ट्रांसजेनिक जीव ( पादप व जन्तु ) उत्पादन [ Transgenic Organisms ( Plants and Animals ) Production ]
ट्रांसजेनिक पादप – जिन पादपों में वांछित लक्षण के लिए बाहरी DNA उपस्थित होता है , वह ट्रांसजेनिक पादप कहलाते हैं ।
पादपों में वांछित लक्षण उत्पन्न करने के लिए विभिन्न जीनों ( जन्तु या पादप ) को निवेशित करने के पश्चात् निवेशित जीन द्वारा उत्पन्न लक्षणों तथा उनकी अभिव्यक्ति का अवलोकन करते हैं ।
जीन स्थानान्तरण की विधियाँ ( Methods of Gene transfer ) : पादप कोशिका में जीन स्थानान्तरण की विधियों को मुख्यतः दो भागों में बाँटा गया है –
1. वाहक अणु रहित या प्रत्यक्ष रूपान्तरण ( Vector less or Direct Transformation )
2. वाहक अणु मध्यस्थ या अप्रत्यक्ष रूपान्तरण ( Vector mediated or Indirect Transformation )
1. वाहक अणु रहित या प्रत्यक्ष रूपान्तरण ( Vector less or Direct Transformation ) : किसी जैविक वाहक / कारक की सहायता के बिना डीएनए ( DNA ) को पादप कोशिकाओं में प्रवेश कराने तथा स्थायी रूपान्तरण प्राप्त करने की क्रिया को सीधा जीन स्थानांतरण कहते हैं । प्रत्यक्ष रूपान्तरण की निम्नलिखित विधियाँ हैं –
( i ) इलेक्ट्रोपोरेशन ( Electroporation ) : इस विधि में पादप कोशिका निलंबन ( Plant cell suspension ) को विद्युत क्षेत्र में रखा जाता है , जिसके परिणामस्वरूप धनायन कैथोड़ की ओर व ऋणायन एनोड की ओर गति करते हैं , जिससे ध्रुवित कोशिका भित्ति ( Polarized Cell Wall ) , अधुवित ( Depolarized ) हो जाती है । अधुवित कोशिका भित्ति पुर्नर्योगज डीएनए ( DNA ) के प्रवेश के लिए पारगम्य होती है । इस विधि से मक्का , तम्बाकू , धान , गेहूँ आदि में सफल जीन स्थानान्तरण किए गये हैं । एक व्यवस्थित व आसानी से पुनर्जनित होने वाला ऊतक जैसे अवयस्क मक्का भ्रूण का रूपान्तरण इलेक्ट्रोपोरेशन तंत्र द्वारा किया जा सका है ।
इलेक्ट्रोपोरेशन की दो विधियाँ हैं – ( 1 ) निम्न वोल्टता दीर्घ स्पंद व ( 2 ) उच्च वोल्टता लघु स्पंद । निम्न वोल्टता दीर्घ स्पंदों में अस्थायी रूपान्तरणों की दर अधिक होती है , जबकि उच्च वोल्टता लघु स्पंदों में स्थायी रूपान्तरण की दर अधिक होती है ।
लाभ : यह सस्ती , तीव्र व न्यूनतम विषाक्तता ( Toxicity ) वाली विधि है ।
हानि : इस विधि की मुख्य हानि प्रोटोप्लास्ट ( Protoplast ) की आवश्यकता है इसलिये ये सभी पादप तंत्र पर लागू नहीं होती । यह विधि केवल उन पादप तंत्रों पर ही लागू होती हैं जिनमें प्रोटोप्लास्ट पुनर्जनन क्षमता ( Protoplast Regeneration Ability ) अधिक होती है ।
( ii ) शॉटगन या बॉयोलिस्टिक विधि ( Shotgun or Biolistic Method ) : इस विधि में वांछित DNA को टंगस्टन या सोने के कणों से लिपटाकर गन की सहायता से पादप कोशिका में प्रवेश करवाया जाता है । इन कणों को माइक्रोप्रोजेक्टाइल्स ( Microprojectiles ) कहते हैं ।
इस गन के निम्न भाग होते हैं –
