पादप ऊतक संवर्धन ( Plant Tissue Culture ) : परिभाषा, शब्दावली, विधियाँ

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पादप ऊतक संवर्धन ( Plant Tissue Culture )

 

परिभाषा ( Definition ) : पादप ऊतक संवर्धन ( Plant Tissue Culture ) का तात्पर्य पादप कोशिकाओं , ऊतकों तथा अंगों के कृत्रिम पोषक पदार्थ ( Artificial Medium ) पर पात्रे  ( in vitro ) संवर्धन से है ।

 

शब्दावली – पादप ऊतक संवर्धन की प्रक्रिया के तहत प्रयोग किये जाने वाले शब्द निम्नलिखित हैं –

कर्तोतक ( Ex – plant ) : संवर्धन आरम्भ करने के लिए उपयोग में लाए जाने वाले पौधों से लिए गये ऊतक या अंग के काटे हुए टुकड़े ।

कैलस ( Callus ) : पोष माध्यम पर कर्तेतक से प्राप्त असंगठित एवं अविभेदित , ध्रुवता रहित कोशिकाओं के समूह को कैलस कहते है ।

जीव द्रव्यक ( Protoplast ) : कोशिका झिल्ली युक्त परन्तु कोशिका भित्ति रहित पादप कोशिकाओं को प्रोटोप्लास्ट कहते हैं ।

उपसंवर्धन ( Sub culture ) : कुछ अवधि के बाद संवर्धो का पुराने पोष माध्यम से नये पोष माध्यम पर स्थानान्तरण करना आवश्यक हो जाता है । इसके लिए पुराने संवर्ध ( Culture ) के एक अंश को नये पोष माध्यम पर स्थानान्तरित किया जाता है , इसे उपसंवर्धन कहते हैं ।

भ्रूण संवर्धन ( Embryo Culture ) : पादप के अर्धविकसित अथवा पूर्णविकसित भ्रूण का संवर्धन , भ्रूण संवर्धन ( Embryo Culture ) कहलाता है । भ्रूण संवर्धन के तहत् परिवर्धित हो रहे बीजों से भी तरूण भ्रूण को निकालकर पोष माध्यम पर सवर्धित कर पौधों की प्राप्ति करने को भ्रूण संवर्धन कहते हैं । तरूण भ्रूणों का निलबंक ( Suspensor ) क्षतिग्रस्त नहीं होना चाहिए , क्योंकि यह भ्रूण को जिबरेलिनों की आपूर्ति करता है । सर्वप्रथम हेनिंग ने रेफेन्स व काकलेरिया ( क्रुसीफेरी ) पर कार्य करते हुये भ्रूण का पात्रे संवर्धन किया ।

पराग संवर्धन ( Pollen Culture ) : किसी भी पादप के परागकणों को पोष माध्यम पर सवर्धित करके अगुणित पादपों का निर्माण करने की क्रिया को पराग संवर्धन कहते हैं ।

विभज्योत्तक संवर्धन ( Meristem Culture ) : शीर्षस्थ या कक्षस्थ विभज्योत्तक विशेषकर प्ररोहाग्र विभज्योत्तक ( Shoot Apices ) के संवर्धन को मेरिस्टेम संवर्धन कहते हैं । चूँकि सामान्यतया प्ररोहाग्र विभज्योत्तक का संवर्धन किया जाता है । अतः इसे प्ररोहाग्र संवर्धन ( Shoot Tip Culture ) भी कहते हैं ।

पूर्णशक्तता ( Totipotency ) : किसी भी पादप कोशिका के संवर्धन से नये पादप बनाने की क्षमता को पूर्णशक्तता कहते है ।

पोषक पदार्थ ( Nutrient Medium ) : जिस पदार्थ पर पादप अंगों , ऊतकों तथा कोशिकाओं को सवर्धित करते हैं उसे पोषक पदार्थ या संवर्धन पदार्थ ( Culture medium ) कहते है । पोष पदार्थ को जर्महीन ( Aseptic ) करने के लिए उसे 15p.s.i. ( पौंड प्रतिवर्ग इंच ) दाब 121 ° ताप पर आटोक्लेव करते है । साधारणतया , ऑटोक्लेव करने के पहले पोष पदार्थ ( Medium ) को फ्लास्कों या संवर्ध नलियों ( Culture Tubes ) में वितरित कर दिया जाता है । सतह रोगाणुनाशित कर्तोतकों ( Surface Sterilized Explants ) को जर्महीन ( Aseptic ) वातावरण में पोष पदार्थ पर रखा जाता है ।

