पर-परागित फसलों में चयन की विधियाँ ( Selection Methods of cross – pollinated Crops )
फसलों में उपयोग में लाई जाने वाली अनेक चयन विधियाँ हैं । इनमें से कुछ मुख्य विधियाँ निम्नलिखित हैं – ( 1 ) समूह चयन ( 2 ) आवर्ती चयन ।
1. समूह चयन ( Mass Selection ) : परपरागित फसलों में सुधार की यह सबसे पुरानी विधि है । इस विधि की सफलता पादप प्रजनक की योग्यता तथा जनसंख्या में उपस्थित वंशानुगत विभिन्नता पर निर्भर होती है ।
समूह चयन में अच्छे व वांछनीय लक्षणप्रारूपों वाले बहुत से पौधे चुने जाते हैं । इन पौधों पर मुक्त परागण अथवा प्राकृतिक परागण द्वारा उत्पन्न बीजों को एकत्रित कर आपस में मिला लिया जाता है । इसी प्रक्रिया को पुनः दोहराया जाता है । इस प्रकार प्राप्त बीजों के मिश्रण से अगली पीढ़ी उगाई जाती है । इस विधि की सफलता पादप प्रजनक की योग्यता तथा जनसंख्या में उपस्थित वंशानुगत विभिन्नता पर निर्भर होती है ।
पर-परागित फसलों में समूह चयन की विधि ( Method of Mass selection in cross-pollinated crops ) –

2. आवर्ती चयन ( Recurrent Selection ) : आवर्ती चयन का विचार सर्वप्रथम हेज एवं गार्बर ( Hayes and Garber ) ने 1919 तथा ईस्ट एवं जोन्स ( East & Jones ) ने 1920 में स्वतंत्र रूप से दिया था । आवर्ती चयन का उद्देश्य परपरागित फसलों में किसी एक विशेष लक्षण लिए अधिक से अधिक एच्छिक जीनों को एक जनसंख्या में एकत्रित करना होता है तथा साथ ही साथ जनसंख्या में आनुवांशिक विविधता भी बनी रहे ।
आवर्ती चयन मूल रूप से निम्नलिखित चार प्रकार के होते है –
i. सरल आवर्ती चयन ( Simple Recurrent Selection )
ii. सामान्य संयोजन क्षमता के लिए आवर्ती चयन ( Recurrent Selection for General Combining Ability )
iii. विशिष्ट संयोजन क्षमता के लिए आवर्ती चयन ( Recurrent Selection for Specific Combining Ability )
iv. व्युत्क्रम आवर्ती चयन ( Reciprocal Recurrent Selection )
( i ) सरल आवर्ती चयन ( Simple Recurrent Selection ) : सरल आवर्ती चयन एवं अन्य आवर्ती चयन विधियाँ मूलतः भुट्टे से पंक्ति के रूपान्तरण हैं ।
सरल आवर्ती चयन की विधि ( Method of Simple Recurrent Selection ) –

( ii ) सामान्य संयोजन क्षमता के लिए आवर्ती चयन ( Recurrent Selection for General Combining Ability ) : इस विधि का प्रस्ताव जेंकिन्स ( Jenkins ) ने 1940 में दिया था ।
सामान्य संयोजन क्षमता के लिए आवर्ती चयन की विधि ( Method of Recurrent Selection for General Combining Ability ) –

( iii ) विशिष्ट संयोजन क्षमता के लिए आवर्ती चयन ( Recurrent Selection for Specific Combining Ability ) : इस विधि का प्रस्ताव हल ( Hull ) ने 1945 में दिया था । इस आवर्ती चयन की विधि ठीक सामान्य संयोजन क्षमता के लिये आवर्त्ती चयन की विधि के समान ही होती है , अन्तर केवल इतना होता है कि इस प्रकार के आवर्ती चयन का उद्देश्य पादप जनसंख्या की विशिष्ट संयोजन क्षमता बढ़ाना होता है । इसमें विशिष्ट संयोजन क्षमता के लिये आवर्ती चयन में परीक्षक के रूप में अन्तः प्रजात विभेद से संकरण कराया जाता है ।
विशिष्ट संयोजन क्षमता के लिए आवर्ती चयन की विधि ( Method of Recurrent Selection for Specific Combining Ability ) –

( iv ) व्युत्क्रम आवर्ती चयन ( Reciprocal Recurrent Selection ) : इस विधि का सुझाव काम्सटॉक , रॉबिन्सन एवं हार्वे ( Comstock , Robinson and Harvey ) ने 1949 में दिया था । व्युत्क्रम आवर्ती चयन का उद्देश्य सामान्य संयोजन क्षमता एवं विशिष्ट संयोजन क्षमता को एक साथ ही बढ़ाना होता है ।
व्युत्क्रम आवर्ती चयन की विधि ( Method of Reciprocal Recurrent Selection ) –

इसमें दो समष्टियों , A एवं B को आस – पास उगाया जाता है । समष्टि A में से उन्नत लक्षण प्रारूप वाले कई पौधों का चयन करते है और उनको स्वपरागित करते हैं । इसके साथ ही , उनमें से प्रत्येक पौधे का समष्टि B के 8-10 पौधों से परीक्षार्थ संकरण करते है । इसी प्रकार से उन्नत लक्षण प्रारूप के आधार पर समष्टि B में से पौधों को छाँटकर उनमें स्वपरागण तथा साथ ही प्रत्येक पौधे का समष्टि A का किन्ही 8-10 पौधों से संकरण कराते है ।
द्वितीय वर्ष , व्यक्तिगत पौधों के स्वपरागित बीज को सुरक्षित रखते हैं तथा परीक्षार्थ संकरण संततियों को उपज परीक्षण में उगाते हैं । परीक्षण से प्राप्त परिणामों के आधार पर उन्नत संततियों को पहचाना जाता है ।
तृतीय वर्ष , उत्कृष्ट परीक्षार्थ संकरण संततियों को उत्पन्न करने वाले पौधों के स्वनिषेचित बीजों को अलग – अलग संतति पंक्तियों में उगाया जाता है । इन संततियों का आपस में सभी संभव संयोजनों में संकरण किया जाता है । इन सभी संकरणों के बीजों को बराबर मात्रा में लेकर मिश्रित कर लेते हैं । इस प्रकार समष्टियों में प्रथम चयन चक्र पूरा होता है । बीजों के इस मिश्रण को उगाने से प्राप्त समष्टि में पुनः चयन करते हैं । ( प्रथम से तृतीय वर्ष की क्रियाएँ ) , इसे द्वितीय चयन चक्र कहते हैं । व्युत्क्रम आवर्ती चयन द्वारा सुधरी हुई जनसंख्याओं को वाणिज्य संकर बीज ( Commercial Hybrid Seed ) को उत्पादन के लिए प्रयोग किया जा सकता है ।