बीजोत्पादन : परिभाषा, बीजों के प्रकार, बीज उत्पादन की वैज्ञानिक तकनीक

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बीजोत्पादन ( Seed Production )

 

बीज उत्पादन (Seed Production) : बीज उत्पादन प्रक्रिया एक ऐसी वैज्ञानिक विधि है जिसके द्वारा आनुवंशिक शुद्धता , उच्च अंकुरण क्षमता , रोग रहित व अधिक पैदावार की क्षमता वाले बीजों का उत्पादन किया जाता है ।

वैज्ञानिकों द्वारा उन्नत किस्मों का उत्पादन एवं विकास निरन्तर किया जा रहा है । प्रारम्भिक अवस्था में विकसित उन्नत बीज की मात्रा अत्यन्त सीमित होती है । अतः यह आवश्यक है कि निर्धारित मापदण्डों की पालना करते हुए इन बीजों का गुणन किया जाना चाहिए ताकि आवश्यकतानुसार उन्नत किस्मों के बीज सभी किसानों को समय पर उपलब्ध हो सके । उन्नत बीजों का गुणन प्रायः राजकीय फार्म , विश्वविद्यालय के कृषि फार्म एवं प्रगतिशील कृषकों के खेतों पर प्रमाणित बीज उत्पादन कार्यक्रम के अन्तर्गत किया जाता है ।

किसी भी फसल के उत्तम बीज प्रयोगशाला से किसानों तक निम्नलिखित उन्नत बीजों की चार श्रेणियों ( बीजों के प्रकार ) में उत्पादित होकर पहुँचता है । इनका विवरण निम्न प्रकार है –

1. मूल केन्द्रक बीज या न्यूक्लियस सीड ( Nucleus seed ) : मूल केन्द्रक बीज किसी उन्नत किस्म के बीजों की वह प्रारम्भिक मात्रा है जो सम्बन्धित पादप प्रजनक के पास होती है । यह बीज शत – प्रतिशत शुद्ध होता है । इनका उत्पादन पादप – प्रजनक की देख – रेख में किया जाता है ।

2. प्रजनक बीज या ब्रीडर सीड ( Breeder seed ) : न्यूक्लियस सीड के गुणन के बाद जो बीज प्राप्त होता है वह ब्रीडर सीड कहलाता है । आनुवंशिक एवं भौतिक दृष्टि से यह बीज भी शत – प्रतिशत शुद्ध होता है तथा पादप प्रजनक की देख – रेख में कृषि अनुसंधान केन्द्रों पर उत्पन्न किया जाता है । इस प्रकार के बीजों की थैली पर सुनहरे पीले रंग का टैग लगा रहता है और यह आधार बीज़ का स्रोत होता है ।

3. आधार बीज ( Foundation seed ) : प्रजनक बीज से जो बीज पैदा किया जाता है उसे आधार बीज कहते हैं । आधार बीज का उत्पादन बीज प्रमाणीकरण संस्था की देख – रेख में किया जाता है । इसकी आनुवंशिक शुद्धता 98 प्रतिशत तक होती है । इस प्रकार के बीजों की थैली पर सफेद रंग का टैग लगा रहता है और यह प्रमाणित बीज का स्रोत होता है ।

4 . प्रमाणित बीज ( Certified seed ) : आधार बीज से प्रमाणित बीज उत्पन्न किया जाता है । इसका उत्पादन प्रमाणीकरण संस्था की देख – रेख में किया जाता है और यह प्रमाण पत्र दिया जाता है कि इसकी आनुवंशिक व भौतिक शुद्धता , अंकुरण प्रतिशत एवं आर्द्रता मात्रा आदि प्रमाणीकरण मानकों के अनुरूप है । इस प्रकार के बीजों की थैली पर नीले रंग का टैग लगा रहता है और यह किसानों को फसल उत्पादन के लिए बेचा जाता है ।

 