पात्रे तकनीक ( in vitro techniques ) : पात्रे तकनीक का अर्थ है पौधों के अंगों , ऊतकों तथा कोशिकाओं को परखनली में कृत्रिम पोषक पदार्थों पर सवर्धित करना । इस तकनीक का विकास सभी पादप कोशिकाओं की पूर्णशक्तता ( Totipotency ) प्रमाणित करने के लिए किया गया था ।

 

पात्रे तकनीक की समस्याएँ ( Problems in in vitro Technique ) : पात्रे तकनीक की दो मुख्य समस्याएँ हैं : ( 1 ) पादप कोशिकाओं , ऊतकों आदि को सूक्ष्मजीवियों से मुक्त रखना । ( 2 ) कोशिकाओं तथा ऊतकों में वांछित वृद्धि कराना ।

उपर्युक्त समस्याओं के समाधान के लिये निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक है –

1. सतह रोगाणुनाशन ( Surface Sterilization ) : पौधे के जिस भाग को संवर्धन के लिए पोषक पदार्थ पर रखा जाता है उसे कर्तोतक ( Explant ) कहते हैं । कर्तोतक की सतह पर अनेक कवकों के बीजाणु तथा बैक्टीरिया उपस्थित हो सकते हैं । उपयुक्त उपचार द्वारा कर्तोतकों की सतह को इन सूक्ष्मजीवों से मुक्त करना सतह रोगाणुनाशन कहते हैं ।

2. रोगाणुनाशन ( Sterilization ) : पादप ऊतक कल्चरों को संदूषण ( Contamination ) से बचाना अनिवार्य होता है । इसके लिए सभी संवर्धन पात्रों , पोषक पदार्थो , उपकरणों आदि को सूक्ष्मजीवों से मुक्त किया जाता है । सूक्ष्म जीवों को निष्क्रिय करने को रोगाणुनाशन या निर्जर्मीकरण कहा जाता है ।

 

1. अंग संवर्धन ( Organ Culture ) : किसी भी पादप के विभिन्न अंगों जैसे : – जड़ , तना , पत्ती , अण्डाश्य , परागकोष , भ्रुणकोष आदि को पोष माध्यम पर सवर्धित करके पादपों का निर्माण करना अंग संवर्धन कहलाता है

2. भ्रूण संवर्धन ( Embryo Culture ) : हैनिंग ( Hanning ) ने 1904 में बीज के परिपक्व भ्रूण को पोष पदार्थ पर सवर्धित करके पादप भ्रूण संवर्धन की शुरूआत की एवं लेबॅक ( Laibach ) ने ( 1925 , 1929 ) भ्रूण संवर्धन का वास्तविक उपयोग दर्शाया । किसी पादप के भ्रूण को पात्रे संवर्धन ( in vitro Culture ) हेतु उपयुक्त होने के पश्चात् बीज को परिपक्व होने में 10-20 दिन लगते हैं । इस अवस्था पर भ्रूण को संवर्धित कर लिया जाये तो उनसे सीधे ही पौधे ( Seedlings ) प्राप्त कर सकते हैं । इस प्रकार भ्रूण सवंर्धन करके नये पौधे प्राप्त करने में 10-20 दिन तक की बचत की जा सकती है , तथा नई किस्मों के विकास के लिए आवश्यक समय घटाया जा सकता है ।

भ्रूण संवर्धन के लिए भ्रूण को दो प्रकार से संवर्धित किया जा सकता है : 1. बीज से भ्रूण प्राप्त करना । 2. विकसित हो रहे भ्रूण को पादप से प्राप्त करना ।

भ्रूण को निकालकर निर्जम परिस्थितियों ( Aseptic Conditions ) में संवर्धन माध्यम पर स्थानान्तरित करते है । पौधों से लिये हुए अपरिपक्व भ्रूण को जब पोष माध्यम पर संवर्धित करते है तो सुषुप्तावस्था के साथ – साथ भ्रूण विकास की अन्य अवस्थाओं में नहीं जाता है बल्कि एक पौधे के रूप में ( Seedling ) में विकसित हो जाता है ।

