गोबर की खाद : परिभाषा, मुख्य घटक, तत्व, खाद बनाने की विधि, प्रयोग विधि

0

गोबर की खाद बनाने की विधि एवं प्रयोग

 

गोबर की खाद (Farmyard Manure) : गोबर की खाद से तात्पर्य ऐसी खाद से है जिसमें घरेलु पशुओं ( गाय , भैंस , बैल , भेड़ , बकरी , ऊँट आदि ) के ठोस तथा द्रव मल – मूत्र से बनी बिछावन ( पुआल , भूसा , चारा , पेड़ – पौधों की पत्तियाँ , रेत आदि ) को गड्ढों में सड़ाकर तैयार किया जाता है ।

 

गोबर की खाद के मुख्य घटक (Main components of manure) – गोबर की खाद के तीन मुख्य घटक ( अवयव ) गोबर , मूत्र और बिछावन हैं ।

1. गोबर (Cow dung) – पशुओं के मल ( गोबर ) के ठोस पदार्थ में कई अघुलनशील व बिना पचे पदार्थ होते है । इसके अतिरिक्त 0.3-0.7 प्रतिशत नाइट्रोजन , 0.25 प्रतिशत फॉस्फोरस व 0.3-0.5 प्रतिशत पोटेशियम तथा कुछ गौण व सूक्ष्म पोषक तत्व आदि होते है ।

2. मूत्र (Urine) – मूत्र का मुख्य अवयव यूरिया है , यह 2 प्रतिशत होता है । इसके अतिरिक्त मूत्र में अनेक रासायनिक पदार्थ घुलनशील अवस्था में होते हैं । मूत्र में नाइट्रोजन 0.4-1.35 प्रतिशत , फॉस्फोरस 0.05-0.10 प्रतिशत व पोटेशियम 0.5-2.0 प्रतिशत होता है ।

3. बिछावन (Bedding) – पशुओं के मूत्र को शोषित करने के लिये बिछावन का प्रयोग करते है । बिछावन में पौधे के लिये आवश्यक पोषक तत्व भी उपलब्ध अवस्था में पाये जाते हैं । बिछावन से खाद के ढेर में वायु का संचार अच्छा होता है , जिससे जीवाणुओं की क्रियाशीलता बढ़ती है तथा खाद सड़ने में मदद मिलती है ।

 

गोबर की खाद में पोषक तत्व (Nutrients in Farmyard Manure) – गोबर की खाद में सभी पोषक तत्व जैसे – नाइट्रोजन , फॉस्फोरस , पोटेशियम , कैल्शियम , मैग्नीशियम , गंधक , लोहा , ताँबा , जस्ता , मैंगनीज आदि पाये जाते हैं ।

 

गोबर की खाद में मुख्य तत्वों की मात्रा (Amount of main elements in Manure) –

नाइट्रोजन : 0.5 प्रतिशत

फॉस्फोरस : 0.25 प्रतिशत

पोटेशियम : 0.5 प्रतिशत

 

गोबर की खाद तैयार करने की विधि (Manure preparation method) –

1. वर्तमान प्रचलित विधि – हमारे देश में गोबर की खाद तैयार करने की वर्तमान प्रचलित विधि दोषपूर्ण है । इससे प्राप्त खाद में पोषक तत्वों की मात्रा कम होती है व खाद की गुणवत्ता निम्न स्तर की होती है । मिट्टी द्वारा सोखा गया मूत्र तथा बचा हुआ चारा ढेर के रूप में खुले गड्ढों में इकट्ठा कर लेते हैं । अधिकांश गोबर को ईंधन के रूप में काम में लिया जाता है ।