उत्तम बीज उत्पादन की वैज्ञानिक तकनीक –

कृषक को बीज उत्पादन कार्यक्रम में निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए ताकि उत्तम गुणवत्तायुक्त बीजों का उत्पादन हो सके ।

1. बीज का चुनाव : बीज उत्पादन हेतु प्रजनक / आधार / प्रमाणित बीज ही प्रयोग में लेना चाहिए एवं इसमें अन्य बीजों का मिश्रण नहीं होना चाहिए । बीज मान्यता प्राप्त बीज उत्पादक संस्थानों या विश्वविद्यालयों अथवा मान्यता प्राप्त संस्थानों से ही क्रय करना चाहिए । यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बीज की किस्म कृषि जलवायु खण्ड में सिफारिश की गई हो तथा उपयुक्त पैदावार देती हो । बीजों को बीज जनित रोगों से बचाव हेतु फफूंदनाशी , कीटनाशी एवं शाकाणु संवर्ध से अवश्य उपचारित करें । बीजों के खाली कट्टे , टैग , लेबल , बिल इत्यादि को सुरक्षित रखें जिससे प्रमाणीकरण संस्था द्वारा मांगने पर प्रस्तुत किये जा सके ।

2. पृथक्करण दूरी व खेत का चयन ( Isolation distance and field selection ) : आनुवंशिक शुद्धता को बनाए रखने के लिए फसल की किन्हीं दो किस्मों के मध्य निश्चित दूरी बनाये रखना आवश्यक है । यह दूरी पृथक्करण दूरी ( Isolation distance ) कहलाती है । इसका तात्पर्य यह है कि जिस फसल का बीज उत्पादन कार्यक्रम ले रहे हैं उसके चारों ओर एक निर्धारित दूरी तक दूसरे खेतों में वह फसल नहीं होनी चाहिए । प्रत्येक फसल के लिए बीज उत्पादन हेतु अलग – अलग पृथक्करण दूरी की सिफारिश की गयी है क्योंकि कुछ फसलों में परपरागण होता है तथा कुछ फसलों में स्वपरागण होता है । अतः बीजोत्पादन हेतु खेत के चयन में यह ध्यान रखें कि फसल के लिए उपयुक्त पृथक्करण दूरी उपलब्ध है अन्यथा परपरागण से बीजों की आनुवंशिक शुद्धता नहीं रह पायेगी ।

 

बीज उत्पादन के लिए विभिन्न फसलों की पृथक्करण दूरी ( Isolation distance ) : खेत का चयन करते समय यह भी ध्यान रखें कि खेत में पिछले मौसम में उस फसल को न उगाया गया हो जिसका बीज उत्पादन लिया जा रहा है , क्योंकि कुछ फसलों के बीज कटाई के समय खेत में गिर जाते हैं तथा दूसरे मौसम में उग आते हैं जिससे फसल में अन्य किस्मों का मिश्रण हो जाता है । अतः खेत स्वैच्छिक उगे पौधों से मुक्त होना चाहिए ।

फसल

 पृथक्करण दूरी

आधार बीज

(  मीटर  )

प्रमाणित बीज

जौ , गेहूँ , जई व धान

3

3

मक्का की संकुल किस्में

400

200

संकर मक्का

600

300

ज्वार

200

100

चना

10

5

सोयाबीन , मूंगफली

3

3

 

3. उन्नत सस्य क्रियाएँ : बीज उत्पादन में सभी उन्नत सस्य क्रियाओं एवं कीट व रोग नियंत्रण की अनुमोदित सिफारिशों का अनुसरण करना चाहिए जैसे –

• बुआई पूर्व सीड ड्रिल को अच्छी तरह से साफ कर लें तथा यह निश्चित कर लें कि सीड ड्रील में कोई अन्य बीज नहीं है ।

• सिफारिशानुसार सन्तुलित उर्वरकों का प्रयोग करें ।

• फसल की क्रान्तिक अवस्थाओं पर सिंचाई अवश्य करें ।

• फसल में उचित समय पर निराई – गड़ाई अवश्य करें ताकि बीजों में खरपतवार के बीजों का मिश्रण न हो ।