भ्रूण संवर्धन के लिए विभिन्न युक्तियां ( Different Means for Embryo Culture ) : सर्वप्रथम प्रयोग में आने वाले उपकरण ( चाकू , सूई , चिमटी ) आदि को निर्जमीकृत कर लिया जाता है । अब चयनित फल की सतह को सोडियम हाइपोक्लोराइट या एल्कोहल से निर्जमीकृत कर उसे निर्जमीकृत आसुत जल से धो लेते हैं ।

अब फल को काटकर निर्जमीकृत चिमटी की सहायता से बीजाण्ड या बीज को निर्जम पैट्रीडिश में रख देते हैं । बीजाण्ड को काटकर उसमें से भ्रूण को विलगित कर लेते हैं तथा तरुण भ्रूणों को सीधे ही पोष माध्यम पर सवर्धित कर देते हैं ।

3. पराग संवर्धन की विधि ( Procedure of Pollen Culture ) : पराग संवर्धन के लिए धतुरा इनोक्सिया ( Datura innoxia ) परागकोषों का पात्रे ( in vitro ) संवर्धन 1964 में सर्वप्रथम शिप्रा गुहा मुखर्जी एवं सतीश चन्द्र महेश्वरी द्वारा किया गया था । उनके प्रयोगों में परागकोषों के अन्दर अनेक भ्रूण ( Embryo ) सदृश संरचनाएँ उत्पन्न हुई । इन्हें भ्रूणाभ ( Embryoids ) कहा गया तथा प्रत्येक भ्रूणाभ एक अगुणित पादप ( Haploid Plantlet ) में विकसित हुआ ।

पराग संवर्धन के लिए , परागकोषों से परागकणों को अलग कर लेते हैं ।

विलगित परागकणों ( Isolated Pollen Grains ) के पा संवर्धन से अगुणित ( Haploid ) पौधों या अगुणित कैलस के उत्पादन को पराग संवर्धन कहते हैं । परागकणों को परागकोषो से अलग करने से पहले , परागकोषों को 4-7 दिन तक उपयुक्त दशाओं में पूर्व संवर्धन ( Pre culture ) करते हैं । संश्लेषित पोष माध्यम पर परागकणों का सीधे संवर्धन करते हैं । संश्लिष्ट पोष माध्यम के महत्त्वपूर्ण घटक G- ग्लूटेमीन , L – सीरीन एवं इनासिटॉल हैं । सोलेनेसी कुल के पौधों में सर्वाधिक अगुणित पौधों की प्राप्ति हुई ।

4. कोशिका संवर्धन ( Cell Culture ) : पादप कोशिकाओं ( Plant cells ) को पोष पदार्थ पर असंगठित कैलस या निलंबन संवर्धनों ( Suspension culture ) के रूप में संवर्धन करने को कोशिका संवर्धन कहते हैं । विभिन्न प्रकार के पदार्थ जैसेः द्वितीयक उपापचयक , एन्जाइम उत्पाद , एकल कोशिका प्रोटीन आदि उत्पन्न करने के लिए कोशिका संवर्धन का प्रयोग किया जाता है । इन संवर्धनों को निलम्बन संवर्धन भी कहा जाता है । निलम्बन संवर्धनों से एकल कोशिकाओं की प्राप्ति के लिए कोशिका समूहों को छानकर अलग कर देते हैं , फिर एकल कोशिकाओं को अपकेन्द्रण ( Centrifugation ) द्वारा प्राप्त करते हैं ।

कोशिका संवर्धनों के पोष पदार्थों में लगभग हमेशा ही एक ऑक्जिन ( Auxin ) साधारणत्या 2,4 – D मिलाया जाता है ।

कहीं – कहीं एक साइटोकाइनिन ( Cytokinin ) , जैसे काइनेटिन ( kinetin ) या BAP ( Benzyl Amino Purine ) भी मिलाते हैं , किन्तु निलंबन संवर्धन में कोई साइटोकाइनिन नहीं मिलाया जाता है ।

अधिकतर प्रजातियों के कोशिका संवर्धन में मूलोत्पादन ( Root Regeneration ) होता है । किन्तु कुछ पौधों में पहले प्ररोह ( Shoot ) का पूनर्जनन और बाद में उनमें जड़ें निकलती है , जैसे – कॉफी , तंबाकू , धान , गेहूँ , जौ आदि ।

 

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