• गैस त्वरण नली ( Gas Acceleration Tube ) ।
• प्लास्टिक झिल्ली या स्थूल वाहक , जिस पर माइक्रोप्रोजेक्टाइल्स चिपके रहते हैं ।
• अवरोधक स्क्रीन ( Stopper Disc ) ।
• लक्ष्य ( Target ) ।
इस विधि में 1um व्यास के सूक्ष्मकणों पर डीएनए का लेप करने के लिए इन्हें डीएनए के घोल में ( CaCl2 , 0.25 – 2.5M व स्पर्मिडीन 0.1 के घोल ) मिलाकर तीव्र गति से हिलाते हैं । अब माइक्रोप्रोजेक्टाइल्स डीएनए को अवक्षेपण के बाद सूखने देते हैं । इसके बाद गन में स्थूलवाहक को सही स्थान पर फिट कर आंशिक निर्वात उत्पन्न किया जाता है , जिससे संविदारण डिस्क ( Rupture – Disc ) फट जाए । संविदारण डिस्क फटने से प्रघाती तरंग ( Shock Wave ) उत्पन्न होती हैं , जिससे स्थूलवाहक ( Macro – Carrier ) का त्वरण होता है । जब स्थूल वाहक अवरोधक स्क्रीन से टकराता है तो इससे चिपके सूक्ष्मकण स्क्रीन में से गुजर कर नीचे रखी कोशिकाओं तथा उनके केन्द्रकों में प्रवेश कर जाते हैं । इस विधि द्वारा सोयाबीन , गन्ना , तम्बाकू , गेहूँ , पपीता आदि में जीन स्थानान्तरण किया गया है ।
लाभ –
1. यह एक सुरक्षित व साफ सुथरी विधि है ।
2. यह व्यवस्थित व प्रभावी पुनर्जनित ऊतक बनाने की विधि है जो कि जीन को सर्वोत्तम जर्मप्लाज्म में प्रवेश करने की स्वीकृति प्रदान करती है ।
3. ऐसी जातियाँ जो सरलता से रूपान्तरित नहीं होती ( Recalcitrant ) , उन जातियों का रूपान्तरण इस विधि द्वारा कर अनेक ट्रांसजेनिक पादप तैयार किये जा सकते हैं ।
हानियाँ –
1. इस विधि से काइमैरिक पादपों ( Chimeric Plants ) का उद्गम होता है ।
2. प्रक्षेपण ( Bombardment ) की गति पर नियन्त्रण नहीं होता जिससे लक्ष्य कोशिका ( Target cell ) को भारी मात्रा में नुकसान पहुँच सकता है ।
( iii ) माइक्रो इन्जेक्शन ( Micro – injection ) : माइक्रोइन्जेक्शन एक भौतिक तकनीक है जो जैविक व अन्य बाधाओं का निवारण करती है । मूल रूप से इसे जन्तु कोशिका के रूपान्तरण हेतु विकसित किया गया है , परन्तु आजकल इसे पादप कोशिका के रूपान्तरण हेतु भी उपयोग में लाया जाता है ।
इस विधि में वांछित डीएनए को तीक्ष्ण सिरे वाली माइक्रोप्रोजेक्टाइल सूई ( Fine Tipped Microprojectile Needle ) की सहायता से पादप कोशिका के केन्द्रक में इस प्रकार से प्रवेश करवाया जाता है कि जिससे पादप कोशिका नष्ट न हो । इस विधि द्वारा सामान्यतः प्रोटोप्लास्टों में जीन स्थानांतरण करवाया जाता है क्योंकि कोशिका भित्ति बाधा पहुँचाती है । प्रायः यह विधि सघन कोशिकाद्रव्य वाली कोशिकाओं के लिए अधिक उपयोगी होती है । इस विधि से तरुण भ्रूणों ( जैसे कायिक भ्रूण , पराग भ्रूण एवं जाइगोटी भ्रूण ) की कोशिकाओं का रूपान्तरण बहुत सरलता से करवाया जा सकता है ।
लाभ –
1. इस विधि में डीएनए की निष्कासित मात्रा प्रति कोशिका सीमित नहीं है यद्यपि इसे सीमित बनाया जा सकता है ।
2. इसमें अन्तर्ग्रहित रूपान्तरण ( Integrated Transformation ) के अवसर बढ़ जाते हैं ।
