पादप ऊतक संवर्धन का कृषि में महत्व ( Importance of Tissue Culture in Agriculture )
पादप ऊतक संवर्धन तकनीक वास्तव में कोशिका या ऊतक को अलग से निर्जम परिस्थितियों ( Aseptic Conditions ) में उगाने की विधियों को कहते हैं ।
1. कायिक प्रवर्धन ( Vegetative Propagation ) : इस विधि से कम समय में एक जैसे गुणवत्ता युक्त पौधे प्राप्त किये जा सकते हैं । कायिक प्रवर्धन के लिए प्ररोहाग्र ( Shoot Tip ) या कक्षस्थ शाखा ( Axillary Branch ) का उपयोग करते हैं । कायिक प्रवर्धन का कई फसलों जैसे अदरक , हल्दी में उपयोग किया गया है ।
2. वाइरस मुक्त पौधों की पुनः प्राप्ति ( Recovery of virus free plant ) : प्ररोहाग्र मेरिस्टेम ( Shoot Tip Meristem ) कई वाइरसों से मुक्त होते हैं । ऐसी दशा में प्ररोहाग्र मेरिस्टेम संवर्धन द्वारा क्लोनीय एवं अन्य फसलों के वाइरस मुक्त पौधे प्राप्त किये जा सकते हैं ।
3. अगुणित पौधे ( Haploid Plants ) : पराग कोष ( Anther ) कल्चर , अनिसेचित अंडाशय ( Unfertilized Ovary ) संवर्धन एवं अंतरप्रजातियों में संकरण ( Inter – specific Hybridization ) द्वारा अगुणित पौधों की बड़े पैमाने पर प्राप्ति की जा सकती है । अंतरप्रजातीय संकरण के मुख्य रूप से दो उदाहरण हैं : जौ तथा गेहूँ के अगुणित ( Haploid ) पौधों की प्राप्ति के लिए इनका होर्डियम बुल्बोसम ( Hordeum bulbosum ) से संकरण तथा गेहूँ के अगुणितों के लिए मक्के से संकरण जौ या गेहूँ का हो . बुल्बोसम से संकरण करने पर परिवर्धित हो रहे भ्रूणों में से हो . बुल्बोसम के क्रोमोसोमों का क्रमशः लोप हो जाता है । अतः इन भ्रूणों में केवल जौ या गेहूँ के अगुणित क्रोमोसोम शेष बचते हैं ।
4. समयुग्मज लाइनें ( Homozygous Lines ) : किसी समयुग्मज लाईन को प्राप्त करने के लिए परम्परागत विधियों से लगातार स्वनिषेचन ( Selfing ) अथवा निकट अंतःप्रजनन ( Inbreeding ) द्वारा कम – से – कम 6 वर्ष लगते हैं । किन्तु काल्विसीन ( Colchicine ) द्वारा अगुणित ( Haploid ) पौधों के क्रोमोसोम दो वर्ष में ही द्विगुणन करने पर ( Chromosome Doubling ) द्विगुणन- अगुणित ( Doubled Haploid , DH ) पौधे प्राप्त हो जाते हैं , जो कि पूरी तरह से समयुग्मज होते हैं । इस विधि का प्रजनन कार्यक्रमों में चीन , जापान , कनाडा , यूरोप आदि में उपयोग किया गया है और कई व्यापारिक किस्मों का विकास भी किया गया है ।
5. भ्रूण बचाव ( Embryo Rescue ) : कई अंतरजातीय ( Inter – specific ) संकरणों में भ्रूणपोष ( Endosperm ) के अपहासन ( Degeneration ) के कारण संकरित भ्रूण जीवित नहीं बच पाते हैं । ऐसे संकर भ्रूणों को बचाने के लिए उनका तरुण ( Young ) अवस्था में बीज से निकाल कर पात्रे कल्चर करते हैं । उदाहरणार्थ , ट्रिटिकेल की प्राप्ति ट्रिटिकम ( Triticum ) एवं सीकेल ( Secale ) के संकरणों से होती है । अधिकांश ट्रिटिकम लाइनों में दो प्रभावी जीन , Kr1 एवं Kr2 उपस्थित होते हैं , जो सीकेल ( Secale ) से संकरण करने पर बीजों के परिवर्धन ( Development ) में बाधक होते हैं । अतः अधिकांश संकर बीज काफी छोटे , सिकुडे एवं निम्न अंकुरण क्षमता वाले होते हैं । इसके साथ ही , परागण किए गए फूलों में से केवल 5-10 प्रतिशत में बीज बनते हैं । लेकिन परागण के 10-14 दिन बाद भ्रूणों को निकालकर उपयुक्त पोषपदार्थ पर कल्चर करने पर 50-70 प्रतिशत फूलों से संकर पौधे प्राप्त होते हैं । इसी प्रकार , गेहूँ ( ट्रि . एस्टिवम ) x जौ के भ्रूणपोषों को कल्चर करके संकर पौधे प्राप्त किए गए हैं ।
6. कायिक क्लोनीय विविधता ( Somaclonal Variations ) : कायिक क्लोनीय विविधताएं के उपयोग से शकरकंद की किस्म ‘ स्कार्लेट ‘ ( Scarlet ) जिरैनियम की किस्म सिग्मा ( Sigma ) , सरसों की किस्म पूसा जय किसान ( Pusa Jai Kisan ) आदि का विकास किया गया ।
7. साइब्रिड ( Cybrids ) : साइब्रिडों का उत्पादन एक प्रजाति के समान्य प्रोटोप्लास्टों का दूसरी प्रजाति के केन्द्रकविहीन ( स्वतः या जानबूझ कर उत्पादित ) प्रोटोप्लास्टों से संलग्न करके करते हैं । इनके उपयोग से तम्बाकू पत्तागोभी , धान , आलू पिटूनिया आदि में कोशिकाद्रव्यी ( Cytoplasmic ) नर बंध्यता एवं ट्राएजीन रोधिता ( Triazine Resistance ) जैसे लक्षणों का स्थानान्तरण किया गया है ।
8. जननद्रव्य संरक्षण ( Germplasm Conservation ) : पारम्परिक विधि में जननद्रव्य का संरक्षण बीजों के रूप में करते हैं । किन्तु कई प्रजातियाँ अलैंगिक जननिक ( Asexually Reproducing ) होती हैं अथवा उनके बीज अल्प आयु वाले तथा बहुत कम अंकुरण क्षमता वाले होते हैं । ऐसी प्रजातियों के जननद्रव्य संग्रहों का भंडारण हिमीकृत संरक्षण ( Freeze Preservation ) , मंद- वृद्धि कल्चर ( Slow Growth Culture ) , शुष्क कायिक भ्रूण ( Desiccated Somatic Embryoids ) , कृत्रिम बीज एवं डीएनए क्लोन के रूप में किया जाता है ।