कीटनाशियों का वर्गीकरण ( Classification of Insecticides )

0

कीटनाशियों का वर्गीकरण ( Classification of Insecticides )

 

कीटनाशी ( Insecticides ) – कीटनाशी शब्द का अर्थ हैं – कीटों का नाश करने वाला । फसलों , सब्जियों , फल वृक्षों एवं संचित अनाज को नाशक कीटों से बचाने हेतु उनको मारने या प्रतिकर्षित करने के लिये जिन विषैले रसायनों का प्रयोग करते हैं उन रसायनों को कीटनाशी ( Insecticide ) कहते हैं । कीटनाशियों का वर्गीकरण हम कुछ बुनियादी आधारों पर तीन प्रकार से कर सकते हैं –

( 1 ) कीटों के शरीर में प्रवेश करने के आधार पर ।

( 2 ) क्रिया – विधि के आधार पर

( 3 ) रसायनों के स्वभाव अथवा सक्रिय घटकों के आधार पर ।

 

( 1 ) कीटों के शरीर में प्रवेश करने के आधार पर ( Based on Mode of Entry ) : कीटों के शरीर में प्रवेश करने के आधार पर कीटनाशियों को तीन रूपों में वर्गीकृत कर सकते हैं –

1. संस्पर्श विष ( Contact Poison ) – ये कीटनाशी कीटों के क्यूटिकल के सम्पर्क में आने पर उसके अंगों में शोषित होकर अपना घातक प्रभाव दर्शाते हैं । इनका प्रयोग धूलि अथवा छिड़काव के रूप में किया जा सकता हैं ।

2. जठर विष ( Stomach Poison ) – इसमें कीटनाशियों का प्रयोग कीटों के भोज्य पदार्थों पर किया जाता हैं । यह भोजन जब कीटों के ” काटने – चबाने ” या ” चुभाने व चूसने ” वाले मुखांगों द्वारा शरीर के अन्दर ग्रहण करते हैं तो कीट , कीटनाशियों की आविषालुता के कारण मर जाते हैं ।

3. धूमक ( Fumigant ) – ये कीटनाशी वाष्पशील होते हैं तथा विषैली गैस छोड़ते हैं जो श्वास रंध्रों द्वारा गैसीय अवस्था में कीटों के श्वसन नलिकाओं में प्रवेश करके श्वासवरोध करते हैं जिससे कीट मर जाते हैं । इनका प्रयोग वायुरोधी स्थानों पर संचयित अनाज के कीटों के नियंत्रण हेतु करते हैं ।

 

( 2 ) क्रियाविधि के आधार पर ( Based on Mode of Action ) : कीटनाशी के शरीर में प्रवेश करके उनके अलग – अलग तन्त्रों को प्रभावित करते हैं । इस आधार पर कीटनाशियों को निम्न समूहों में वर्गीकृत कर सकते हैं –

1. भौतिक विष ( Physical Poison ) – वास्तव में यह विष नहीं होते । यह कीटों को दम घोटकर या उन्हें निर्जलीकरण कर मार डालते हैं । इनमें श्वासरोधी तथा अवघर्षक प्रभाव मुख्य होते हैं ।

2. जीवद्रव्यी विष ( Protoplasmic Poison ) – यह विष कीटों की आहार नलिका में पचे हुए भोजन के साथ अवशोषित हो जाते हैं , कोशिकाओं के जीव द्रव्य में उपस्थित प्रोटीन्स पर प्रभाव डालते हैं , जिससे उसकी प्रोटीन का अवक्षेपण हो जाता है औ र कोशिकाएँ मर जाती हैं तथा साथ ही कीट भी मर जाते हैं ।

3. श्वसन विष ( Respiratory Poison ) – इस प्रकार के कीटनाशी श्वसन तन्त्र में प्रवेश कर श्वसन सम्बन्धी एन्जाइमों को निष्क्रिय कर देते हैं जिससे कीट मर जाते हैं ।

4. तंत्रिका विष ( Nerve Poison ) – जो कीटनाशी शरीर में प्रवेश कर ज्ञान तंत्रिका तन्त्र को प्रभावित करते हैं , तंत्रिका विष कहलाते हैं । ये प्राथमिक रूप से ऊतकों की वसा में घुल जाते हैं तथा कीटों एसिटिल कोलिनस्ट्रेज एन्ज़ाइम का संदमन करते हैं , जिससे कीट बेहोश होकर मर जाते हैं ।