3. डीएनए प्रवेश की क्रिया निश्चित होती है ।
हानियाँ –
1. एक इन्जेक्शन से केवल एक कोशिका में ही डीएनए प्रवेश करता है ।
2. विशिष्ट उपकरण व कौशल के प्रयोग की आवश्यकता होती है ।
3. ऐसी तकनीक की आवश्यकता होती है , जो एकल , द्विपराग में और बहुस्तरीय ( Multi layered ) भित्ति में से डीएनए को गुजरने दे ।
( iv ) लाइपोफेक्शन ( Lipofection ) : लाइपोसोम्स विशेष प्रकार की झिल्ली तंत्र ( Lamellar Phase ) है , जिनमें द्विआण्विक वसा परत के अध्रुवीय स्थलों पर जल पाया जाता है । यह न्यूक्लिऐज ( Nuclease ) की क्रियाओं से डीएनए को बचाते हैं ।
लाइपोफेक्शन विधि का विश्लेषण बोंगेहम ( Bongham ) ने 1965 में किया । डीएनए या आरएनए युक्त लाइपोसोम्स को प्रत्यक्ष संयोजन या एण्डोसाइटोसिस द्वारा पादप कोशिका में प्रवेश करवाया जा सकता है । पादप रूपान्तरण में इस विधि का अधिक उपयोग नहीं किया जाता , किन्तु जन्तु कोशिका एवं अंडकों के रूपान्तरण की यह बहुत ही सफल विधि है ।
लाभ –
1. यह न्यूक्लिएज के क्रियाकलापों से न्यूक्लिक अम्ल की सुरक्षा करता है ।
2. प्लाज्मोडेस्मेटा ( Plasmodesmata ) के द्वारा प्रोटोप्लास्ट में प्रवेश के अलावा विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं में डीएनए प्रवेश सम्भव होता है ।
3. इस विधि द्वारा पूर्ण सूक्ष्म कोशिकांगों ( Small cell organelles ) का प्रवेश सम्भव है ।
हानियाँ –
1. इस विधि की मुख्यतः कमी काईमेरा पादप की उत्पत्ति है , जिनमें पादप का केवल कुछ भाग ही रूपान्तरित होता है ।
2. यह एक धीमी , महँगी और उच्च कौशल की आवश्यकता वाली विधि है ।
2. वाहक अणु मध्यस्थ या अप्रत्यक्ष रूपान्तरण ( Vector Mediated or Indirect Transformation ) : पौधों में जीन स्थानांतरण के लिए दो प्रकार के वाहकों का उपयोग किया जाता है –
( i ) प्लाज्मिड वाहक ( एग्रोबेक्टीरियम के Ti एवं Ri प्लाज्मिडों से प्राप्त वाहक स्थायी जीन स्थानान्तरण के लिए )
( ii ) वाइरस वाहक फूलगोभी मोजेक वाइरस ( CaMV ) , जैमिनी वाइरस ( Gemin ivirus ) तम्बाकू मोजेक वाइरस ( TMV ) आदि वाहक है किन्तु इनसे स्थायी जीन स्थानान्तरण नहीं होता हैं ।
( i ) एग्रोबेक्टीरियम ट्यूमेफेसिएन्स के द्वारा जीन स्थानान्तरण ( Agrobacterium Tumefaciens Mediated Gene Transfer ) : 1980 में पहली बार आनुवांशिक पदार्थ को एग्रोबेक्टीरियम ट्यूमेफेसियन्स ( Agrobacterium Tumefaciens ) के कोशिका संवर्धन में पुरःस्थापित किया गया । द्वि- बीजपत्री पादपों की कोशिका रूपान्तरण में प्लाज्मिड वाहक सामान्यतः ऐ . ट्यूमेफेसिएन्स के Ti ( Tumour Inducing ) व राइजोजीन्स के Ri ( Root Inducing ) प्लाज्मिड के द्वारा होते हैं । इन दोनों प्लाज्मिड में समान लक्षण पाये जाते हैं तथा यह दोनों जातियों के मध्य परस्पर परिवर्तनीय होते हैं । इन दोनों प्लाज्मिड में Ti क्षेत्र ( 23kb ) होता है जो कि ओपाइन मेटाबालिज्म ( Opine Metabolism ) व पादप हार्मोन्स ( Phyto Hormones ) के संश्लेषण के लिए उत्तरदायी होता है । यह क्षेत्र पादप कोशिका में स्थानान्तरित कर दिया जाता है एवं यह क्षेत्र जीनोम द्वारा अन्तर्ग्रहित कर लिया जाता है , फलस्वरूप पादप कोशिका रूपान्तरित हो जाती है ।
