कवक ( Fungi )
कवक ( Fungi ) : कवक यूकेरियोटिक , क्लोरोफिल रहित , बीजाणुधारी , एककोशिकीय या बहुकोशिकीय , शाखित , तन्तुमय सूक्ष्मजीव हैं , जिनकी कोशिका भित्ति काइटिन या सैलूलोज या दोनों की बनी होती है । सूक्ष्मजीव विज्ञान की वह शाखा जिसमें कवकों / मशरूम का अध्ययन किया जाता है , उसे कवकविज्ञान ( Mycology ) कहते हैं ।
पी.ए. माइकेली ( P.A. Micheli ) को माइकोलोजी का जनक ( Father of Mycology ) कहा जाता है ।
सामान्य लक्षण ( General characters ) :
( i ) आवास ( Habitat ) : सभी कवकों में पर्णहरित ( Chlorophyll ) का पूर्णतया अभाव होता है , अतः ये मृतोपजीवी ( Saprophyte ) , सहजीवी ( Symbionts ) , परजीवी ( Parasite ) अथवा परापरजीवी ( Hyperparasite ) के रूप में सर्वत्र पाये जाने वाले होते हैं ।
( ii ) थैलस ( Thallus ) : जड़ तना तथा पत्ती में अविभेदित संरचना को थैलस कहते हैं । कवक थैलस प्लाज्मोडियल ( Plasmodial ) , अमीबीय ( Amoeboid ) या आभासी प्लाज्मोडियल ( Pseudo plasmodial ) , एककोशिकीय या तन्तुमय ( Filamentous ) अर्थात कवकजालीय ( Mycelial ) होता है जो पटयुक्त या पटहीन होता है ।
( iii ) पोषण ( Nutrition ) : कवक परपोषित ( Heterotrophic ) एवं अवशोषी ( Absorptive ) होते हैं तथा इनमें अन्तःग्रहण ( Ingestion ) बहुत ही कम होता है ।
( iv ) कोशिका भित्ति ( Cell wall ) : अधिकांश कवकों की कोशिका भित्ति काइटिन ( Chitin ) की बनी होती है , परन्तु ऊमाइकोटा ( Oomycota ) संघ के कवकों में ये मुख्य रूप से सैलूलोज की बनी होती है ।
( v ) जनन ( Reproduction ) : ज्यादातर कवकों में जनन , अलैंगिक ( Asexual ) व लैंगिक ( Sexual ) विधियों द्वारा सम्पन्न होता है ।
( vi ) केन्द्रकीय स्थिति ( Nuclear status ) : कवकों में केन्द्रक सुविकसित होता है । पटहीन कवकों में बहुकेन्द्रकी ( Multinucleate ) दशा होती है जबकि पटयुक्त कवकों की कोशिका में एककेन्द्रकी या द्विकेन्द्रकी या बहुकेन्द्रकी दशा होती है ।
( vii ) जीवन चक्र ( Life cycle ) : कवकों का जीवन चक्र सरल ( Simple ) से जटिल ( Complex ) तक होता है ।
कवकजाल ( Mycelium ) : कवक का थैलस अनेक पतली धागे जैसी नलिकाकार ( Tubular ) संरचनाओं से बनता है , जिन्हें कवकतन्तु ( Hyphae ) कहते हैं । जब बहुत सारे कवक तन्तु इकट्ठे होकर एक जालनुमा संरचना का निर्माण करते हैं तब इन्हें कवकजाल ( Mycelium ) कहते हैं । ये कवकजाल पटहीन ( Aseptate ) या पटयुक्त ( Septate ) होते हैं । पटहीन ( बिना पट ) कवकजाल , जिसमें बहुत सारे केन्द्रक उपस्थित हों तो ऐसा कवकजाल पटहीन तथा ऐसी अवस्था संकोशिकी ( Coenocytic ) कहलाती है , जैसे- ऊमाइसिटिज वर्ग ।
