दीमक ( Termite ) : लक्षण, क्षति एवं महत्त्व, श्रम विभाजन, जीवन चक्र, प्रबन्धन

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दीमक ( Termite )

 

वैज्ञानिक नाम – औडेन्टोटर्मिस ओबेसस ( Odontotermes obesus )

गण : आइसोप्टेरा

कुल : टरमीटिडी

दीमक या ” व्हाइट एन्ट ” विश्व के समस्त उष्ण एवं कटिबंधीय और उप उष्ण कटिबंधीय देशों में बहुतायत से पायी जाती हैं ।

 

लक्षण ( Symptoms ) – दीमक एक सामाजिक कीट हैं तथा टर्मेटेरिया ( Termataria ) के अन्दर निवह में रहता हैं । टर्मेटेरिया श्रमिकों द्वारा बनाई जाती हैं । टर्मेटेरिया में दीमक की विभिन्न जातियाँ ( Castes ) पायी जाती हैं । शारीरिक बनावट एवं कार्य निष्पादन की दृष्टि से इन जातियों को श्रमिक , सैनिक , राजा , रानी में विभाजित किया जा सकता हैं , जो श्रम विभाजन ( Division of labour ) का एक आदर्श उदाहरण हैं ।

श्रमिक ( Worker ) – यह निवह की बहुत बड़ी श्रम शक्ति होती है जो कुल सदस्यों की लगभग 80-90 प्रतिशत होती है । श्रमिकों के मुखांग मजबूत व दृढ़ होते हैं , जिनके द्वारा यह सम्पूर्ण परिवार का पालन – पोषण एवं घर बनाने का कार्य करते हैं ।

सैनिक ( Soldier ) – निवह में इनकी संख्या कुल सदस्यों 3-5 प्रतिशत तक होती हैं । सैनिकों के मुखांग असाधारण रूप से विकसित होते हैं जिनके द्वारा यह परिवार के सदस्यों की शत्रुओं से रक्षा करते हैं ।

राजा और रानी ( King and Queen ) – राजा और रानी कॉलोनी के शाही सदस्य होते हैं । राजा का कार्य मात्र मादा को निषेचित करना होता हैं । रानी कॉलोनी की संस्थापक तथा जनक होती हैं । रानी दीमक निवह में सबसे बड़े आकार की होती हैं । रानी दीमक एक सेकण्ड में एक अण्डा देती हैं और यह क्रम इसके सम्पूर्ण जीवन काल में चलता रहता हैं । मादा का जीवन काल 5 से 10 वर्ष का होता हैं । मादा की कुछ प्रजातियाँ एक दिन में 70 से 80 हजार अण्डे दे सकती हैं । इसलिये हम इसे अण्डे देने वाली मशीन भी कह सकते हैं ।

सामान्यतः एक निवह में तीन प्रकार की जननक जातियाँ पाई जाती हैं –

( 1 ) दीर्घ पंखी ( Macropterous )

( 2 ) लघु पंखी ( Brachypterous )

( 3 ) पंख विहीन ( Apterous )

क्षति एवं महत्त्व ( Damage and importance ) – यह सर्वभक्षी ( Polyphagous ) कीट है तथा खेतों और घरों दोनों जगह नुकसान पहुँचाता हैं । क्षति केवल शिशु तथा वयस्क श्रमिक दीमक ही करते हैं । दीमक का प्रकोप पौधशाला एवं नये रोपे गये ( Transplanted ) पौधों में अधिक होता हैं । कई बार तो अत्यधिक प्रकोप होने पर पूरी पौधशाला समाप्त हो जाती हैं । यह बंजर भूमि में उगाये गये उद्यानों में व्यापक विनाश करती हैं । यह प्रायः भूमि के अन्दर रहती हैं और पोषी पौधों की जड़ें खाकर क्षति पहुँचाती हैं । कभी – कभी पौधों के तने में मिट्टी की सुरंगे बनाकर अन्दर ही अन्दर तने की छाल खा जाती हैं और लम्बी दूरी तक ऊपर पहुँच जाती हैं । मिट्टी युक्त गैलरी प्रायः रात्रि में बनाई जाती हैं । खड़ी फसलों में सिंचित क्षेत्रों की फसलों की अपेक्षा असंचित क्षेत्रों में दीमक का प्रकोप अधिक पाया जाता हैं । दीमक द्वारा ग्रसित पौधों को हाथ से खींचने पर आसानी से ऊपर से निकल आते हैं । यह पूरे वर्ष सक्रिय रहती हैं किन्तु वर्षा ऋतु में इसका प्रकोप कम हो जाता हैं । वर्षा समाप्ति के पश्चात् दीमक पुनः सक्रिय हो जाती हैं ।