• समय – समय पर खेत का निरीक्षण करते रहें तथा अन्य किस्मों के पौधों व अन्य भिन्न पौधों को वानस्पतिक , फूलों के रंग , फलियों के आकार आदि में भिन्नता के आधार पर उखाड़कर खेत से बाहर फेंक देना चाहिए । यह क्रिया रोगिंग ( Rouging ) कहलाती है । रोगिंग इस तरह करनी चाहिए जिससे बीजों की गुणवत्ता एवं आनवंशिक शुद्धता का स्तर निर्धारित मापदण्डों से कम न हों । जिस फसल एवं किस्म का बीज उत्पादन कार्यक्रम लिया गया है उसके अतिरिक्त खेत में अन्य फसल , अन्य किस्म , असमान पौधे , रोग ग्रस्त पौधे एवं खरपतवार का एक भी पौधा नहीं होना चाहिए ।

• आवश्यकतानुसार पौध संरक्षण उपाय करें ।

• फसल की उचित समय ( बीज के पूर्ण पकने ) पर कटाई करें ।

 

4. गहाई : गहाई करते समय निम्न बातों का अवश्य ध्यान रखें जिससे बीज की भौतिक शुद्धता बनी रहे ।

• खलिहान को अच्छी प्रकार साफ कर लें ।

• गहाई मशीन को खलिहान पर ले जाने से पूर्व भलीभांति साफ कर यह सुनिश्चित कर लें कि मशीन में अन्य फसलों व किस्मों के बीज नहीं है ।

• थ्रेसर का आर.पी.एम. निश्चित कर लें जिससे बीज टूटे नहीं ।

• जहाँ तक संभव हो बीज हेतु नई बोरियाँ ही काम में लें । यदि पुरानी बोरियाँ काम में लेनी हो तो उनको पलटकर झाड़ लें एवं अन्य बीजों को निकाल लें ।

• बीज को बोरों में भरने से पूर्व निर्धारित नमी तक सुखा लेना चाहिए ।

 

5. विधायन एवं भण्डारण : उत्तम बीज की गुणवत्ता उसके सावधानीपूर्वक किये गये विधायन एवं भण्डारण पर बहुत निर्भर करती है । गहाई करने के बाद बीज को बोरियों में भरकर विधायन केन्द्रों पर प्रसंस्करण ( Processing ) हेतु भेजा जाता है । विधायन क्रिया में बीज को अच्छी प्रकार सुखाकर मशीनों द्वारा साफ कर वर्गीकृत किया जाता है व आवश्यक बीजोपचार के पश्चात् उपयुक्त आकार के कट्टे व थैलियों में भरकर प्रपत्र के साथ सिल दिया जाता है । वर्गीकरण द्वारा एक आकार एवं वजन के पुष्ट बीजों का चयन कर अन्य छोटे , कटे एवं हल्के बीजों को निकाल दिया जाता है । सफाई प्रक्रिया में भौतिक अशुद्धियों और अवांछित एवं आपत्तिजनक खरपतवार के बीजों को अलग कर देते हैं । बीजों को उचित नमी पर बोरों में भरकर गोदाम में रखें । भण्डारण उपरान्त गोदाम को धूमीकरण कर बन्द कर दें । समय – समय पर गोदाम का निरीक्षण करते रहना चाहिए ।

इस प्रकार प्रमाणित बीज का उत्पादन भी एक प्रकार का विज्ञान है जिसके लिए वैज्ञानिक दक्षता आवश्यक है । अतः बीज उत्पादन के लिए प्रमाणीकरण संस्था की देख – रेख की आवश्यकता होती है । इसलिए भारत में यह कार्य राष्ट्रीय बीज निगम तथा राजस्थान में राजस्थान राज्य बीज निगम करती है ।

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