कवक कोशिका ( The Fungal Cell ) : कवक की कोशिका सुविकसित केन्द्रक युक्त ( Eukaryotic ) होती है जो कोशिका भित्ति ( Cell wall ) , कोशिका झिल्ली ( Cell membrane ) , कोशिका द्रव्य ( Cytoplasm ) एवं कोशिकांग ( Organelles ) से मिलकर बनी होती है । कोशिका द्रव्य में विभिन्न कोशिकांग जैसे- केन्द्रक ( Nucleus ) , केन्द्रिका ( Nucleolus ) , सूत्रकणिका ( Mitochondria ) , अन्तर्द्रव्यी जालिका ( Endoplasmic reticulum ) , राइबोसोम्स ( Ribosomes ) , रसधानियाँ ( Vacuoles ) , लाइसोसोम्स ( Lysosomes ) , पुटिकाएँ ( Vesicles ) , जालिकाय ( Dictyosomes ) इत्यादि उपस्थित होते हैं । रासायनिक रूप से कवक कोशिका में कार्बोहाइड्रेट्स ( Carbohydrates ) , प्रोटीन्स ( Proteins ) , लिपिड्स ( Lipids ) , न्यूक्लिक अम्ल ( DNA एवं RNA ) इत्यादि की उपस्थिति होती है । कोशिका द्रव्य में 80S तथा माइटोकॉन्ड्रिया में 70S के राइबोसोम्स होते हैं । राइबोसोम्स , प्रोटीन्स एवं RNA के बने होते हैं । कोशिका में ग्लाइकोजन ( Glycogen ) , वसा एवं तेलों ( Oils ) , भोज्य पदार्थ के रूप में संचित ( Stored ) रहते हैं ।

कवकों में पोषण की विधियाँ ( Modes of nutrition ) : पर्णहरित न होने के कारण कवक अपना भोजन स्वयं नहीं संश्लेषित कर सकते तथा दूसरे स्रोतों पर निर्भर रहते हैं , इसलिए ये परपोषित ( Heterotrophic ) होते हैं । कवक घुलनशील पदार्थों का अवशोषण ( Absorption ) , कवकजाल की भित्ति एवं झिल्ली ( Cell wall & cell membrane ) अथवा कुछ कवकों में चूषकांगों ( Haustoria ) द्वारा अवशोषित करते हैं ।
पोषण प्राप्ति के आधार पर कवकों को निम्न तीन प्रमुख वर्गों में बाँटा जा सकता है – ( 1 ) परजीवी ( Parasites ) ( 2 ) मृतजीवी ( Saprophytes ) एवं ( 3 ) सहजीवी ( Symbionts ) ।
( 1 ) परजीवी ( Parasite ) : वे कवक जो अपना भोजन जीवित जीवों से प्राप्त करते हैं परजीवी कहलाते हैं । इनको तीन भागों में बाँटा गया हैं –
( क ) अविकल्पी परजीवी ( Obligate Parasites ) : वो परजीवी , जो अपना सम्पूर्ण जीवनकाल दूसरे जीवित जीवों पर ही व्यतीत करते हैं । इनको प्रयोगशाला में कृत्रिम माध्यम पर नहीं उगाया जा सकता है । उदाहरण एल्बूगो ( Albugo ) , एरीसाइफी ( Erysiphe ) , स्क्लेरोस्पोरा ( Sclerospora ) , पक्सीनिया ( Puccinia ) इत्यादि ।
( ख ) विकल्पी मृतजीवी ( Facultative Saprophytes ) : ( Facultative means – ability or power ) वास्तव में ये कवक परजीवी होते हैं , परन्तु आवश्यकता पड़ने पर कुछ समय के लिए मृतजीवी की भाँति अपना भोजन प्राप्त कर सकते हैं । ये जीवित परपोषी ( Host ) के अलावा मृत पदार्थों पर भी अपना जीवन यापन कर लेते हैं । उदाहरण अस्टीलागो ( Ustilago ) , टेफ्रीना ( Taphrina ) इत्यादि ।
( ग ) विकल्पी परजीवी ( Facultative Parasite ) : मुख्य रूप से ये कवक मृतजीवी होते हैं , परन्तु कुछ परिस्थितियों में यह परजीवी के रूप में भी रह सकते हैं । उदाहरण फ्यूजेरियम ( Fusarium ) , पीथियम ( Pythium ) , ऑल्टरनेरिया ( Alternaria ) , सर्कोस्पोरा ( Cercospora ) इत्यादि ।
( 2 ) मृतजीवी ( Saprophytes ) : वे कवक जो अपना भोजन मृत कार्बनिक पदार्थों से प्राप्त करते हैं , मृतजीवी कहलाते हैं । उदाहरण- म्यूकर ( Mucor ) , एगेरीकस ( Agaricus ) इत्यादि ।
