जीवांश खाद एवं उनकी उपयोगिता
जीवांश खाद – जीवांश शब्द का सन्धि विच्छेद है – जीव + अंश । अतः जीवांश खाद उस खाद को कहते हैं , जिसमें जीव का अंश हो , ऐसी खाद को प्राकृतिक या जैविक या कार्बनिक खाद भी कहते हैं । जीवांश खाद में मुख्यतः गोबर की खाद , हरी खाद , कम्पोस्ट , खली की खाद , हड्डी की खाद , पोल्ट्री खाद , मछली की खाद , रक्त की खाद , मानव विष्टा की खाद आदि आती है । जैविक उर्वरक जैसे राइजोबियम , एजोटोबेक्टर , नील हरित शैवाल आदि भी जीवांश खाद ही हैं ।
जल, वायु तथा प्रकाश के अतिरिक्त जीवों के लिए प्रकृति की सबसे महान देन भूमि है । यदि भूमि की उर्वरता एवं उत्पादकता कम रहेगी तो उत्पादन कम हो सकता है । इसलिए हमको धरती माता की भूख मिटाने के लिए कोई कसर नहीं रखनी चाहिए । ” धरती माता के सपूत , जो धरती की हर प्रकार की भूख – प्यास की चिन्ता करते हैं , धरती माता के धन के सच्चे अधिकारी हैं । “ – महात्मा गाँधी
एक लोकोक्ति है ” खाद पड़ें तो खेत , नहीं तो मिट्टी रेत ” अर्थात् खेत खाद से ही बनता है नहीं तो केवल मिट्टी रेत ही है । अतः खाद से ही खेत की उत्पादन क्षमता बढ़ती है ।
खाद- पौधों को आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए वे सभी कार्बनिक पदार्थ जो भूमि में मिलाये जाने पर , भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाते हैं , खाद कहलाते हैं । खाद का अभिप्राय प्राकृतिक पदार्थों से है । इनमें पशु – पक्षियों का मल – मूत्र , पेड़ – पौधे , घास – चारा आदि के अवशेष सम्मिलित होते हैं । स्थूल कार्बनिक खादों में गोबर की खाद , कम्पोस्ट , हरी खाद आदि व सान्द्रित कार्बनिक खादों में खलियाँ , हड्डी की खाद आदि आते हैं ।
खाद शब्द की उत्पत्ति संभवतया संस्कृत के शब्द ‘ खाद्य ‘ से हुई , जिसका अर्थ भोजन से है । भोजन संतुलित एवं पूर्ण हो , तभी पेड़ – पौधे अपनी वृद्धि एवं विकास पूर्णरूपेण कर सकते हैं । ऐसा संतुलित एवं पूर्ण भोजन पौधों को केवल जीवांश खाद से ही प्राप्त हो सकता है ।
जीवांश खादों की उपयोगिता – सघन खेती में समन्वित पौध पोषण प्रणाली का एक महत्वपूर्ण स्थान है । भारत में ही नहीं अपितु विश्व में कृषि उत्पादन में 50 प्रतिशत वृद्वि रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से ही हुई । वर्तमान समय में उच्च विश्लेषण उर्वरकों जैसे यूरिया , डाइअमोनियम फॉस्फेट और म्यूरेट ऑफ पोटाश के अधिक प्रचलन के कारण मृदा में गौण व सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी आ रही है । भारत में 47 प्रतिशत मृदाओं में जस्ता , 11.5 प्रतिशत में लोहा , 4.8 प्रतिशत में ताँबा तथा 4 प्रतिशत मृदाओं में मैंगनीज की कमी है जिनका प्रभाव फसलों पर पड़ रहा है ।
पौधों को अपना जीवन पूर्ण करने के लिए 17 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है जोकि केवल उर्वरकों के प्रयोग से पूर्ण नहीं की जा सकती है । आवश्यक मात्रा में जीवांश खादों के प्रयोग से प्रमुख तत्वों के साथ – साथ गौण व सूक्ष्म पोषक तत्वों की पूर्ति भी आसानी से हो जाती है ।