अर्बुद निर्माण ( Tumour Formation ) : ऐ . ट्यूमेफेसियन्स T , प्लाज्मिड के छोटे से भाग के स्थानान्तरण से पादप में अर्बुद ( Tumour ) प्रेरित करता है । डीएनए का ये क्रम T- डीएनए ( Transfer DNA ) कहलाता है । संक्रमण का कार्य ए . ट्यूमेफेसिएन्स के गुणसूत्रीय व प्लाज्मिड जनित जीनों के नियन्त्रण से होता है तो यह संक्रमण प्रारम्भ हो जाता है ।
Ti प्लाज्मिड ( Ti Plasmid ) : Ti प्लाज्मिड एक द्विलड़ीय डीएनए होता है , इसमें 150-250 Kb ( औसतन 200 Kb ) का काँजुगनशील ( Conjugative ) प्लाज्मिड होता है । ऐग्रोबैक्टीरियम को 28 ° C से अधिक तापमान पर संवर्धित करने पर Ti प्लाज्मिड का लोप हो जाता है । बैक्टीरिया की किरीट पिटिका ( Crown Gall ) एवं रोमिल मूल उत्पादन करने की क्षमता क्रमशः Ti एवं Ri प्लाज्मिडों के कारण होती है ।
स्थानांतरण डीएनए ( T – DNA ) : इसमें उपस्थित नियामक क्रम पादप कोशिकाओं में प्रकार्य करते हैं अर्थात् ये केवल पादप कोशिकाओं में ही अभिव्यक्त होते हैं । T- डीएनए लगभग 23 kb माप का होता है । इसमें दोनों सिरों पर एक – एक 24 bp का अनुलोम पुनरावृत्त क्रम ( Direct Repeat Sequence ) होती है , जो कि इसके स्थानान्तरण के लिये आवश्यक होती है । स्थानांतरित डीएनए के पुनरावृत्त क्रम के बीच से अर्बुद निर्माण करने वाले जीनों को हटाकार वहाँ पर वांछित डीएनए को जोड़ दिया जाता है ।
पादप जिनोम में T- डीएनए का समाकलन ( Integration ) : T- डीएनए के पादप केन्द्रक में प्रवेश करने के बाद प्रतिकृति होती है , जिससे यह द्विरज्जुक अवस्था ( Double Strand Stage ) में आ जाता है । यह पादप जिनोम में यादृच्छिक स्थलों ( Random site ) पर समाकलित होता है । फलस्वरूप इसके सिरों के बीच स्थित वांछित डीएनए भी पादप जिनोम में समाकलित हो जाता है । प्रत्येक कोशिका में T- डीएनए की एक से लेकर अधिकतर 12 प्रतियाँ उपस्थित हो सकती हैं । तत्पश्चात् समाकलित वांछित जीन का अवलोकन किया जाता है । उदाहरणतः यदि किसी पादप में N , स्थिरीकरण के लिए वांछित जीन निवेशित करवाया जाता है , तब उस पादप में N , स्थिरीकरण में होने लगता है । यदि किसी पादप में रोगप्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करने के लिए किसी रोगप्रतिरोधक जीन को निवेशित करवाया जाता है , तब वह पादप उस विशिष्ट रोग के प्रति प्रतिरोधी हो जायेगा ।