( 3 ) सहजीवी ( Symbionts ) : वो कवक जो अन्य जीवों के साथ मिलकर जीवन व्यतीत करते हैं तथा एक दूसरे को लाभ पहुँचाते हैं । जीवन जीने की यह कला सहजीवन ( Symbiosis ) कहलाती है तथा भाग लेने वाले जीवों को सहजीवी ( Symbionts ) कहते हैं । उदाहरण – लाइकेन , माइकोराइजा आदि ।
( क ) लाइकेन ( Lichen ) : ” कवक ‘ + ‘ शैवाल ‘ ( Fungus + Alga ) या ” कवक ‘ + ‘ सायनोबैक्टीरिया ” ( Fungus + Cyanobacterium ) के सहजीवन को लाइकेन कहते हैं । सहजीवन की इस जीवन लीला में एक कवकजीव ( Mycobiont = कवक ) तथा दूसरा प्रकाशजीव ( Photobiont शैवाल या साइनोबैक्टीरियम ) एक साथ मिलकर जीवन जीते हैं । प्रकाशजीव को पहले , शैवालांश ( Phycobiont ) के नाम से जानते थे । शैवाल या सायनोबैक्टेरियम को कवक से कुछ खनिज , जल एवं कार्बनिक पदार्थ प्राप्त होते हैं तथा कवक को पोषक देकर बदले में शैवाल से कार्बोहाइड्रेट प्राप्त होता हैं । लाइकेन प्रदूषित क्षेत्रों में नहीं उगते , इसलिए ये प्रदूषण के बहुत अच्छे सूचक ( Pollution Indicator ) भी हैं ।
( ख ) माइकोराइजा ( Mycorrhiza ) : सन् 1885 में फ्रेंक ( Frank ) ने ” माइकोराइजा ” की खोज की थी । ” माइकोराइजा ” शब्द , ” माइक्स ” ( Mykes = Fungus ) तथा ” राइजा ” ( Rhiza = Root ) से मिलकर बना है । ” कवक एवं उच्च पादपों की जड़ों में सहजीवन को माइकोराइजा कहते हैं । ”
कवकों का वर्गीकरण ( Classification of fungi ) : वर्गीकरण विज्ञान ( Taxonomy ) के जनक माने जाने वाले लिनीयस ( Linnaeus ) ने कवकों को वनस्पति जगत ( Plant Kingdom ) में रखा था । लेकिन वर्ष 1969 में व्हिटेकर ( Whittaker ) ने जीवित जीवों के लिए ” पाँच जगत वर्गीकरण ” ( Five Kingdom Classification ) दिया एवं कवकों को ” फंजाई ” ( Fungi ) जगत में रखा । पी.ए. सकार्डो ( P.A. Saccardo , 1886 ) ने कवकों को उनके कवकजाल में पटों ( पटयुक्त एवं पटहीन ) एवं लैंगिक जनन के आधार पर चार वर्गों ( Classes ) , जैसे फाइकोमाइसिटीज ( Phycomycetes ) , एस्कोमाइसिटीज ( Ascomycetes ) , बेसिडियोमाइसिटीज ( Basidiomycetes ) एवं ड्यूटेरोमाइसिटीज ( Deuteromycetes ) में विभक्त किया , जिनका संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है :-
पौधों में रोग उत्पन्न करने वाले प्रमुख कवक वंश ( Fungal genera ) निम्न प्रकार हैं – एल्बूगो ( Albugo ) , स्क्लेरोस्पोरा ( Sclerospora ) , फाइटोपथोरा ( Phytophthora ) , क्लेविसेप्स ( Claviceps ) , एरीसाइफी ( Erysiphe ) , पक्सीनिया ( Puccinia ) , अस्टीलागो ( Ustilago ) , ऑल्टरनेरिया ( Alternaria ) , फ्यूजेरियम ( Fusarium ) , सर्कोस्पोरा ( Cercospora ) , कोलेटोट्राइकम ( Colletotrichum ) एवं राइजोक्टोनिया ( Rhizoctonia ) इत्यादि हैं । कई लाभदायक कवकों को बैकरी एवं शराब में ( जैसे – सैकेरोमाइसीज Saccharomyces एककोशिकीय यीस्ट ) तथा सुपाच्य एवं उच्च प्रोटीन हेतु खाद्य मशरूमों को काम लिया जा रहा है , जैसे- बटन मशरूम ( Agaricus ) । इसी तरह पादप रोगों के नियन्त्रण हेतु मित्र फफूंद ( ट्राइकोडर्मा – Trichoderma ) का उपयोग किया जा रहा है ।