके ऊपर 2 इंच मोटी गोबर की परत बिछाकर उसके ऊपर हल्की मिट्टी बिखेर देते हैं । पूरी सामग्री को गीला करने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी का छिड़काव करते हैं । इस प्रकार परत के बाद परत लगाते हुये गड्ढे को भरते है । गड्ढे को तब तक भरते रहें जब तक पूरी सामग्री की परत जमीन से एक फीट ऊपर तक न हो जाए । गड्ढे की लम्बाई के तीन – चौथाई भाग के भरने में 6-7 दिन से अधिक समय नहीं लगाना चाहिये तथा एक – चौथाई भाग को पलटने के लिए खाली रखना चाहिए । अन्त में बिछावन के साथ तथा पशु मूत्र की एक परत लगानी चाहिए । सुबह – सायं पानी का छिड़काव करें तथा इसे तीन बार दोहरायें । इस प्रकार कूड़े – करकट तथा गोबर द्वारा प्रचुर मात्रा में पानी सोख लिया जाता है तथा इसका प्रारम्भ हो जाता है , जिससे ढेर धीरे – धीरे सिकुड़ने लगता है । पूरे खाद को हफ्ते में एक बार पलट दें । पहली , दूसरी व तीसरी पलटाई के समय पानी से भली भाँति गीला करते रहें ।
4. कम्पोस्ट को पलटना (Turning the compost)- जीवाणुओं द्वारा विघटन के लिए यह आवश्यक है कि सम्पूर्ण सामग्री को भली – भाँति पलटकर मिला दिया जाए , ताकि वायु व नमी प्रचुर मात्रा में मिल सके । गड्ढों में सामग्री दबकर भूमि की सतह तक आ जायें तब गड्ढा भरने के 10-15 दिन बाद पूरा अपशिष्ट पलट दें । इस क्रिया में ऊपर का अपशिष्ट नीचे व नीचे का अपशिष्ट ऊपर आ जाता है । इसके बाद पानी का अच्छी प्रकार छिड़काव कर अपशिष्ट को नम कर लें । पहली पलटाई के बाद दूसरी पलटाई 15 दिन बाद करें तथा अन्तिम पलटाई दो माह बाद करें । तीन माह बाद अच्छी कम्पोस्ट तैयार हो जाती है ।
वर्षा ऋतु में इस पद्धति से कम्पोस्ट जमीन के ऊपर ढेर बनाकर भी तैयार की जा सकती है लेकिन ढेर की ऊँचाई 2 फीट से अधिक नहीं होनी चाहिए ।
2. बैंगलोर विधि – इस विधि का विकास सी.एन. आचार्य ने इण्डियन इन्सटीट्यूट ऑफ साइन्स , बैंगलोर में किया । यह एक अवायुवीय विधि है तथा इस विधि का प्रयोग शहरी क्षेत्रों में खाद बनाने के लिए किया जाता है । इस विधि की मुख्य विशेषता यह है कि इसके अन्तर्गत खाद की पलटाई नहीं की जाती है ।
इस विधि से खाद तैयार करने के लिए सर्वप्रथम खाइयाँ या टेंच तैयार की जाती है । टैचों का आकार शहर की आबादी पर निर्भर करता है । टेंच की तली में 8 ” से 10 ” मोटी अवशेष पदार्थों की एक तह बिछाई जाती है । इसके ऊपर मानव विष्टा की 2 ” मोटी तह बिछाते हैं । कचरा एवं विष्टा की एक तह के बाद दूसरी तह लगाते हुए भूतल से लगभग एक फुट ऊँचा कर लेते हैं । इसके बाद इसको 2.5 सेमी . मिट्टी की परत से ढक कर गोबर से लिपाई कर देते हैं । इस विधि में इन्दौर विधि की अपेक्षा श्रम की आवश्यकता कम होती है । इस विधि में पूर्ण विघटित खाद की मात्रा इन्दौर विधि से ज्यादा प्राप्त होती है ।
3. नेडेप विधि – यह विधि महाराष्ट्र के कृषक नाडेप काका द्वारा विकसित की गई । इस विधि में निम्न सामग्री काम में ली जाती है ।
( अ ) फार्म अवशेष , अपशिष्ट , कम्पोस्ट बनाने के लिये आवश्यक सामग्री- कपास व अरहर के डंठल , गन्ने की पत्तियाँ आदि करीब 1400-1500 किग्रा . ।
( ब ) पशुओं की गोबर – 90-100 किग्रा . ( 8-10 टोकरी ) ।
( स ) सूखी छनी मृदा- 1750 किग्रा . ( 120 टोकरी , पशुमूत्रयुक्त मिट्टी अधिक लाभकारी होती है ) ।
( द ) पानी मौसम अनुसार ( वर्षा में कम तथा शुष्क मौसम में प्रचुर मात्रा में 1500-2000 लीटर होती है ) ।