ऐग्रोबैक्टीरियम द्वारा अन्य पादपों में जीन स्थानांतरण ( Gene Transfer by Agrobacterium in other Plants ) : ऐग्रोबैक्टीरियम वाहक द्वारा जीन स्थानांतरण के लिये चुने गये डीएनए को निरस्त्रीकृत Ti प्लाज्मिड ( Disarmed Ti plasmid ) के T – DNA में निवेशित करते हैं । इसके लिये सामान्यतः Ti प्लाज्मिड के सहसमाकलित ( Cointegrate ) अथवा द्विवाहक ( Binary vector ) प्रारूप का प्रयोग करते हैं । उपयुक्त पुनर्योगज Ti वाहक को ऐग्रोबैक्टीरियम में प्रविष्ट कराते हैं । इसके बाद पादप कोशिकाओं का रूपान्तरण निम्न दो विधियों से करते हैं – ( 1 ) ऊतक कर्तोतकों के साथ सह – संवर्धन एवं ( 2 ) पादपे रूपान्तरण ।
( 1 ) ऊतक कर्तोतक के साथ सह – संवर्धन ( Co culture with tissue explants ) : ऐग्रोबैक्टीरियम को कोशिका संवर्धको अथवा कर्तोतकों के साथ सह – संवर्धन करते हैं । टमाटर , तम्बाकू , पिट्यूनिया आदि की पत्तियों के डिस्कों Discs ) का व्यापक सह – संवर्धन करते हैं , जिनके द्वारा उत्पादित एसिटोसिरिगोन vir ओपेरोन्स को सक्रिय करता है जिससे पारजीन सहित T- डीएनए बहुत – सी कोशिकाओं में प्रवेश करके पादप जिनोम में समाकलित होता है । दो दिन बाद रूपांतरित पादप कोशिकाओं को उपयुक्त पोषपदार्थ पर सवर्धित करके वरण करते हैं । इस पोषपदार्थ में कार्बेनिसिलिन ( Carbenicillin ) मिला देते हैं जिसके कारण ऐग्रोबैक्टीरियम की कोशिकाएँ मर जाती हैं और केवल इस पोषपदार्थ में रूपांतरित पादप कोशिकाएँ ही विभाजित हो पाती हैं जो कि प्ररोह पुनर्जनन ( Shoot Regeneration ) करती हैं । इन प्ररोहों को विलग करके इनमें जड़ उत्पादित करके दृढ़ीकरण के पश्चात् मिट्टी में रोपकर रूपांतरित पौधे प्राप्त करते हैं ।
ऐस्पेरागस , प्याज आदि एकबीजपत्रियों में भी ऐग्रोबैक्टीरियम संक्रमण करता हैं । किन्तु एकबीजपत्री कोशिकाओं के दक्ष रूपांतरण के लिये ऐग्रोबैक्टीरियम के साथ इनके सहकल्चर के समय एसिटोसिरिंगोन को भी पोषपदार्थ में मिलाते हैं । मक्का आदि कुछ पौधों की कोशिकाएँ ऐसा पदार्थ उत्पादित करती हैं जो ऐग्रोबैक्टीरियम द्वारा रूपान्तरण घटाते हैं । इस समस्या को दूर करने के लिये पोष पदार्थ में अतिरिक्त एसिटोसिरिंगोन मिला सकते हैं ।
( 2 ) पादपे रूपान्तरण ( In Planta Transformation ) : अरैबिडाप्सिस ( Arabidopsis ) के बीजों को ऐग्रोबैक्टीरियम के ताजे कल्चर में डुबाने पर इन बीजों से प्राप्त पौधों की कुछ संततियों में स्थायी रूपान्तरण प्राप्त होते हैं । इसके अतिरिक्त अरैबिडाप्सिस पौधों को फूल आने से पहले ऐग्रोबैक्टीरियम के ताजा कल्चर में डुबाने पर भी यह परिणाम प्राप्त होते हैं । ऐसी धारणा है कि बीजों के अंकुरण के समय ऐग्रोबैक्टीरियम कोशिकाएँ पौधों में प्रवेश करती हैं । आंशिक निर्वात भी ऐग्रोबैक्टीरियम कोशिकाओं के पौधों में प्रवेश में सहायक होता हैं , जो बाद में फूलों में बनने वाले युग्मनजों का रूपान्तरण करती है ।
( ii ) पादप वाइरस वाहक ( Plant Virus Vectors ) : वाइरसों में निम्नलिखित अच्छे वाहक के गुण होने के कारण उपयोग किया जाता हैं –
अ . यह वयस्क पौधों की कोशिकाओं को संक्रमित करते हैं ।
