गेहूं का तना छेदक ( Wheat Stem Borer )
वैज्ञानिक नाम – सिसेमिया इनफेरेन्स ( Sesamia inferens )
गण : लेपिडोप्टेरा
कुल : नोक्टयूडी
गेहूं का तना छेदक कीट को गुलाबी सूंडी के नाम से भी जाना जाता हैं । भारतवर्ष मुख्यतः उत्तर प्रदेश , मध्य प्रदेश , बिहार , राजस्थान तथा तमिलनाडु में पाया जाता हैं ।
लक्षण ( Symptoms ) –
• प्रौढ़ कीट सफेद से भूरे रंग का 10-12 मिमी . लम्बा होता है
• पंख विस्तार 18 से 20 मिमी . होता है । अगले पंखों के किनारों में काली लाइनें होती हैं , एवं पिछले पंख सफेद होते हैं ।
पौषक पौधें ( Nutritious plants ) – इस कीट का प्रकोप धान , मक्का , गेहूँ , जौ , ज्वार , गन्ना , रागी आदि पर अधिक होता हैं ।
क्षति एवं महत्त्व ( Damage and importance ) – इस कीट की सूंडी हानिकारक अवस्था हैं जो कि पौधों के तनों में घुसकर क्षति पहुँचाती हैं । प्रारंभिक अवस्था में पौधों की मध्य कलिका सूखकर मृतगोभ ( Dead heart ) में परिवर्तित हो जाती हैं तथा ऐसे पौधों में बालियाँ सूखी और खोखली रह जाती हैं । यह कीट अप्रैल से जुलाई तक गन्ने पर और जुलाई से अक्टूबर तक धान पर सक्रिय रहता हैं । उत्तरी भारत में शुष्क मौसम में यह गेहूँ , मक्का और ज्वार पर आक्रमण करता हैं ।
जीवन चक्र ( Life Cycle ) – इसके जीवनकाल में 4 अवस्थायें , अण्डा , सूंडी , कृमिकोष ( Pupa ) तथा प्रौढ़ होती हैं । प्रौढ़ मादा पत्तियों तथा पत्तियों के आवरणों पर समूह में पीताभी श्वेत रंग के अंडे देती हैं । मादा अपने जीवन काल में 400 तक अण्डे देती हैं । अण्डों का उष्मायन काल 7 से 10 दिन का होता हैं । इस कीट की सूंडी हल्के रंग की होती हैं , जो अण्डों से निकलने के बाद प्रारंभ में लीफ शीथ को क्षति पहुँचाती हैं । पूर्ण विकसित सूंडी 25 मिमी . लम्बी मोतिया या भूरे गुलाबी रंग की होती हैं । इसका शरीर चिकना , बेलनाकार तथा सिर काले रंग का होता है । शरीर पर गहरे रंग के धब्बे पाये जाते हैं । लट अवस्था 20 से 30 दिनों की होती हैं । पूर्ण विकसित सूंडी तने के अन्दर ही कोषावस्था में बदलती हैं । कृमिकोष भूरे रंग का होता हैं तथा इसकी लम्बाई 12 मि.मी. के लगभग होती हैं । कोषावस्था 7 से 12 दिन की होती हैं । गेहूँ की फसल में इसकी चार पीढ़ियाँ होती हैं । उत्तरी भारत में यह मार्च से नवम्बर तक सक्रिय रहता हैं तथा जाड़े में सुंडी शीतनिष्क्रियता में चली जाती हैं ।
प्रबन्धन ( Management ) –
शस्य प्रबन्धन –
• फसल चक्र अपनाना चाहिए । मक्का या ज्वार के बाद गेहूँ नहीं बोना चाहिए ।
• मृत गोभ ( Dead heart ) वाले पौधों को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए ।
जैविक प्रबन्धन –
• कीट की सूंडीयों के नियंत्रण हेतु प्राकृतिक शत्रुओं जैसे ब्रेकोन किलोनिस ( Bracon chilonis ) , ब्रेकोन जेलीकी ( Bracon gelichiae ) इत्यादि को नियंत्रण हेतु उपयोग में लेना चाहिए ।
रासायनिक प्रबन्धन –
• फसल पर कीट का प्रकोप होने पर क्लोरपाइरीफास 20 ई . सी . या क्यूनॉलफास 25 ई.सी. दवाओं में से किसी एक का 0.05 प्रतिशत का पानी के साथ घोल मिलाकर फसल पर छिड़काव करना चाहिए ।