इस विधि में पशुओं के गोबर का कम प्रयोग किया जाता है । इस विधि में वायवीय प्रक्रिया द्वारा कार्बनिक पदार्थो का विघटन होता है तथा कम्पोस्ट तैयार होने में 90-120 दिन का समय लगता है । इस विधि से तैयार कम्पोस्ट में 0.5 – 1.5 प्रतिशत नाइट्रोजन , 0.5-0.9 प्रतिशत फॉस्फोरस व 1.2-1.4 प्रतिशत पोटाश होता है ।
नेडेप कम्पोस्ट टैंक – ईटें या पत्थर आदि से जमीन के ऊपर टैंक ( होदी ) तैयार की जाती है । टैंक का आकार आयताकार जिसके अन्दर की लम्बाई 10 फीट , चौड़ाई 6 फीट तथा ऊँचाई 9 फीट रखते हैं । टैंक की दीवार 9 इंच मोटी होनी चाहिए । ईंटों की जुड़ाई मिट्टी से करते है , सिर्फ टैंक की ऊपरी ईंटें सीमेन्ट से जोड़ते है जिससे टैंक गिरने का डर न रहें । हवा के आवागमन के लिए टैंक की चारों दीवारों में 7 इंच चौड़े छेद छोड़ने चाहिए । ईंट की दो परत के बाद तीसरी परत को जोड़ते समय प्रत्येक ईंट की जुड़ाई के बाद 7 इंच का छेद छोड़कर जुड़ाई करते हैं । इस प्रकार तीसरी , छठी तथा नवीं परत में छेद रखते हैं । यह छिद्र एकान्तर में छोड़े जाते हैं , एक के ऊपर दूसरा छिद्र न आये यह ध्यान रखना चाहिए । टैंक के अन्दर व बाहर की दीवारों और फर्श को टैंक भरने से पूर्व गोबर व मिट्टी के मिश्रण से भली प्रकार लीप देना चाहिए । टैंक सूखने के बाद ही प्रयोग में लायें ।
टैंक भरने की विधि – टैंक भरने से पूर्व गोबर के घोल का छिड़काव टैंक के नीचे तथा दीवारों के अन्दर कर लेना चाहिए । टैंक की भराई 48 घण्टों में पूर्ण कर लेनी चाहिए अन्यथा कम्पोस्ट बनने की प्रक्रिया में बाधा आती है ।
प्रथम परत ( वानस्पतिक पदार्थ ) – पहली 6 इन्च की परत फार्म के वानस्पतिक अवशेषों से भर देनी चाहिए , जो करीब 100 किग्रा होते हैं ।
दूसरी परत ( गोबर का घोल ) – गोबर या गोबर की लेही ( करीब 4-5 किग्रा . गोबर को 125-150 लीटर पानी में घोल ) का पहली परत पर एकसार छिड़काव करते हैं ।
तीसरी परत ( साफ सूखी छनी मिट्टी ) – इस परत में 50-60 किग्रा . ( 4-5 टोकरी ) साफ सूखी छनी मिट्टी की परत एकसार बिछा देते हैं तथा इसके ऊपर पानी का छिड़काव कर गीला कर लेते हैं ।
इस प्रकार के तीन क्रमों में टैंक में परत बनाते रहते हैं जब तक ढेर टैंक दीवारों से 1.5 फीट ऊपर तक न आ जाये । साधारणतया 11-12 तहों में टैंक भर जाता है । टैंक के ऊपरी भाग को झोपड़ीनुमा आकार देते हैं । टैंक भरने के बाद ढक देते है । तथा 3 इंच मोटी मिट्टी की परत ( करीब 300-400 किग्रा . मिट्टी ) की सहायता से अच्छी तरह बन्द कर देते हैं । इस बात का ध्यान रखें की टैंक के ढेर में दरार न पड़े क्योकि दरारों से गैस निकलती रहती है इसलिये इसके ऊपर पुनः लीपन करते रहें ।
दूसरी भराई – 15-20 दिन बाद कूड़ा – करकट दबकर नीचे बैठ जाता है तथा टैंक करीब 8-9 इंच तक खाली हो जाता है इसको उपरोक्त क्रमानुसार तीन परतों में भरकर गोबर व मिट्टी से लीप देना चाहिए । इस विधि से कम्पोस्ट तैयार होने में 3-4 माह का समय लगता है । कम्पोस्ट में 15-20 प्रतिशत नमी बनाये रखने के लिए गोबर व पानी के मिश्रण का छिड़काव करें , जिससे खाद में आवश्यक पोषक तत्व संरक्षित रह सकें ।
साधारणतया एक टैंक से 160-175 घन फीट कम्पोस्ट जिसका वजन 3 टन के करीब होता है , प्राप्त होता है ।
कम्पोस्ट प्रयोग विधि (Compost Application Method) – सिफारिशानुसार ( सामान्यता फसलों में 10-15 टन प्रति हेक्टेयर , सब्जियों में 20-25 टन प्रति हेक्टेयर ) कम्पोस्ट की मात्रा को बुआई के 3-4 सप्ताह पूर्व खेत में डालकर हल चलाकर मिट्टी में भली – भाँति मिला लेना चाहिए ।