ब . प्रत्येक कोशिका में इनकी बहुत प्रतियाँ उत्पन्न होती हैं जिससे डीएनए निवेश्य द्वारा कोडित प्रोटीन की अधिक मात्रा में प्राप्ति हो सकती है ।
स . कुछ वाइरस सर्वांगी ( Systemic ) होने के कारण पूरे पौधे में फैल जाते हैं जिससे इनका उपयोग पौधों के लक्षण प्रारूप ( Phenotype ) में सुधार अथवा पुनर्योगज ( Recombinant ) प्रोटीनों के उत्पादन के लिये किया जाता है । साधारणतः पादप वाइरसों में आनुवांशिक पदार्थ का कार्य आरएनए ( RNA ) करता है , अतः इस समूह के दो वाइरस ( तंबाकू मोजेक वाइरस , TMV एवं ब्रोम मोजेक वाइरस , BMV ) काफी उपयोगी हैं । किन्तु सबसे अधिक डीएनए जिनोम वाले दो वाइरस समूहों ( कॉलिमोवाइरस एवं जेमिनी वाइरस ) का उपयोग किया जा रहा है ।
( i ) फूलगोभी मोजेक वाइरस ( Cauliflower Mosaic Virus ) : यह कॉलिमोवाइरस समूह का वाइरस है । इस पर सबसे अधिक प्रयोग किये गये हैं । फूलगोभी मोजेक वाइरस ( CaMV ) द्विबीजपत्री पौधों के सबसे बड़े समूह को संक्रमित करता है । किन्तु इसके जिनोम में एक सीमित लम्बाई के डीएनए निवेश्य ही में क्लोन किये जा सकते हैं । अतः एक वाहक के रूप में इसका ( CaMV ) का उपयोग बहुत सीमित है ।
( ii ) जेमिनीवाइरस ( Gemini virus ) : जेमिनीवाइरस बहुत – से द्विबीजपत्री व एक बीजपत्री पौधों को संक्रमित करते हैं । यह वाइरस कीटों द्वारा संचरित होते हैं । इनका डीएनए एक लड़ीय होता है । गेहूँ का बौना वाइरस ( Wheat Dwarf Virus , WDV ) एवं मक्का का रेखा वाइरस ( Maize Line Virus , MLV ) दोनों का क्रमशः गेहूँ एवं मक्का के पौधों में ऐग्रोसंक्रमण के लिये सफलतापूर्वक उपयोग किया जा रहा है ।
( iii ) टोबेको मोजेक वाइरस ( Tobacco Mosaic Virus , TMV ) : TMV में एक RNA जीनोम होता है जो mRNA की तरह व्यवहार करता है । RNA वाइरस का उपयोग वाहक की तरह निम्न दो प्रकार से होता है –
( 1 ) वाइरस जिनोम की CDNA प्रति का उपयोग ई . कोलाई में क्लोनिंग के लिये ।
( 2 ) संक्रमित RNA की प्रतियों को पुनर्योगज वाइरस के जीनोम में CDNA के पात्रे ( in vitro ) अनुलेखन द्वारा पादप संक्रमण में उपयोग के लिये उत्पादित करना ।
( iv ) ब्रोम मोजेक वाइरस ( Brome Mosaic Virus , BMV ) : ब्रोम मोजेक वाइरस ( BMV ) ग्रैमिनी कुल की जो कुछ प्रजातियों में ही संक्रमण करता है । इसके जीनोम के तीन खंड 1 , 2 एवं 3 होते हैं । इनमें सफल संक्रमण के लिये तीनो खंडों द्वारा संक्रमण अनिवार्य होता है । इस जिनोम के खंड तीन में CP जीन होता है । यह डीएनए निवेश्य के समाकलन का एक मात्र स्थल है । CP जीन में CAT जीन को समाकलित करके जौ के प्रोटोप्लास्टों का संक्रमण करने पर उनमें CAT जीन की उच्च अभिव्यक्ति होती है ।
