बीज की सुषुप्तावस्था ( Seed Dormancy )
सुषुप्तावस्था अथवा प्रसुप्ति काल बीज की वह अवस्था है जब इसकी सक्रिय वृद्धि कुछ काल के लिये निलम्बित हो जाती है। यह निलम्बन अल्प अथवा दीर्घ काल के लिये हो सकता है ।
वास्तविकता में सुषुप्तावस्था का अभिप्राय है कि पूर्णतः परिपक्व बीज अन्य सभी परिस्थितियों के सामान्य होने पर भी अंकुरित नहीं हो पाता है जो अन्यथा अंकुरण के लिये आवश्यक होती है ।
सुषुप्तावस्था में बीज की स्वयं की रासायनिक संरचनात्मक या अथवा कार्यिकीय विशिष्टताओं के कारण अंकुरण नहीं हो पाता है ।
बीज सुषुप्तावस्था के प्रकार –
उत्पत्तिनुसार सुषुप्तावस्था तीन प्रकार की मानी गई है –
1. प्राथमिक सुषुप्तावस्था ( Primary dormancy )
2. द्वितीयक सुषुप्तावस्था ( Secondary dormancy )
3. बलकृत सुषुप्तावस्था ( Enforced dormancy )
1. प्राथमिक सुषुप्तावस्था ( Primary dormancy ) : यह एक प्रकार से प्राकृतिक सुषुप्तावस्था है जिसका सम्बन्ध बीज की स्वयं की कार्यिकीय विशेषताओं से है । जब फसल पकने लगती है तो कुछ बीज शुष्क भार के आधार पर परिपक्वता प्राप्त कर लेते हैं परन्तु ये अंकुरित होने योग्य नहीं होते हैं । दूसरे शब्दों में ये बीज सुषुप्तावस्था काल में ही है । ऐसी सुषुप्तावस्था बीज के शुष्क भण्डारण से दूर की जा सकती है । यह सुषुप्तावस्था बीज कवच ( Seed coat ) की कठोरता , भ्रूण ( Embryo ) के अल्प विकास , प्रकाश आवश्यकता अथवा रासायनिक कारणों से हो सकती है ।
2. द्वितीयक सुषुप्तावस्था ( Secondary dormancy ) : यह एक प्रकार से प्रेरित सुषुप्तावस्था ( Induced dormancy ) है । सामान्य परिस्थितियों के अभाव में बीज अंकुरित नहीं हो पाता है । अतः असामान्य परिस्थितिवश बीज सुषुप्तावस्था प्राप्त कर लेता है ।
3. बलकृत सुषुप्तावस्था ( Imposed / Enforced dormancy ) : इस प्रकार की सुषुप्तावस्था बीजों के मृदा में अधिक गहराई में चले जाने के कारण होती है । इसके मुख्य कारण है प्रतिकूल तापक्रम , प्रकाश का पूर्ण अभाव , कार्बन – डाईऑक्साइड की अधिकता व मृदा का अधिक भार । जैसे ही ये बीज मृदा के ऊपर की ओर आते हैं ये अंकुरण योग्य हो जाते हैं । बलकृत सुषुप्तावस्था अधिकांशतः खरपतवार के बीजों में उत्पन्न होती है । अंकुरण हेतु आवश्यकताओं जैसे नमी ( Moisture ) व गैसों ( Gases ) के प्रति अपारगम्य होते हैं , जिससे बीज अंकुरित ना होकर सुषुप्त हो जाता है । पूर्ण भ्रूण विकास से पूर्व ही कठोर कवच निर्माण से भी बीजों में सुषुप्तावस्था आ जाती है ।
कई प्रकार के पादप अंतःस्राव ( Plant hormones ) व अंकुरण निरोधी ( Germination inhibitors ) व अन्य जैव रसायन बीज के आवरण , भ्रूण या भ्रूणपोष में उपस्थित होते हैं तथा ये भी सुषुप्तावस्था को नियंत्रित करते हैं ।
बीज सुषुप्तावस्था को भंग करने की विधियाँ –
1. प्रकाश से उपचार ( Light treatment )
2. ताप से उपचार –
( i ) तापीय एकान्तरण ( Alternating temperature )
( ii ) शीतन ( Chilling )
( iii ) उच्च ताप ( High temperature )
3. पश्य परिपक्वन ( Post maturation )
4. क्षय चिह्न ( Scarification ) –
( i ) भौतिक ( Physical )
( ii ) रासायनिक ( Chemical )
5. रसायनों से उपचार उदाहरणार्थ वृद्धि नियामक जैसे कि जिब्बरलिंस , साइटोकाइनिंस व इथालीन , पादप उत्पाद , श्वसन निरोधक ऑक्सीकारक , नाइट्रोजन / सल्फर युक्त यौगिक ।