जननद्रव्य ( Germplasm )
परिभाषा ( Definition ) – किसी फसल की प्रजातियों एवं उनके जंगली सम्बन्धियों में उपस्थित सम्पूर्ण आनुवांशिक द्रव्य ( Hereditary Material ) को उस प्रजाति का जननद्रव्य कहते है । जननद्रव्य को आनुवांशिकी संसाधन भी कहा जाता है ।
पादप प्रजनन का उद्देश्य फसलों के जीन प्रारूपों को रूपान्तरित करके मानव के लिए और अधिक उपयोगी बनाना हैं । जीन प्रारूपों में वांछित परिवर्तन के लिए वांछनीय जीन पादप प्रजनकों के पास उपलब्ध होना आवश्यक है । भारत में जननद्रव्य को एकत्रित एवं संरक्षित करना राष्ट्रीय पादप आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो ( NBPGR ) की जिम्मेदारी है ।
निम्नलिखित लाइनें जननद्रव्य के समूह के अर्न्तगत है –
1. देशी किस्में ( Local Races ) : देशी किस्में वह होती हैं जिनका विकास योजनाबद्ध तरीके से किसी प्रजनक द्वारा नही होता है तथा लम्बे समय से किसी क्षेत्र में उगायी जाती रही हैं ।
2. पुरानी अप्रचलित किस्में ( Obsolete Varieties ) : पादप प्रजनक द्वारा योजनाबद्ध तरीके से विकसित की गयी किस्में जो कभी खेती के लिए उपयोग में ली जाती थीं । इन किस्मों को वर्तमान में खेती के लिए नही उगाया जाता है ।
3. खेती के उपयोग में आ रही किस्म ( Varieties in Cultivation ) : ये किस्में उपज , गुणवत्ता आदि के लिए जीनों का उत्तम स्त्रोत होती हैं । इन किस्मों को किसी नये क्षेत्र में ले जाकर ( पादप पुरःस्थापन ) सीधे खेती के लिए विमोचित किया जा सकता है ।
4. प्रजनन लाइनें ( Breeding lines ) : प्रजनन कार्यक्रमों द्वारा विकसित लाईनें / समष्टियाँ होती हैं । इनमें अक्सर उपयोगी जीन संयोजन पाये जाते हैं ।
5. जंगली प्रारूप एवं जंगली सम्बन्धी ( Wild Forms and Wild Relatives ) : किसी फसल का जंगली प्रारूप , वह जंगली प्रजाति होती है , जिससे कि उस फसल की सीधे उत्पत्ति हुई होती है । जंगली सम्बन्धी शेष उन सभी प्रजातियों को कहते है जो कि फसल प्रजाति के जैविक विकास के दौरान पूर्वज प्रजाति रही होती है । जंगली प्रारूप का सम्बन्धित फसल प्रजाति से संकरण सरल होता है जबकि जंगली सम्बन्धियों के साथ संकरण अपेक्षाकृत कठिन होता है ।
6. विशिष्ट आनुवांशिक स्टॉक ( Special Genetic Stock ) : इस समूह में उत्परिवर्ती लाइनें , क्रोमोसोमीय विपथन युक्त लाइनें , आनुवांशिक चिन्ह लाइनें आदि शामिल होती हैं ।
जननद्रव्य का वर्गीकरण ( Classification of Germplasm ) –
ग्राम्यन के आधार पर जननद्रव्य को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है :
1. कृष्य जननद्रव्य ( Cultivated germplasm ) : खेतों में उगाई जाने वाली प्रजातियाँ ।
2. जंगली जननद्रव्य ( Wild germplasm ) : जंगल में उगने वाली प्रजातियाँ ।
उत्पत्ति स्थान के आधार पर भी जननद्रव्य को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है :
1. देशी जननद्रव्य ( Indigenous germplasm ) : अपने ही देश में उत्पन्न जननद्रव्य ।
2. विदेशी जननद्रव्य ( Exotic germplasm ) : अन्य देशों में उत्पन्न जननद्रव्य ।
जीन कोष ( Gene Pool ) : उन सभी प्रजातियों या विभेदों को जिनमें आपस में संकरण होता है अथवा हो सकता है , इनमें उपस्थित जीनों एवं उनके विकल्पियों को जीन कोष कहते हैं ।