कृत्रिम गुणसूत्र ( Artificial Chromosome ) : प्रारूपीय वाहक सामान्यतः बडे डीएनए खंडो को सफलतापूर्वक नहीं ले जा सकते हैं । इस समस्या के निवारण के लिये कृत्रिम क्रोमोसोम का विकास किया गया एवं इनको यह नाम इसलिए दिया गया है , क्योंकि अतिथ्य कोशिका में प्रवेश के पश्चात् ये अतिथि कोशिका में पूर्णरूप से गुणसूत्र की तरह व्यवहार करते हैं । उदाहरणार्थ जीवाणु कृत्रिम गुणसूत्र ( BAC ) , यीस्ट कृत्रिम गुणसूत्र ( YAC ) ।
ऐग्रोसंक्रमण ( Agroinfection ) : ऐग्रोसंक्रमण विधि उन वाइरस वाहकों के लिये अपनायी जाती हैं , जिनका संचरण उनका प्राकृतिक कीट वाहक करता हैं , जैसे – जेमिनी वाइरस । इन वाइरस वाहकों में डीएनए निवेश्य का समाकलन करने के बाद वाहक को Ti प्लाज्मिड के T डीएनए खंड में समाकलित करते हैं । इस Ti प्लाज्मिड को ऐग्रोबैक्टीरियम में प्रविष्ट करके इस ऐग्रोबैक्टीरियम को पादप कोशिकाओं के साथ सह – संवर्धन करते हैं । इस विधि से कम से कम दो जेमिनी वाइरसों , MSV एवं WDV का स्थानान्तरण किया गया है ।
द्विबीजपत्री ट्रांसजेनिक पादप ( Dicot Transgenic Plants ) : तम्बाकू ( Nicotiana tabaccum ) , पिट्यूनिया ( Petunia hybrida ) , टमाटर ( Lycopersicon esculentum ) . आलू ( Solanum tuberosum ) , बैंगन ( Solanum melongena ) , सूरजमुखी ( Helianthus annuus ) , तोरिया ( Brassica napus ) , गोभी की जातियाँ ( Brassica oleracea spp . ) , कपास ( Gossypium spp . ) , सोयाबीन ( Glycine max ) , गाजर ( Daucus carrota ) आदि ।
एकबीजपत्री ट्रांसजैनिक पादप ( Monocot Transgenic Plants ) : चावल ( Oryza sativa ) , राई ( Secale Cereale ) , गेहूँ ( Triticum aestivum ) , मक्का ( Zea mays ) , जई ( Avena sativa ) ।
ट्रांसजैनिक जन्तु : मानव परखनली शिशु ( Test – Tube Babies ) , पात्रे निषेचन ( in vitro fertilization ) एवं भ्रूण प्रतिरोपण ( Embryo Transplantation ) द्वारा ।
उत्कृष्ट नस्ल के बहुत से पशु उत्पन्न करना अति अंडोत्सर्ग ( Super ovulation ) , पात्रे निषेचन ( in vitro Fertilization ) , भ्रूण खंडन , ( Embryo Splitting ) एवं भ्रूण प्रतिरोपण ( Embryo Transplantation ) द्वारा ।
CDNA लाइब्रेरी ( CDNA Library ) : CDNA लाइब्रेरी ( Complementary DNA Library ) में रूपान्तरित ( Transformed ) जीवाणुभोजी ( Bacteriophage ) , बैक्टीरिया ( Bacteria ) , लयनों ( Lysates ) की समष्टि होती है , जिसमें किसी जीव से प्राप्त सभी दूत आरएनए ( mRNA ) , CDNA निवेश्यों ( cDNA inserts ) के रूप में उपस्थित होते हैं । ये CDNA निवेशित प्लाज्मिडों या फेज वाहकों ( Phage Vectors ) में होते हैं ।
जिन ऊतकों में प्रोटीन का सक्रिय रूप से संश्लेषण होता रहता है ऐसे ऊतक पौधों में जड़ , पत्तियाँ और तने के अग्र भाग में होते हैं , इनसे mRNAs को पृथक करके CDNA लाइब्रेरियाँ भी बनाई जा सकती हैं । रिवर्स ट्रान्सक्रिप्टेज ( Reverse Transcriptase ) एन्जाइम का प्रयोग करके mRNA से CDNA बनाया जा सकता है , जिसको फिर द्विसूत्री ( Double Stranded ) बनाकर क्लोन करने में प्रयोग करते हैं ।