टिकाऊ खेती ( Sustainable Farming ) : परिभाषा, सिद्धान्त, घटक, मानक

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टिकाऊ खेती ( Sustainable Farming )

 

परिभाषा ( Definition ) – टिकाऊ खेती एक कृषि पद्धति है जिसमें कृषि संसाधनों का इस प्रकार सफल प्रबंधन किया जाता है जिससे मानव की आवश्यकताएँ पूरी हो सकें, साथ ही पर्यावरण में सुधार हो या गिरावट न आए और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा हो सके ।

टिकाऊपन ( Sustainability ) का शब्दिक अर्थ है ” किसी घटक की उत्पादन क्षमता को लंबे समय तक निरन्तर बनाए रखना ” ।

आमतौर पर इस सिद्धान्त को अगर कृषि से जोड़ दिया जाए तो इसका अर्थ है कि ऐसी कृषि पद्धति जो भूमि की उत्पादकता व लाभप्रदता में कोई विशेष परिवर्तन किए बगैर उत्पादन को बरकरार रखें । विश्व पर्यावरण और विकास आयोग और उसकी आर्थिक विकास एवं पर्यावरण सलाहकार समिति की रिपोर्टों में इस बात का बल दिया गया है कि कृषि एवं आर्थिक विकास तथा इसमें प्रयुक्त होने वाली नई तकनीकों को पर्यावरण सुरक्षा से जोड़ना होगा । इस परिप्रेक्ष्य में टिकाऊ खेती कृषि की ऐसी पद्धति है जिसमें पर्यावरण को बिना क्षति पहुँचाए खेती की पैदावार बढ़ती रहे तथा यह स्थिति लम्बे समय तक कायम रहे । ऐसी प्रणाली में उत्पादकता का मापदण्ड निम्नलिखित तरह से आंका गया है –

उत्पादकता = उत्पादन का मान + प्राकृतिक धरोहरों पर प्रभाव / निवेश का मान

 

टिकाऊपन के मानक ( Sustainability Standards ) – टिकाऊ खेती के निर्धारण के लिए निम्नलिखित तीन महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं का समावेश होना अति आवश्यक है –

1. दक्षता ( Efficiency ) – टिकाऊ खेती के लिए यह आवश्यक है कि उपलब्ध संसाधनों का दक्षता से उपयोग हो । प्रति इकाई संसाधन के उपयोग पर अधिक से अधिक उत्पादन मिले । दक्षता इंगित करती है कि प्रक्षेत्र पर उपलब्ध सभी संसाधनों का बुद्धिमता व संतुलित रूप से इष्टतम उपयोग हो ।

2. पर्यावरण ( Environment ) – कृषि उत्पादन को बढ़ाने वाली पद्धतियाँ या इसमें प्रयुक्त होने वाले संसाधनों का इस प्रकार उपयोग करें जिससे कि प्राकृतिक संसाधनों का कम से कम ह्यस हो एवं पर्यावरण का पूरा संरक्षण हो अर्थात् मुख्य रूप से मृदा , जल , जलवायु उर्जा तथा पोषक तत्वों की प्रभावकारी एवं गुणकारी स्थिति बनी रहे ।

3. समय ( Time ) – टिकाऊपन की कोई समय सीमा नहीं है । यह अनन्त है । दीर्घावधि तक कृषि की नई तकनीकों का प्रभावकारी व गुणकारी स्वभाव कायम रखने से टिकाऊपन बना रहता है । आधुनिक खेती के तौर – तरीके लाभकारी जरूर हैं लेकिन थोड़े समय के लिए । दीर्घावधि के लिए खेती को लाभकारी , टिकाऊ खेती के सिद्धान्तों व प्रणालियों को अपनाकर ही बनाया जा सकता है ।

 

टिकाऊ खेती के सिद्धान्त ( Principles of Sustainable Farming ) – टिकाऊ खेती के मुख्य सिद्धान्त निम्न हैं –

1. सभी कृषि कार्यकलापों को क्रियान्वित करने के समय इस बात से सजग रहना चाहिए कि कहीं कोई विधि प्राकृतिक संतुलन के किसी घटक पर विपरीत या प्रतिस्पर्धातमक प्रभाव नहीं डाल रही है यह कृषि – पारिस्थितिकी के घटकों में समांजस्यकारी होनी चाहिए ।

2. परम्परागत व देशज कृषि तकनीकों को परिष्कृत करने के बजाए नई तकनीकों के साथ इसका सामंजस्य प्रेरित करना ।

