कीट नियंत्रण की प्रमुख विधियों ( Different Methods of Pest Control )

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कीट नियंत्रण की प्रमुख विधियों ( Different Methods of Insect Pest Control )

 

कीट नियंत्रण में कीटों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने से रोकना, उनकी संख्या में वृद्धि को रोकना तथा बढ़ी हुई समष्टि को नष्ट कर उनकी संख्या को नियंत्रित करना शामिल हैं क्योंकि कीट बहुत जल्दी से अनुकूल वातावरण में अपनी संख्या बढ़ाने की क्षमता रखते हैं ।

कीट नियंत्रण की प्रमुख विधियों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया गया हैं –

( अ ) प्राकृतिक नियंत्रण ( Natural Control )

( ब ) कृत्रिम नियंत्रण ( Artificial Control )

 

( अ ) प्राकृतिक नियंत्रण ( Natural Control ) : इसमें कीटों की संख्या प्राकृतिक कारणों अथवा ऋतु परिवर्तन यानि विभिन्न भौतिक एवं जैविक कारकों द्वारा स्वतः नियंत्रित होती रहती हैं जो निम्न प्रकार हैं –

( 1 ) ऋतु परिवर्तन (Season Change ) – जैसे तापक्रम , वर्षा एवं नमी , प्रकाश , सर्दी , गर्मी , हवा की गति एवं दबाव ( आँधी , लू ) , हिमपात आदि कीटों की संख्या को प्रभावित करते हैं ।

( 2 ) भूमि रचना ( Land formation ) – कीटों के फैलाव या नियंत्रण पर स्थलाकृतिक कारकों जैसे पहाड़ , मरूस्थल ( रेगिस्तान ) , दलदल , जंगल , नदियाँ , झीलें , समुद्र , मृदा संरचना एवं भूतल आदि का बहुत प्रभाव पड़ता हैं ।

( 3 ) प्राकृतिक शत्रु ( Natural enemies ) – प्रकृति में कई प्रकार के संहारक जीव ( कशेरूकी एवं अकशेरूकी ) कीटों का भक्षण कर अपना जीवन निर्वाह करते हैं । जैसे परजीव्याभ ( Parasitoid ) एवं परभक्षी कीट , परजीवी सूत्रकृमि , मेंढक , छिपकली , भालू , कीटाहारी प्राणी ( Insectivorous animals ) और पक्षी जैसे- मैना , तीतर , बटेर , कौआ , गौरेया , गिद्ध इत्यादि प्रमुख हैं । इसके अतिरिक्त कीटों की आपसी कलह तथा स्वजाति भक्षण ( Cannibalism ) भी एक महत्त्वपूर्ण कारक हैं ।

( 4 ) प्राकृतिक रोग ( Natural disease ) – कीटों में विभिन्न प्रकार के रोग जो प्रोटोजोआ , जीवाणु , कवक , विषाणु जनित होते हैं , जिनसे उनमें महामारी फैल जाती हैं व इनसे इनका नियंत्रण प्रकृति में स्वतः ही होता रहता हैं ।

 

( ब ) कृत्रिम नियंत्रण ( Artificial Control ) – इस प्रकार का नियंत्रण मनुष्य द्वारा किया जाता है , जिसके अन्तर्गत कई प्रकार के साधनों का प्रयोग किया जाता हैं तथा इनका प्रयोग तभी आवश्यक होता हैं , जब प्राकृतिक कारकों द्वारा हानिकारक कीटों पर नियंत्रण समाप्त हो जाये । सफलतापूर्वक कीट नियंत्रण हेतु निम्नांकित कारकों की पूर्व जानकारी एवं समन्वय आवश्यक हैं –

1. नाशककीट का जीवन चक्र , प्राकृतिक एवं मौसमी इतिहास , स्वभाव , रहन सहन , उससे होने वाली क्षति का प्रकार एवं उसके प्राकृतिक शत्रुओं के सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी उपलब्ध हो ,

2. कीटों के वर्गीकरण एवं आकृति विज्ञान की ठीक जानकारी करना ,

3. नाशक कीट के नियंत्रण के लिये प्रयोग में लायी जा रही विधियों में से प्रभावी विधियों का निर्धारण किया जाए ,

4. नाशक कीट के लिये ” आर्थिक सीमान्त ” और ” आर्थिक क्षति स्तर ” का निर्धारण किया जाए , जिनके आधार पर नियंत्रण क्रियाएँ प्रारंभ की जाए ।

 

अनार की तितली (Pomegranate Butterfly)

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