खरपतवार का गुणन एवं विस्तार ( Weed Multiplication and Dispersal )
खरपतवार विस्तार ( Weed Dispersal ) – खरपतवारों के बीज व वानस्पतिक भागों का एक स्थान से दूसरे स्थान तक सुगमता से व बिना किसी यत्न के पहुँचना उनके विस्तार का प्राकृतिक तरीका है । ऐसे प्राकृतिक तरीके से विस्तार के कारण खरपतवार प्रकृति में अपना वर्चस्व बनाए हुए है ।
( अ ) वायु द्वारा : कई खरपतवारों के बीज में संरचनात्मक रूपान्तरण पाए जाते हैं , जिससे वे एक स्थान से दूसरे स्थान तक वायु के साथ उड़ कर पहुँच जाते हैं ।
( ब ) जल द्वारा : जलीय खरपतवारों के बीज व पौधे के वानस्पतिक भाग पानी के वेग व धारा के साथ वितरित हो जाते हैं । उदाहरण- जलकुम्भी
( स ) पशुओं व चिड़ियों द्वारा : कई खरपतवारों के बीज पशुओं व चिड़ियाओं द्वारा ग्रहण कर लिये जाते हैं । ये बीज उनकी विष्ठा व बीठ के माध्यम से या उससे निर्मित खाद द्वारा नए स्थानों तक पहुँच जाते हैं ।
( द ) मानव द्वारा : मानव की लापरवाही से खरपतवार बीज व वानस्पतिक भाग एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँच जाते हैं । उदाहरणार्थ- मशीन के पहियों की सफाई नहीं करने से उन पर चिपके हुए बीज नए खेतों तक पहुँच जाते हैं ।
( य ) खाद द्वारा : बिना सड़ी हई खाद के प्रयोग से उनमें निहित खरपतवारों के बीज नए खेत में पहुँच जाते हैं ।
खरपतवार गुणन ( Weed Multiplication ) – खरपतवार का गुणन अथवा प्रजनन मुख्यतः दो माध्यमों से होता है ( i ) बीज द्वारा व ( ii ) वानस्पतिक भाग द्वारा ।
1. बीज द्वारा : अनेक एक व द्विवर्षीय खरपतवार जीवन चक्र में वानस्पतिक वृद्धि के उपरान्त प्रजननीय प्रावस्था में जाकर बीज का निर्माण करते हैं । यह बीजोत्पादन अल्प से लेकर प्रचुर मात्रा में होता है ।
2. वानस्पतिक भाग द्वारा : खरपतवारों का वानस्पतिक गुणन तने या जड़ों के अंश / टुकड़े या उनके निम्न विशिष्ट रूपान्तरणों से होता है –
• प्रकन्द व जड़ स्कन्ध ( Rhizome and root stocks )
• उपरि भूस्तारी ( Runner )
• अन्तः भूस्तारी ( Sucker )
• भूस्तारिका ( Offset )
• कन्द ( Tuber )
• शल्क कन्द ( Bulb )
• जड़ ( Root )
इसके अतिरिक्त अमरबेल का गुणन उसके तार जैसे तने के टूटे हुए टुकड़े से हो जाता है जबकि गाजर घास की पुष्प – कलिकाओं ( Floral buds ) से भी नए पौधों का प्रजनन होता है ।