चने का फली छेदक (Gram Pod Borer) : लक्षण, क्षति, जीवन चक्र, प्रबन्धन

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चने का फली छेदक ( Gram Pod Borer )

 

वैज्ञानिक नाम – हेलिकोवरपा आर्मीजेरा ( Helicoverpa armigera )

गण : लेपिडोप्टेरा

कुल : नोक्टयूडी

चने का फली छेदक एक सर्वभक्षी कीट एवं सर्वव्यापी नाशीकीट हैं । अमेरिका में यह कपास का अत्यंत विनाशकारी कीट है , वहाँ पर इसे ” कॉटन बालवर्म ” के नाम से पुकारते हैं ।

 

लक्षण ( Symptoms ) –

• इसके वयस्क पुष्ट ( Stout ) जैतूनी – धूसर या लाल – भूरे रंग के रात्रिचर शलभ होते हैं ।

• इसके पूर्ण विकसित गिडार ( Caterpillar ) लगभग 35 मि.मी. लम्बे होते हैं ।

• इनका रंग हल्का पीला – हरा या हल्का पीला – भूरा होता है तथा पार्श्व में लम्बवत् पट्टियाँ पाई जाती हैं ।

पोषक पौधे ( Nutritious plants ) – चना , मटर , कपास , अरहर , मक्का के कच्चे भुट्टे , ज्वार , सूर्यमुखी , भिण्डी , टमाटर तथा तम्बाकू आदि इसके प्रमुख पोषी पौधे हैं ।

क्षति एवं महत्त्व ( Damage and importance ) – यह कीट लगभग पूरे वर्ष सक्रिय रहता हैं । प्रारम्भ में इस कीट की लट चने की पत्तियों व कोमल टहनियों को नुकसान पहुंचाती हैं तथा बाद में कलियों , फूलों तथा फलियों पर आक्रमण करती हैं । फसल में फलियाँ आ जाने पर सुंडी छिद्र करके अन्दर घुस जाती है तथा दानों को खा जाती हैं । इस प्रकार सभी दानों को नष्ट कर फलियों को खोखली कर देती हैं । एक सुंडी वयस्क बनने से पूर्व लगभग 40-50 फलियों को क्षति पहुँचा देती हैं । चने के अतिरिक्त इस कीट की सुंडी टमाटर के फलों के अन्दर घुसकर गुदे ( Flesh ) को खा जाती हैं तथा फलों में छेद कर देती हैं । इस कीट के प्रकोप से टमाटर में 30-60 प्रतिशत तक फल खराब हो जाते हैं ।

जीवन चक्र ( Life Cycle ) – चने की फसल में प्रौढ़ शलभ नवम्बर के प्रारंभ में ही दिखाई देने लगते हैं । इसी समय मादा शलभ मैथुन क्रिया कर पौधे की कोमल एवं शीर्ष टहनियों , पत्तियों , कलियों तथा फूलों पर अलग – अलग अण्डे देती हैं । एक मादा अपने जीवन काल में 500 से 1000 अण्डे देती हैं । इन अण्डों से 2 से 4 दिन में शिशु सुंडी निकल जाती हैं । अण्डे से निकलने के बाद गिडार हल्के रंग की तथा 2 मि.मी. से 2.5 मि.मी. लम्बी होती हैं ।

अण्डों से निकलते ही गिडार पौधे की कोमल पत्तियों को खाती हैं तथा थोड़ी विकसित हो जाने पर फूलों तथा फलों को खाने लगती हैं । सुंडी अपने सिर को फली में धंसा कर दानों को खाती रहती है तथा आधा शरीर बाहर लटकता रहता हैं । गिडार अपने जीवन काल में पाँच बार त्वचा निर्मोचन करती हैं तथा 13 से 20 दिन में पूर्ण विकसित हो जाती हैं । पूर्ण विकसित सुंडी की लम्बाई 35 मि.मी. होती हैं । सुंडी कृमिकोष में परिवर्तित होने से पहले फलियों से निकलकर भूमि में 8 से 12 से.मी. की गहराई पर जाकर मिट्टी का खोल बनाकर कोषावस्था में बदलती रहती हैं । साधारण अवस्था में कोषावस्था 8 से 15 दिन में पूर्ण हो जाती हैं ।

प्रबन्धन ( Management ) –

शस्य प्रबन्धन –

• गर्मियों के दिनों ( मई – जून माह ) में खेतों में गहरी जुताई करने से भूमिगत कोशितों ( Pupae ) लटों एवं प्रौढ़ों के बाहर आ जाने से जैविक ( परभक्षी और परजीवी ) एवं अजैविक ( तापक्रम ) कारकों के कारण नष्ट हो जाते हैं ।

• खेतों में प्रकाश पाश व फीरोमोन पाश लगाकर फल वेधक के वयस्कों ( शलभों ) को आकर्षित कर नष्ट कर देना चाहिए ।

• फल छेदक कीट का नियंत्रण पीले / संतरे रंग के गेंदा की अफ्रीकन लम्बी प्रजाति पाश फसल के रूप में उगाकर भी किया जा सकता है । गेंदा और टमाटर को कतारों ( 1:14 ) में उगाकर टमाटर फल- छेदक द्वारा क्षति कम की जा सकती है ।

रासायनिक प्रबन्धन –

• खड़ी फसल में फल वेधक कीट का नियंत्रण करने के लिए मैलाथियान ( 5 प्रतिशत ) या क्यूनॉलफास ( 1.5 प्रतिशत ) चूर्ण का 20-25 कि.ग्रा . प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव या फसल की पुष्पित अवस्था में क्यूनॉलफास ( 25 ई.सी. ) 1.25 लीटर का प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए । छिड़काव 15 दिन पश्चात् पुनः किया जाना चाहिए ।

 

टिड्डा / फड़का ( Locust & Grasshopper )

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