 

( 3 ) रसायनों के स्वभाव के आधार पर ( Based on Chemical Nature ) – कीटनाशियों को उनके रासायनिक स्वभाव के अनुसार दो मुख्य वर्गों अकार्बनिक एवं कार्बनिक में बाँटा जा सकता है –

1. अकार्बनिक कीटनाशी ( Inorganic Insecticides ) – आजकल इनका प्रयोग लगभग नगण्य है । इनका प्रचलन संश्लेषित कार्बनिक यौगिकों से पूर्व अधिक होता था । सामान्यतया ये कीटनाशी धातु उद्भवी हैं तथा इस वर्ग के सभी यौगिक भोजन द्वारा अर्न्तग्रहित होकर कीटों को मारते हैं । इनमें निम्नलिखित मुख्य हैं –

( i ) आर्सेनिक यौगिक ( Arsenical Compounds ) – आर्सेनिक के सभी यौगिक कीटों और स्तनधारियों के लिए अति विषैले आन्तरिक विष होते हैं । उदाहरणार्थ लेड आर्सेनेट , कैल्शियम आर्सेनेट एवं सोडियम आर्सेनेट , पेरिस ग्रीन ( कॉपर ऐसीटो- आर्सेनेट ) , आर्सेनिक ऑक्साइड्स इत्यादि ।

( ii ) फ्लुओरीन यौगिक ( Fluorine Compounds ) – यह आर्सेनिक लवणों की अपेक्षा स्तनधारियों के लिए कम विषैले परंतु कीटों के लिए अधिक विषैले और पौधों के लिए सुरक्षित , यह संस्पर्श विष के साथ जठर विष का भी कार्य करते हैं । उदाहरणार्थ- सोडियम फ्लुओराइड , सोडियम फ्लुओ ऐलुमिनेट तथा क्रायोलाइट आदि ।

( iii ) गंधक और उसके यौगिक ( Sulphur and its Compounds ) – ये कीटनाशी बरूथीनाशक और कवकनाशी के रूप में प्रयोग किये जाते हैं । इसका अवशिष्ट प्रभाव कम रहता हैं परंतु इनके प्रयोग से धातु की चीजें काली पड़ जाती हैं । कपड़ों का रंग उड़ जाता हैं , बीजों के उगने की क्षमता प्रभावित होती है तथा दुर्गन्ध आती हैं । उदाहरणार्थ गन्धक धूलि , धुलनशील गंधक , इत्यादि ।

( iv ) फॉस्फोरस यौगिक ( Phosphorus Compounds ) – फॉस्फोरस यौगिकों में सबसे अधिक प्रयोग में आने वाला यौगिक जिंक फॉस्फाइड है , जिसे टिड्डों तथा झींगुरों के विरूद्ध प्रयोग में लाया जाता था , परंतु चूहों के नियंत्रण के लिये इसे विलोभक के रूप में उपयोग किया जाता है ।

2. कार्बनिक कीटनाशी ( Organic Insecticides ) – इसके अंतर्गत निम्नलिखित कीटनाशियों के समूह आते हैं –

( i ) जन्तु कीटनाशी एवं उनके व्युत्पन्न ( Animal insecticides and their derivatives ) – इसका प्रमुख उदाहरण नेरीसटाक्सीन ( Nereistoxin ) , जिसका व्यापारिक नाम पादन ( Padan ) है । यह समुद्र में पाये जाने वाले ऐनेलिड , लम्ब्रिकोनेरीस हेट्रोपोडा व लम्ब्रिकोनेरीस ब्रेवीसिरा से प्राप्त होता है तथा यह कीटों के केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र को सुन्न ( लकवा ) कर देता है जिससे कीट मर जाते हैं ।

( ii ) वानस्पतिक कीटनाशी और उनके व्युत्पन्न ( Plant insecticides and their derivatives ) – यह विष पौधों की जड़ों , तनों , पत्तियों , फूल एवं फलों ( बीजों ) से प्राप्त होते हैं इनकी विशेषता यह है कि ये पौधों के लिए पूर्ण सुरक्षित और स्तनधारियों के लिए भी कम विषाक्त होते हैं । निकोटीन , पायरिथ्रम तथा रोटेनोन वानस्पतियों तथा उनके व्युत्पन्नों इसके कुछ उदाहरण हैं , इनका प्रयोग संस्पर्श कीटनाशियों के रूप में किया जाता है ।

