चयन ( Selection )
परिभाषा ( Definition ) : पूर्व स्थित जीन समूह चाहे वह प्राकृतिक हो अथवा कृत्रिम रूप से तैयार किया गया हो , में से उत्कृष्ट लक्षणों वाले पौधों को छाँटकर अगली पीढ़ी में उन्हीं की सन्तति को उगाने की विधि को चयन ( Selection ) कहते है ।
प्रकृति में सबसे अधिक अनुकूल पौधे ही पनप पाते है तथा अनुपयुक्त पौधे धीरे – धीरे नष्ट हो जाते हैं । इसे प्राकृतिक चयन ( Natural Selection ) कहते है तथा जब मनुष्य आवश्यकतानुकूल पौधों का चयन करते है तो उसे कृत्रिम चयन ( Artificial Selection ) कहते है ।
अतः चयन का अभिप्राय होता है कि छाँटे गये पौधों में अधिकतर लाभप्रद लक्षण विद्यमान हों । इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए स्वपरागित फसलों में दो विधियाँ अपनायी जाती है – समूह चयन ( Mass Selection ) एवं शुद्ध वंशक्रम चयन ( Pureline Selection )
1. समूह चयन ( Mass Selection ) : किसी समष्टि में से एक समान उत्कृष्ट लक्षणों वाले पौधों को अलग छाँटकर तथा उनके बीजों को एक साथ मिला देने की विधि को समूह चयन कहते हैं ।
समूह चयन की विधि ( Method of Mass Selection ) –

समूह चयन के गुण ( Merits of Mass Selection ) –
( i ) समूह चयन द्वारा विकसित किस्में अपेक्षाकृत अधिक अनुकूलित होती हैं ।
( ii ) इसके द्वारा विकसित किस्मों में बहुत आनुवांशिक विविधता उपस्थित होती है । अतः इन किस्मों में पुन : चयन द्वारा सुधार किया जा सकता है ।
( iii ) यह विधि सबसे सरल प्रजनन विधि है ।
( iv ) इस विधि के उपयोग से शुद्ध वंशक्रम किस्मों का शुद्धिकरण किया जा सकता है ।
समूह चयन के दोष ( Demerits of Mass Selection ) –
( i ) इस विधि से विकसित किस्मों में समरूपता का अभाव होता है ।
( ii )इस विधि से शुद्ध वंशक्रम चयन विधि की अपेक्षा कम सुधार होता है ।
( iii ) संतति परीक्षण न करने के कारण चयन किये गये पौधों का वास्तविक मूल्यांकन नहीं हो पाता है ।
( iv ) बीज प्रमाणीकरण के लिए इस विधि द्वारा विकसित किस्मों की पहचान मुश्किल होती है ।
( v ) इस विधि से सुधार के लिए मूल समष्टि में आनुवांशिक विविधता का उपस्थित होना अनिवार्य है ।
2. शुद्ध वंशक्रम चयन ( Pureline Selection ) : किसी स्वपरागित प्रजाति के एक पूर्णतया समयुग्मज पौधे की संततियों को शुद्ध वंशक्रम कहते है । किसी भी शुद्ध वंशक्रम के सभी पौधों का जीनप्रारूप एक समान होता है । परिणामस्वरूप उनके लक्षणप्रारूपों में उपस्थित विविधता वंशागत न होकर केवल वातावरण के कारण होती है । यह शुद्ध वंशक्रम सिद्धान्त है ।
शुद्ध वंशक्रम चयन की विधि ( Method of Pureline Selection ) –

शुद्ध वंशक्रम चयन के गुण ( Merits of Pureline Selection ) –
( i ) किसी भी विविधतापूर्ण समष्टि में सर्वाधिक सुधार होता है ।
( ii ) विकसित किस्मों में शुद्ध वंशक्रम के कारण इनमें आनुवांशिक विविधता का पूर्ण अभाव होता है ।
( iii ) विकसित किस्म को बीज प्रमाणीकरण के लिए पहचानना बहुत आसान होता है ।
शुद्ध वंशक्रम चयन के दोष ( Demerits of Pureline Selection ) –
( i ) इस विधि की सफलता के लिए मूल किस्म में आनुवांशिक विविधता का उपस्थित होना अनिवार्य है ।
( ii ) विकसित किस्मों का अनुकूलन मूल किस्म की अपेक्षा कम हो सकता है ।
( iii ) समूह चयन की अपेक्षा अधिक समय , श्रम तथा धन की आवश्यकता होती है ।
शुद्ध वंशक्रम चयन तथा समूह चयन में तुलना ( Comparison between Pure line Selection and Mass Selection ) –