खरपतवारों का वर्गीकरण ( Classification of Weeds )

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खरपतवारों का वर्गीकरण ( Classification of Weeds )

 

परिभाषा ( Definition ) – खरपतवार वे पौधे हैं जो अनचाहे स्थान व अनचाहे समय पर उगते हैं ( Weeds are the plants growing out of place and out of time ) ।

खरपतवारों का वर्गीकरण उनकी आयु बीज पत्र , फसल – खरपतवार सम्बन्ध , पत्तियों की बनावट , मृदा व जलवायु के आधार पर किया जा सकता है ।

 

1. जीवन चक्र के आधार पर खरपतवारों का वर्गीकरण ( Classification of weeds on the basis of life cycle ) : जीवन चक्र के आधार पर खरपतवारों को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है –

( अ ) एक वर्षीय खरपतवार ( Annual weeds ) : ये खरपतवार एक वर्ष या उससे भी कम अवधि में अपना जीवन चक्र पूर्ण कर लेते हैं । इस वर्ग के खरपतवारों को पुनः दो उपवर्गों में विभाजित किया गया है –

( i ) खरीफ के खरपतवार ( Kharif weeds ) – इस वर्ग के खरपतवार वर्षा के आरम्भ में उगते हैं और अपना जीवन चक्र खरीफ की फसलों के साथ ही पूरा कर लेते हैं । जैसे – पत्थर चट्टा , जंगली चौलाई , लहसुवा आदि ।

( ii ) रबी के खरपतवार ( Rabi weeds ) – इस वर्ग के खरपतवार रबी की फसलों के साथ सितम्बर या अक्टूबर माह में उगना प्रारम्भ कर देते हैं और अपना जीवन चक्र अप्रैल माह तक पूर्ण कर लेते हैं । जैसे – कृष्णनील , प्याजी , जंगली जई , बथुआ , गेहूँसा आदि ।

( ब ) द्विवर्षीय खरपतवार ( Biennial weeds ) : इस वर्ग के खरपतवार अपना जीवन चक्र दो वर्षों में पूरा करते हैं । प्रथम वर्ष में ये खरपतवार अपनी वानस्पतिक वृद्धि करते हैं , दूसरे वर्ष बीज उत्पादन करते हैं । जैसे – जंगली गाजर , जंगली गोभी ।

( स ) बहुवर्षीय खरपतवार ( Perennial weeds ) : इस वर्ग के खरपतवार कई वर्षों में अपना जीवन चक्र पूरा करते हैं । एक बार उग कर हर वर्ष वृद्धि करते रहते हैं । अधिकांशतः इनकी वृद्धि राइजोम , बल्ब , ट्यूबर्स आदि वानस्पतिक भागों द्वारा होती है । उपयुक्त जलवायु में ये बीज उत्पादन भी करते हैं । इन्हें पुनः दो उपवर्गों में वर्गीकृत किया गया है –

( i ) काष्टिल खरपतवार ( Woody weeds ) : इस उपवर्ग में बहुवर्षीय झाड़ियाँ आती हैं जैसे – झरबेरी ।

( ii) शाकीय खरपतवार ( Herbaceous weeds ) : इस उपवर्ग में आने वाले खरपतवारों के तने व शाखायें मुलायम होते हैं । जैसे- मोथा , हिरणखुरी , अमरबेल ।

 

2. बीज पत्र के आधार पर खरपतवारों का वर्गीकरण ( Classification of weeds on the basis of seed sheet ) – बीज पत्रों के आधार पर खरपतवारों के दो उपवर्ग हैं –

( अ ) एक बीजपत्री खरपतवार ( Monocot weeds ) : इन खरपतवारों के बीज एक पत्री होते हैं इसलिए इनके बीज दाल की भांति दो दालों में विभक्त नहीं होते । जैसे मोथा , कांस , दूब घास , प्याजी , गेहूँसा ।

( ब ) द्विबीजपत्री खरपतवार ( Dicot weeds ) : इस वर्ग के खरपतवारों के बीजों को दाल की भांति दो दालों में विभक्त कर सकते हैं । जैसे- बथुआ , हिरणखुरी , मकोय , सत्यानाशी , जंगली चौलाई आदि ।

 

3. खरपतवार – फसल सम्बन्ध के आधार पर खरपतवारों का वर्गीकरण ( Classification of weeds on the basis of weed-crop relationship ) – इस वर्गीकरण के अनुसार खरपतवारों को निम्न वर्गों में विभाजित किया गया है –

( अ ) निरपेक्ष खरपतवार ( Absolute weeds ) : इस वर्ग के अन्तर्गत वे सभी खरपतवार आते हैं जो उपज को कम कर देते हैं । इसमें एकवर्षीय द्विवर्षीय व बहुवर्षीय सभी प्रकार के खरपतवार सम्मिलित हैं जैसे- कृष्णनील , मोथा , हिरणखुरी , गाजर घास आदि ।

( ब ) सापेक्ष खरपतवार ( Relative weeds ) : इस वर्ग में फसलों के वे पौधे जिनकी किसान खेत में बुआई नहीं करता है तथा वे स्वतः ही उग जाते हैं , सापेक्ष खरपतवार कहलाते हैं । जैसे गेहूँ के खेत में चना , सरसों , मटर का पौधा उग जाये तो इसे सापेक्ष खरपतवार कहते हैं । यह समस्या अशुद्ध बीज की बुआई से उत्पन्न होती है ।