3. सभी उत्पादक एवं लाभप्रद कृषि क्रियाओं के समावेश पर जोर देना ।

4. प्रकृतिक संसाधनों का संरक्षण करने वाले सभी पुरानी व नई तकनीकों को कृषि कार्यकलापों में अधिकाधिक सम्मिलित करना ।

5. स्वास्थ्य व सुरक्षा को पूरा ध्यान देने वाली होनी चाहिए ।

6. कम लागत वाली कृषि तकनीकों व नवीनीकृत संसाधनों पर अधिक बल देना ।

7. दीर्घकाल तक प्राकृतिक संतुलन व मानव आवश्यकता का ध्यान रखें ।

8. यह एक निरन्तर व गतिमान पद्वति है अतः नई तकनीकों व ज्ञान के आधार पर समय व स्थान के अनुसार परिवर्तनशील है ।

 

टिकाऊ खेती के घटक ( Components of Sustainable Agriculture ) – खेती को टिकाऊ बनाने के लिए निम्न घटकों का समावेश करना आवश्यक है ।

1. फसल विविधिकरण ( Crop Diversification ) – इसमें फसल चक, मिश्रित फसल एवं अन्तर्शस्य खेती एवं फसल पद्धति के सिद्धान्तों के अनुसार फसलों का चुनाव एवं उत्पादन किया जाता है ।

2. आनुवांशिक विविधता ( Genetic Diversity ) – कृषि जलवायु एवं मौसमजन्य नुकसान को कम करने तथा एकल जीन बहुलता के खतरे को कम करने हेतु अलग – अलग आनुवांशिकी के पेड़ – पौधों एवं जीवों का चुनाव कर उत्पादन करने पर जोर दिया जाता है ।

3. समन्वित पोषक तत्व प्रबंधन ( Integrated Nutrient Management ) – विभिन्न जैविक एवं अजैविक स्रोतों तथा प्रबंधन कारकों के उचित समन्वय द्वारा बेहतर एवं सम्यक तरीके से फसलों की पोषण आवश्यकता पूरी की जाती है । साथ ही मृदा उत्पादकता भी बनाए रखी जाती है ।

4. समन्वित नाशीजीव प्रबंधन ( Integrated Pest Management ) – भौतिक एवं शस्य कियाओं , जैविक , पारिस्थितिकीय , रासायनिक एवं वर्जन पद्धतियों का समावेश कर पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव डाले बिना कीटों एवं रोगों एवं हानिकारक जीवों का नियंत्रण एवं प्रबंधन किया जाता है ।

5. समन्वित जल प्रबंधन ( Integrated Water Management ) – जल संग्रहण एवं संरक्षण , जल वितरण , जल पुर्नभरण तथा सिंचाई की अधिक प्रभावी विधियों एवं जलसंग्रहण क्षेत्र प्रबंधन द्वारा जल के अधिकतम सदुपयोग एवं पुनर्भरण के सिद्धान्तों को अपनाया जाता है ।

6. उर्जा प्रबंधन ( Energy Management ) – नवीनीकरण उर्जा के वैकल्पिक स्रोतों का टिकाऊ खेती में समावेश करने पर जोर दिया जाता है । बायोगैस , बायोमास सौर एवं वायुजनित ऊर्जा संसाधनों का कृषि प्रबंधन में समावेश किया जाता है ।

7. उन्नत तकनीकों का ज्ञान ( Knowledge of Advanced Technologies ) – कृषि की उन्नत तकनीकों एवं उत्पादों के सामाजिक , पर्यावरणीय एवं आर्थिक प्रभावों के बारे में नवीनतम जानकारी के सतत् अर्जन से कृषि उत्पादन में टिकाऊपन लाया जा सकता है ।

8. सूचना प्रबंधन ( Information Management ) – खेती से संबंधित नई तकनीकों , बाजार , योजनाओं , विषय विशेषज्ञ तथा कन्सलटेन्सी संबंधी सेवाओं के बेहतर उपयोग के लिए क्षेत्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सूचनाओं की जानकारी आवश्यक है इसके लिए ई – लर्निंग , ई – मार्केट , रिमोट सेन्सिंग , इन्टरनेट , मोबाईल एप , जीपीएस आदि तकनीकों का इस्तेमाल कर खेती के प्रबंधन को दक्ष बनाया जा सकता है ।

 

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