2. संशोधित गड्ढा विधि – इस विधि से खाद बनाने के लिये एक पशु के लिए 1.10 मीटर गहरा , 2.0 मीटर चौड़ा व 3.0 मीटर लम्बा गड्ढा एक वर्ष के लिए पर्याप्त रहता है । पशुओं की संख्या अधिक होने पर गड्ढों की गहराई , लम्बाई व चौड़ाई बढ़ाने की अपेक्षा उनकी संख्या बढ़ाना उचित रहता है । रेतीली भूमि में गड्ढे पक्के बनाने चाहिए जिससे पोषक तत्वों का ह्रास रिसकर न हों । चिकनी भूमि में पक्के व कच्चे दोनों प्रकार के गड्ढे बनाये जा सकते है । गड्ढे छायादार व ऊँचे स्थान पर बनाने चाहिये जिससे वर्षा का पानी गड्ढो में न भरे ।

सर्वप्रथम गड्ढे के पैंदे में 10-20 सेमी . की परत चारे या बिछावन की लगानी चाहिये । इसके बाद गोबर व मूत्र की 75-100 सेमी . परत डालनी चाहिए । तीसरी परत पुनः बिछावन की 75-100 से.मी. मोटी डालें । इस क्रम में गड्ढे की भराई भूमि सतह से 50 सेमी . ऊँचाई तक करें । इसके बाद ढेर को समतल कर 10 सेमी . मिट्टी की परत से गड्ढे को बन्द कर देना चाहिए । गड्ढे में खाद 5-6 माह में सड़कर तैयार हो जाता है ।

3. ट्रेंच विधि – इस विधि में 6.0 मीटर लम्बाई , 1.5 मीटर चौड़ाई व 1.0 मीटर गहराई की ट्रेंच ( खाई या नाली ) तैयार की जाती है । इस विधि में ट्रेंच की लम्बाई बढ़ाई जा सकती है , परन्तु गहराई नहीं बढ़ाते है । इस विधि में बिछावन , मल – मूत्र आदि को गड्ढे के आधे भाग में भरते हैं । जब गड्ढे का आधा भाग भरते – भरते भूतल से आधा मीटर ऊँचा हो जाता है तो उसे गोलाकार या डोम आकार का रूप देकर गोबर तथा मिट्टी के मिश्रण से लेप देते हैं । आधा भाग भर जाने के पश्चात् गड्ढे के दूसरे भाग को भर कर इसी प्रकार लेप करते हैं । इस विधि की विशेषता यह है कि जब तीन माह में दूसरा ढ़ेर बनता है तब तक पहले ढ़ेर की खाद सड़कर प्रयोग के लिये तैयार हो जाती है । इस तरह एक ही गड्ढे से पूरे वर्ष सड़ी हुई खाद खेत मे देने के लिए प्राप्त हो सकती है । इस प्रकार तैयार की गई खाद में नाइट्रोजन की मात्रा भी अधिक होती है ।

 

सड़ी हुई गोबर की खाद की पहचान (Identification of rotted Manure) – अच्छी सड़ी हुई गोबर का कोई भी घटक अलग से नहीं दिखाई देता है , खाद में किसी तरह की दुर्गन्ध नहीं आती है , खाद भुरभुरी तथा उसका रंग हल्का भूरा होता है ।

 

गोबर के खाद की प्रयोग विधि (Method of use) – साधारणतया सभी फसलों में 10-15 टन प्रति हेक्टेयर व सब्जियों में 20-25 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद की मात्रा प्रयोग में लेते हैं । बुआई के 3-4 सप्ताह पूर्व अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग करते हैं । खेत में खाद को समान रूप से बिखेरकर हल से जुताई करके मिट्टी में मिलाते हैं । खेत में खाद डालने के बाद ज्यादा समय तक खुले में नहीं छोड़ना चाहिए अन्यथा खाद से नाइट्रोजन का ह्रास होता है । यदि खेत में कुछ समय के लिए । खाद को खुला छोड़ना हो तो छोटी – छोटी ढेरियाँ नहीं करके बड़े ढेर के रूप में ही खाद को खेत में खुला छोड़ें ।

 

Share this :

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here