पाइरेथ्रम ( Pyrethrum ) – यह क्राइसेन्थेमम सिनरेरीफोलियम तथा क्राईसेन्थेमम कौक्सीनियम नामक पादप के फूलों को पीस कर , उनका रस निकालकर प्राप्त किया जाता है । यह सूर्य के प्रकाश हवा एवं नमी में जल्दी प्रभावित होकर निर्विष – पदार्थों में टूट जाता है । इसलिए इनके कीट नाशक गुण को बनाये रखने के लिए उन्हें रंगीन बोतलों अथवा सील बन्द डिब्बों में सूखे स्थान पर कम तापक्रम पर रखते है । यह धूलि , धूलनशील चूर्ण एवं ऐरोसाल के संरूपण में उपलब्ध है ।

नीम ( Neem ) – इसकी उत्पत्ति भारत में हुई हैं । इसका वैज्ञानिक नाम एजाडिरेक्टा इंडिका हैं । नीम के सभी भागों में कीटनाशी गुण होते है , परंतु निम्बोली में सबसे अधिक होता है । इसका महत्त्वपूर्ण सक्रिय घटक एजेडिरेक्टिन होता हैं जो कई नाशीकीटों के विरूद्ध प्रतिकर्षी , भक्षणनिरोधक तथा कीटनाशक क्रिया दर्शाता है जैसे- मरू टिड्डी , धान का भूरा पादप फुदका , धान का पत्ती मोड़क , सैन्य कीट , गोभी की हीरक तितली , चने का फली वेधक , कपास की चितकबरी लट् , बैंगन इत्यादि ।

( iii ) तेल तथा उनके पायस ( Oil and their emulsions ) – तेल हाईड्रोकार्बनों के जटिल मिश्रण हैं । यह दो प्रकार के होते हैं , पेट्रोलियम तेल और कोलतार तेल जिनका कीटनाशी के रूप में फसलों पर सीमित रूप से प्रयोग किया जाता हैं क्योंकि अधिक मात्रा में प्रयोग करने पर यह हानिकारक होते हैं । इनका उपयोग पायस के रूप में किया जाता हैं तथा छिड़काव की सान्द्रता 1 से 3 प्रतिशत के बीच होनी चाहिये जिससे कि पादप विषैले ना हो । यह शल्क कीट , चुर्णी मत्कुण ( मिलीबग ) , सफेद मक्खी , बरूथी एवं उनके अण्डों के विरूद्ध प्रभावी है । यह कीटों को श्वासावरोध उत्पन्न कर मारते हैं ।

( iv ) कार्बनिक थायोसायनेट ( Organic thiocyanate ) – यह कीटनाशी नाशीकीटों के अंडे , डिम्भकों तथा वयस्कों के लिए विषैले होते है , इसमें थानाइट , लीथेन 60 एवं लीथेन 384 प्रचलन में ज्यादा है । सभी कार्बनिक थायोसायनेट संस्पर्श विष होते हैं और ये उड़ने वाले कीटों को लकवा ग्रस्त कर उनको मार देते है ।

( v ) सल्फोनेट , सल्फाइड एवं सल्फोन ( Sulphonate , Sulphide and Sulphon ) – इन समूह के यौगिक संस्पर्श बरूथीनाशक होते है , जिनमें टेट्रासोल , टेट्राडीफोन , एरामाइट ओवेक्स , मोरटान , पी – क्लोरोफिनाइल , फिनाइल सल्फोन तथा अन्य सल्फोन मुख्य है । यह बरूथीनाशी अण्डों तथा डिम्भकों को मारते है । ये पादप विषाक्तता तथा बरूथीयों में प्रतिरोधकता उत्पन्न करते हैं । अतः इनका उपयोग भी काफी सीमित हो गया है ।

( vi ) डाइनाइट्रोफिनॉल ( Dinitrophenol ) – इनका उपयोग कीटों एवं बरूथीयों के अण्डो , डिम्भकों तथा वयस्कों के विरूद्ध प्रभावी पाया गया है , जो संस्पर्श अथवा अन्तर्ग्रहण द्वारा विषाक्तता प्रदर्शित करते हैं । पादप विषाक्तता के कारण इनका प्रयोग सीमित होता है ।

 

कीटों का रासायनिक नियंत्रण ( Chemical Control of Insect Pest )

Share this :

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here