कीटनाशी संरूपण ( Insecticides Formulation )
कीटनाशियों को सुगमता से प्रयोग में लाने हेतु कई संरूपणों में रूपान्तरित किया जाता है तथा किसी भी कीटनाशी के सफल प्रयोग के लिये उपयुक्त कीटनाशी संरूपण जरूरी होता है ।
कीटनाशियों में दो प्रकार के संरूपण ठोस तथा द्रव रूप में उपलब्ध हैं जिनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है –
ठोस संरूपण ( Solid formulation ) – ये तीन प्रकार के होते है –
(i) कीटनाशीय धूलि ( Insecticidal dust ) – इसमें कीटनाशी की सांद्रता 0.1 से लेकर 25 प्रतिशत तक हो सकती है । धूलि सामान्यतयाः 2 , 5 एवं 10 प्रतिशत चूर्ण के रूप बाजार में उपलब्ध होती है । इसका उपयोग प्रातः काल करना अधिक लाभकारी होता है ।
(ii) दानेदार कीटनाशी ( Insecticide Granules ) – इस संरूपण को कीटनाशी निहित असक्रिय पदार्थों से प्राप्त किया जाता है । दानों का आकार 0.25 से 2.38 मि.मी. परिधि का होता है । इन दानों में 2 से 10 प्रतिशत तक कीटनाशी की मात्रा हो सकती है । इनको भूमि अथवा पौधों पर छितराकर प्रयोग में लाते हैं । इस हेतु पानी की आवश्यकता नहीं पड़ती हैं ।
(iii) घुलनशील चूर्ण ( Wettable Powder ) – लगभग सभी कार्बनिक कीटनाशी जल में अघुलनशील होते हैं जिसके कारण शीघ्र ही यह पैंदे पर बैठने लगते हैं अतः इसमें एक आर्द्रक को साथ में मिलाते हैं जो इनके कणों को पानी में घोले रखता है । सामान्यतया इस संरूपण में 25 , 40 व 50 प्रतिशत कीटनाशी की मात्रा उपस्थित रहती है । इनकी क्रियाशीलता 1 से 2 प्रतिशत पृष्ठ सक्रिय भिगोने वाले अथवा विस्थापित करने वाले कारकों को मिलाकर बढ़ायी जा सकती है ।
द्रव संरूपण ( Liquid Formulation ) –
1. पायसीकरणीय सांद्र ( Emulsifiable Concentrate or EC ) – पायसीकरणीय सांद्र कीटनाशियों का एक सामान्य संरूपण है जो कीटनाशी , इसके विलायक तथा पायसीकारकों के मिश्रण से बनाया जाता है । पायसीकारक इस विलयन ( घोल ) को स्थिरता , गीला करने एवं फैलाने के गुण प्रदान करता है । जब इन्हें जल में मिला दिया जाता है तो यह ऐसे पायस में परिवर्तित हो जाता है जैसे तेल को जल में मिला दिया गया हो । फसलों को उपचारित करने के लिए जल्दी से विघटित होने वाले सांद्रो का प्रयोग किया जाता हैं , जिससे उपचारित भाग पर कीटनाशी के विषाक्त अवशेषों में कमी आती हैं ।
2. विलयन ( Solution ) – वे संश्लेषित कार्बनिक कीटनाशी जो जल में विलयशील नहीं होते उनका उपयोग कार्बनिक विलायकों ( तेल , ईथर अथवा पैराफिन तेल ) में मिलाकर किया जाता है और इनका ज्यों का त्यों सीधा उपयोग घरेलु कीटों , मच्छरों तथा जलीय कीटों के नियंत्रण हेतु हस्त फुहाकर ( Hand sprayers ) द्वारा किया जाता है । जैसे फिनिट
3. सांद्र कीटनाशी द्रव ( Concentrate liquid insecticide ) – यह कीटनाशियों का एक ऐसा द्रव संरूपण है , जिसमें जल मिलाकर इसकी शक्ति को तनु नहीं किया जाता है तथा इसे बहुत ही निम्न घनत्व में प्रयोग में लिया जाता है जैसे फास्फेमिडान का आइसोप्रोपाइल ऐल्कोहॉल में विलयन तथा मेलाथियान का 95 प्रतिशत सांद्र कीटनाशी द्रव ।
4. वायु विलय ( Aerosol ) – कीटनाशियों की सूक्ष्म कणिकाएँ हैं जो हवा में धुंध या कुहरा के रूप में झूलते रहते हैं । उच्च दाब पर छिद्र से निकलने वाली गैस तीव्रता से वाष्पित होते हुए हवा में कीटनाशी की सूक्ष्म कणिकाओं ( Microscopic Particles ) को छोड़ देती है जो धीरे – धीरे फसलों पर जम जाती हैं व ऐसी विषाक्त पत्तियों को खाकर नाशीकीट मर जाते हैं । वायु – विलय ( ऐरोसॉल ) का उपयोग हवाई जहाज अथवा हैलीकॉप्टर से किसी बड़े क्षेत्र में कीट विशेष के नियंत्रण हेतु छिड़काव किया जाता है । उदाहरणार्थ टिड्डी का प्रकोप आदि ।
5. धूमक ( Fumigant ) – कीटनाशियों की वाष्पशील अवस्था को धूमक कहते हैं । धूमक वे संरूपण हैं , जिनमें दबाव के अन्तर्गत द्रव अवस्था में रखा जाता है । इनका प्रयोग संचयित अनाज के भण्डारगृहों , कोठियों , गोदामों एवं जहाज के लदानों में किया जाता है । जैसे एल्यूमिनियम फॉस्फाइड की गोलियाँ ।
6. कीटनाशी उर्वरक मिश्रण ( Mixed Formulation of Insecticides and Fertilizer ) – बुवाई के समय कीटनाशियों तथा उर्वरकों को मिलाकर प्रयोग में लाया जाता है जिससे भूमि में उपस्थित नाशक कीटों का नियंत्रण हो जाता है ।
7. कीटनाशियों के मिश्रित संरूपण ( Mixed Formulation of Insecticides ) – आजकल दो या उससे अधिक कीटनाशियों के सक्रिय घटकों के मिश्रण के बने हुए संरूपण का प्रचलन बहुत हो रहा है । इस प्रकार के संयोजनों को ” संयुक्त क्रिया ” के नाम से जानते हैं और इनमें संयुक्त अविषालु क्रिया ( Joint Toxic Action ) होती हैं ।