1. प्राथमिक जीन कोष ( Primary Gene Pool ) : प्राथमिक जीन कोष के अन्तर्गत वे सभी प्रजातियाँ आती हैं जिनमें सफलतापूर्वक संकरण होता है और जिनके संकर उर्वर ( Fertile ) होते है ।
2. द्वितीयक जीन कोष ( Secondary Gene Pool ) : द्वितीयक जीन कोष सदस्यों का संकरण प्राथमिक जीन कोष के सदस्यों के साथ बहुत ही कठिनाई से होता है । इन संकरणों से प्राप्त F , संकर या तो बंध्य ( Sterile ) होते हैं अथवा आंशिक उर्वर ( Partial Fertile ) होते हैं ।
3. तृतीयक जीन कोष ( Tertiary Gene Pool ) : इस समूह में उन सभी प्रजातियों को रखा जाता है जिनका प्राथमिक जीन कोष के सदस्यों के साथ संकरण बहुत कठिन होता है , और इनसे प्राप्त संकर F , पौधे बंध्य ( Sterile ) होते हैं ।
जननद्रव्य संरक्षण ( Germplasm Conservation ) : जननद्रव्य को ऐसी स्थिति में रखना , जिससे उसके नष्ट होने की निम्नतम आशंका हो तथा इसकी प्रविष्टियों को या तो सीधे खेत में उगाया जा सके अथवा खेत में उगाने के लिए सफलतापूर्वक तैयार करने की प्रक्रिया को जननद्रव्य संरक्षण कहा जाता है ।
जननद्रव्य संरक्षण की दो विधियाँ होती हैं –
( क ) स्व – स्थान संरक्षण ( In – situ conservation ) : जब जननद्रव्य को उसी स्थान , जिसमें वह प्राकृतिक रूप से उगता है , संरक्षित किया जाता है तो उसे स्व – स्थान जननद्रव्य संरक्षण कहा जाता है ।
जिस क्षेत्र को मानव गतिविधियों से परे घोषित करके ऐसी व्यवस्था की जाती है कि जननद्रव्य को कोई खतरा नहीं हो , ऐसे सुरक्षित क्षेत्र को जीन सैंक्चुअरी कहा जाता है ।
( ख ) बाह्य- स्थान संरक्षण ( Ex – situ conservation ) : जननद्रव्य को उसके प्राकृतिक आवास से दूर संरक्षित करना बाह्य स्थान संरक्षण कहलाता है ।
बाह्य स्थान संरक्षण निम्न रूप में किया जा सकता है –
1. बीज बैंक ( Seed Bank )
2. पादप या क्षेत्र बैंक ( Plant or field Bank )
3. प्ररोहाग्र बैंक ( Shoot – tip Bank )
4. कोशिका एवं अंग बैंक ( Cell and Organ Bank )
5. डी . एन . ए . बैंक ( DNA Bank )
जननद्रव्य संग्रह ( Germplasm Collection ) : किसी भी फसल एवं उसके जंगली संबधियों की बहुत सी किस्मों या जीनप्रारूपों के संग्रह को उस फसल का जननद्रव्य संग्रह या जीन बैंक ( Gene bank ) कहते हैं ।
जननद्रव्य संरक्षण की क्रियाएँ ( Activities in Germplasm Conservation ) : जननद्रव्य संरक्षण में की जाने वाली क्रियाओं को निम्नलिखित वर्गों में बाँटा जा सकता हैं –
1. संग्रह ( Collection )
2. संरक्षण ( Conservation )
3. मूल्यांकन ( Evaluation )
4. सूचीबद्धन ( Cataloguing )
5. गुणन एवं वितरण ( Multiplication and Distribution )
6. उपयोग ( Utilization )
जननद्रव्य संग्रह जिसमें किसी फसल एवं उससे सम्बन्धित प्रजातियों के विश्व भर से एकत्रित किये गये विभेद हों उसको विश्व संग्रह कहते हैं ।
भारत में NBPGR में भारतीय राष्ट्रीय जीन बैंक ( Indian National Genebank ) स्थित है । इस जीन बैंक के अन्तर्गत जननद्रव्य को बीज बैंकों , प्रक्षेत्र बैंकों , मंदवृद्धि कल्चरों एवं निम्नताप संरक्षित जाइगोटी भ्रूणों के रूप में संरक्षित किया जाता है ।
NBPGR मुख्यालय के बीज बैंक में जननद्रव्य को आधार संग्रह ( Base Collection ) के रूप में लम्बी अवधि के लिए अनुरक्षित किया जाता है । जबकि सक्रिय संग्रहों ( Active Collection ) को मध्यम अवधि के लिए ब्यूरो मुख्यालय तथा इसके क्षेत्रीय स्टेशनों पर अनुरक्षित करते हैं ।