जीवांश खाद के उपयोग से मृदा की भौतिक , रासायनिक एवं जैविक तीनों ही अवस्थाओं में सुधार होता है । इसकी उपयोगिता निम्न बिंदुओं से स्पष्ट है –
( अ ) मृदा की भौतिक अवस्था पर प्रभाव –
1. भूमि की संरचना में सुधार होता है । रेतीली हल्की मिट्टी सघन तथा दानेदार संरचना की हो जाती है । भारी भूमि हल्की तथा भुरभुरी हो जाती है ।
2. मृदा की जलधारण क्षमता में वृद्धि होती है ।
3. मृदा में वायु संचार में वृद्धि होती है ।
4. पानी व वायु द्वारा मृदा अपरदन कम हो जाता है , जिससे मृदा संरक्षण होता है ।
5. मृदा ताप नियंत्रण में रहता है ।
6. पौधों की जड़ों का विकास अच्छा होता है ।
7. भूमि में जल निकास अच्छा हो जाता है ।
( ब ) मृदा की रासायनिक अवस्था पर प्रभाव –
1. पौधों को सभी आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति के साथ – साथ हारमोन्स व एन्टीबायोटिक्स की भी प्राप्ति होती है जो विशेष लाभकारी होते हैं ।
2. क्षारीय मृदा का पी.एच. मान कम हो जाता है ।
3. मृदा की क्षारीयता तथा लवणीयता में सुधार होता है ।
4. मृदा में कार्बन की मात्रा बढ़ जाती है ।
5. मृदा में पाये जाने वाले विषैले पदार्थों का प्रभाव कम हो जाता है ।
6. जीवांश खाद के उपयोग व अपघटन से मृदा में स्थिर तत्व विलेयशील होकर पौधों को आसानी से उपलब्ध होते हैं ।
7. मृदा की उभय प्रतिरोधी क्षमता बढ़ती है ।
8. मृदा की धनायन विनिमय क्षमता में वृद्धि होती है ।
( स ) मृदा की जैविक अवस्था पर प्रभाव –
1. मृदा में लाभदायक जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि होती है ।
2. जीवाणुओं की क्रियाशीलता में वृद्धि होने के कारण पौधों को पोषक तत्व प्राप्त होते रहते हैं ।
3. जीवांश खादें सूक्ष्म जीवों के लिए भोजन व उर्जा प्रदान करती हैं जिससे सूक्ष्म जीवों द्वारा मृदा में होने वाली क्रियाएँ जैसे- नाइट्रीकरण , अमोनीकरण ( ऑक्सीकरण ) तथा नाइट्रोजन स्थिरीकरण में बढोतरी हो जाती है ।
4. मृदा में वायु से नाइट्रोजन का स्थिरीकरण तीव्र गति से होने लगता है ।
5. जीवाणु जटिल पदार्थों को विच्छेदित कर आयनिक रूप में पौधों को उपलब्ध कराते हैं ।
जीवांश खाद का वर्गीकरण –
जीवांश खादों को दो वर्गों में विभक्त किया जाता है –
1. स्थूल कार्बनिक खादें – ऐसी जीवांश खादों में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा अधिक एवं पोषक तत्वों की मात्रा कम होती है । जैसे – गोबर की खाद , कम्पोस्ट , वर्मीकम्पोस्ट , हरी खाद , मानव विष्ठा , चिड़ियों की बीट , अपवक , गंदे नालों की खाद , मैले की खाद आदि ।
2. सान्द्र कार्बनिक खादें – ऐसी जीवांश खादों में कार्बनिक – पदार्थों की मात्रा कम एवं पोषक तत्वों की मात्रा अधिक होती है । जैसे – खलियाँ , हड्डी का चूरा , सूखा रक्त , मछली की खाद आदि ।