( स ) नकलची अथवा अनुकारी खरपतवार ( Mimicry weeds ) : ये खरपतवार अपनी बाह्य आकारिकी में फसल के पौधों से इतना अधिक मिलते जुलते हैं कि इन्हें फसल के पौधों से अलग पहचान कर पाना भी कठिन होता है इसलिए इन्हें नकलची खरपतवार कहते हैं । जैसे- गेहूँ की फसल में गेहूँसा ( गुल्ली डण्डा ) तथा धान की फसल में सावा ।

( द ) विशेष सूक्ष्म जलवायु के खरपतवार ( Special micro – climate weeds ) : कुछ खरपतवारों को विशेष जलवायु परिस्थितियों की आवश्यकता वृद्धि व विकास के लिए होती है । जैसे कासनी खरपतवार ठण्डी व नम जलवायु में अपनी वृद्धि करता है ।

( य ) अवांछित खरपतवार ( Rogue weeds ) : जब फसल की अन्य किस्म का पौधा बिना बोये खेत में उग जाता है तो उसे अवांछित खरपतवार कहते हैं जैसे- गेहूँ की सोनालिका किस्म में लोक -1 के पौधे बिना बोये उग जायें तो लोक -1 किस्म का पौधा अवांछित खरपतवार कहलाएगा । ऐसे अनिश्चित किस्म के पौधों को उखाड़ने की क्रिया रोगिंग कहलाती है ।

( र ) परजीवी खरपतवार ( Parasitic weeds ) : कुछ खरपतवार फसल विशेष पर परजीवी होते हैं जैसे कि रिजके पर अमरबेल , तम्बाकू पर ओरोबेन्की व बाजरा में स्ट्राइगा ।

 

4. पत्तियों की बनावट के आधार पर खरपतवारों का वर्गीकरण ( Classification of weeds on the basis of leaf texture ) – इस आधार पर खरपतवारों को दो भागों में वर्गीकृत किया गया है –

( अ ) चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार ( Broad – leaved weeds ) : इस श्रेणी के खरपतवारों की पत्तियाँ चौड़ी होती हैं । जैसे- बथुआ , कृष्णनील , हिरणखुरी , बायसुरी , मकोय , जंगली चौलाई , लहसुआ आदि ।

( ब ) संकरी पत्ती वाले खरपतवार ( Narrow – leaved weeds ) : इस वर्ग के खरपतवारों की पत्तियाँ संकरी होती हैं । जैसे- मोथा , दूब घास , कांस , गेंहूसा , जंगली जई आदि ।

 

5. मृदा व जलवायु के आधार पर खरपतवारों का वर्गीकरण ( Classification of weeds on the basis of soil and climate ) – इस श्रेणी में विशेष भूमि व जलवायु की स्थितियों में उगने वाले खरपतवार आते हैं । इन्हें तीन उपवर्गों में वर्गीकृत किया गया है –

( अ ) जलमग्न भूमियों के खरपतवार ( Weeds of waterlogged soils ) : ये खरपतवार ऐसे क्षेत्रों में पाये जाते हैं जहाँ पर अधिकतर समय पानी भरा रहता है । जैसे- नदियों , तालाबों , नहरों व निचले खेतों में जहाँ पानी भरा रहता है , पाये जाते हैं । उदाहरणार्थ – जलकुम्भी , जंगली धान आदि ।

( ब ) शुष्क क्षेत्र के खरपतवार ( Dryland weeds ) : खरपतवार जल की कमी वाले क्षेत्रों में पाये जाते हैं । इन खरपतवारों की जड़ें गहरी पत्तियाँ कम व मोटी , तने पर कांटे पाये जाते हैं जिसकी वजह से ये कम पानी में भी आसानी से वृद्धि करते हैं । जैसे – झरबेरी , नागफनी , जवासा , बायसुरी आदि ।

( स ) कृषि क्षेत्र के खरपतवार ( Weeds of cultivated land ) : इस वर्ग में वे सभी खरपतवार सम्मिलित है जो फसलों के साथ उगकर उनकी उपज काफी कम कर देते हैं । जैसे- बथुआ , प्याजी , कृष्णनील , हिरणखुरी , जंगली चौलाई आदि ।

( द ) अकृषित क्षेत्र के खरपतवार ( Weeds of non agricultural areas ) : सड़कें , रेलमार्ग , गोदाम , औद्योगिक क्षेत्रों में उगने वाले खरपतवार जैसे – लेन्टाना केमरा , कांस , गाजर घास आदि ।

 

6. प्रजनन विधियों के आधार पर खरपतवारों का वर्गीकरण ( Classification of weeds on the basis of breeding methods ) –

( अ ) बीज से उत्पन्न होने वाले के खरपतवार ( Weeds arising from Seed ) : इनका प्रजनन केवल बीजों द्वारा ही होता है । उदाहरणार्थ प्याजी , कृष्णनील , सत्यानाशी गेहूंसा , जंगली जई , लहसुआ आदि ।

( ब ) वानस्पतिक भाग से उत्पन्न होने वाले खरपतवार ( Weeds arising from Vegetative part ) : इस वर्ग के खरपतवार वानस्पतिक भागों द्वारा ही प्रजनन करते हैं । ये खरपतवार अपनी भूमिगत जड़ों , तनों , राइजोम , बल्ब , कन्द , पत्तियों द्वारा वृद्धि व जनन करते हैं । जैसे- दूब घास , मोथा आदि ।

( स ) बीज व वानस्पतिक भागों द्वारा पैदा होने वाले खरपतवार ( Weeds arising from Seed and Vegetative part ) : इस वर्ग के खरपतवार बीज व वानस्पतिक अंगों से अपनी उत्पत्ति करते हैं ।

 

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