जीवन चक्र ( Life Cycle ) – मानसून की प्रथम अच्छी वर्षा के पश्चात् सांयकाल में पंखयुक्त ( दीर्घपंखी ) जननक जातियाँ ( नर – मादा ) समूह में अपने आश्रय से बाहर निकलती हैं । यह बाहर निकलते ही सीधे प्रकाश स्त्रोत की ओर आकर्षित होते हैं एवं निषेचन के पश्चात युगल भूमि के अन्दर चले जाते हैं । यह युगल साथ मिलकर छोटे – छोटे नप्चुअल कोष्ठ ( Naptual chambers ) का निर्माण कर संतति उत्पन्न करते हैं और इनकी पूर्ण देखभाल करते हैं । जब एक बार कॉलोनी में श्रमिकों की संख्या पर्याप्त हो जाती हैं , तब यह श्रमिक अपने जन्मदाता युगल का शाही तरीके से पालन करते हैं । दीमक के अण्डे हल्के पीले रंग के गुर्दाकार ( Kidney shaped ) होते हैं । ग्रीष्म ऋतु में एक सप्ताह में इन अण्डों से शिशु / गिडार निकल आते हैं जो 6 माह में श्रमिक या सैनिक के रूप में पूर्ण विकसित हो जाते हैं । जबकि जननक जातियाँ परिपक्व होने से 1 से 2 वर्ष का समय लेती हैं । इस प्रकार से शिशु विभिन्न प्रकार के प्रौढ़ों में परिवर्तित हो जाते हैं तथा वर्ष में केवल एक ही पीढ़ी मिलती हैं ।

प्रबन्धन ( Management ) –

शस्य प्रबन्धन –

• टर्मेटैरिया की खुदाई करके रानी दीमक एवं अन्य पूरक जननक जातियों को नष्ट कर देना चाहिए ।

• खेतों में हरी खाद ( Green manure ) एवं कच्ची गोबर की खाद नहीं डालनी चाहिए क्योंकि ये दीमक आकर्षित करते हैं ।

• खेतों में मौजूद फसलों के अवशेषों को इकट्ठा कर नष्ट कर देना चाहिए ।

रासायनिक प्रबन्धन –

• दीमक का प्रकोप प्रति वर्ष नियमित रूप से आने वाले खेतों को फसल लगाने से पूर्व 25 कि.ग्रा . प्रति हैक्टेयर की दर से मैलाथियान चूर्ण से उपचारित करना चाहिए ।

• गेहूँ के बीजों को बुवाई के 24 घण्टे पहले क्लोरपाइरीफॉस 20 ई.सी. या क्यूनालफॉस 25 ई.सी. 400 मि.ली. मात्रा को 5.0 लीटर पानी में मिलाकर प्रति क्विंटल की दर से उपचारित करने से कीट का प्रकोप नहीं होता हैं । खड़ी फसल में दीमक का प्रकोप होने पर क्लोरपाइरीफॉस 20 ई. सी. 4.0 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से सिंचाई के साथ देना चाहिए ।

• पौधों की रोपाई से पूर्व गड्ढों में मैलाथियान ( 5 प्रतिशत ) चूर्ण से 50 ग्राम प्रति गड्ढे की दर से उपचारित करना चाहिए ।

• पौधों के तनों को 2 मि.ली. मैलाथियान 50 ई.सी. प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर उचित अन्तराल पर उपचारित करते रहना चाहिए ।

• पुराने बगीचों के पौधों के थांवलों की अच्छी गुड़ाई करने के पश्चात् ऊपर वर्णित चूर्ण कीटनाशक ( Dusts ) 200 ग्राम प्रति पौधा की दर से या क्लोरपाइरीफॉस 20 ई.सी. 25 मि. ली. प्रति 5.0 लीटर पानी के घोल से उपचारित करके दीमक का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता हैं ।

 

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