बीज ( Seed ) : परिभाषा , उत्तम बीज के गुण

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बीज ( Seed )

बीज की परिभाषा ( Definition of seed ) – दाना , फल , पत्ती , जड़ अथवा तने का वह भाग जो अपने समान रूप के स्वस्थ पौधे को जन्म देता है बीज कहलाता है ।

तकनीकी दृष्टि से पुष्प के परिपक्व बीजाण्ड को ही बीज कहते हैं जिसमें सूक्ष्म भ्रूण व भ्रूणपोष सुरक्षात्मक आवरण से ढका रहता है । साधारण शब्दों में हम कह सकते हैं कि जीवित भ्रूण वाला दाना ही बीज है जो बुवाई के काम आता है ।

फसलोत्पादन में बीज का सर्वोपरि स्थान है । फसल उत्पादन की सफलता मुख्य रूप से गुणवत्ता युक्त बीजों के प्रयोग पर निर्भर करती है । कृषि उत्पादन में अन्य आदानों जैसे सिंचाई , खाद , शाकनाशी , कवकनाशी , कीटनाशी इत्यादि की सफलता भी बीज की गुणवत्ता एवं ओज क्षमता पर आधारित होती है । यदि बीज की स्थिति संदिग्ध है तो अन्य आदानों का कोई महत्त्व नहीं रह जाता क्योंकि बीज सही एवं विश्वसनीय नहीं होगा तो फसल उत्पादन के अन्य सभी प्रयास विफल हो जाते हैं । अतः अधिक उपज लेने के लिए उत्तम किस्म के बीजों का प्रयोग आवश्यक हो जाता है । अभी देश के किसानों को 12 प्रतिशत उन्नत बीज ही उपलब्ध हो रहा है इसलिए गुणवत्ता युक्त बीजों के उत्पादन एवं वितरण को बढ़ाने की आवश्यकता है ।

उत्तम बीज के गुण ( Characteristics of good quality seed ) : वह किस्म जो स्थानीय किस्म के मुकाबले 10-15 प्रतिशत अधिक उपज देती हो एवं विभिन्न प्रकार की जलवायु व मिट्टी के प्रति अनुकूल हो तथा निश्चित समय पर परिपक्व अवस्था में पहुँचती हो , उन्नत किस्म कहलाती है ।

उन्नत किस्म के बीज में निम्न गुण होने चाहिए –

1. आनुवंशिक शुद्धता ( Genetic purity ) : उत्तम बीज का मुख्य लक्षण उसकी आनुवंशिक शुद्धता है । अतः शुद्ध व प्रमाणित बीज में अपनी किस्म के अनुरूप आकार – प्रकार , रंग – रूप एवं वजन के सभी लक्षण पाये जाने चाहिए । बीज आकार व रंग में एक समान व चमकीले होने चाहिए ।

2. भौतिक शुद्धता ( Physical purity ) : उत्तम बीज भौतिक रूप से शुद्ध होना चाहिए । उसमें अन्य फसलों , किस्मों तथा खरपतवार के बीजों की मिलावट नहीं होनी चाहिए । बीज में कंकर – पत्थर , मिट्टी , कूड़ा – कचरा , फसल के अवशेष , भूसा आदि भी नहीं होने चाहिए । मिलावट होने से खेत में वांछित फसल व किस्म के पौधों की संख्या घट जाती है , खरपतवार के पौधे फसल से प्रतियोगिता करते हैं जिससे उपज कम प्राप्त होती है व उत्पादन की गुणवत्ता घट जाती

3. बीज ओज ( Seed vigour ) : बीज ओज से तात्पर्य बीज की उम्र , आकृतिक तथा क्रियात्मक स्वस्थ्यता से है जिसमें तीव्रता से समान अंकुरण व पौधों का विकास होता है । उत्तम बीज में पर्याप्त ओज होता है , जिससे पौधे की बढ़वार तेज गति से होती है । बीज ओज अच्छा नहीं होने पर पौधों की बढ़वार धीमी गति से होती है जिससे फसल की उपज व गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । पुराने बीजों की अंकुरण शक्ति कम होती है अर्थात् उम्र के साथ ओज घटता जाता है ।

4. उच्च अंकुरण क्षमता ( High germinability ) : उत्तम बीज में उच्च अंकुरण क्षमता होनी चाहिए । अंकुरण क्षमता का खेत में उगे पौधों की संख्या एवं फसल की उपज से सीधा सम्बन्ध है । बीज की सही मात्रा , उसकी अंकुरण प्रतिशत के आधार पर तय होती है । इसलिए अंकुरण क्षमता की जानकारी करके ही बीजों की बुआई करनी चाहिए जिससे खेत में वांछित संख्या में पौधे मिल सके । यह सर्वमान्य है । कि कम आयु वाले ( नये ) चमकदार , स्वस्थ तथा सुडौल बीजों का अंकुरण पुराने , बदरंग , कटे – फटे रोगग्रस्त बीजों की अपेक्षा अधिक होता है । कुछ प्रमुख फसलों के बीजों की न्यूनतम अंकुरण क्षमता इस प्रकार है

5. नमी की मात्रा ( Moisture content ) : उत्तम बीजों में निर्धारित मात्रा से अधिक नमी नहीं होनी चाहिए । अधिक आर्द्रता के कारण बीज में कवक / कीट आदि का प्रकोप हो जाता है जिससे अंकुरण क्षमता कम हो जाती है तथा बीज ओज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है । अनाज के बीजों में भण्डारण के समय नमी 12 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए ।

फसलों का नाम

न्यूनतम अंकुरण क्षमता

गेहूँ , जौ एवं चना

85 प्रतिशत

धान , ज्वार , तिल , बरसीम , रिजका

80 प्रतिशत

बाजरा , मूंग , मोठ , उड़द , अरहर , चंवला

75 प्रतिशत

मूँगफली , सोयाबीन , सूरजमुखी , ग्वार 

70 प्रतिशत

कपास

65 प्रतिशत

• बीज की अंकुरण प्रतिशतता = अंकुरित बीजों की संख्या / बोये गये बीजों की संख्या × 100

6. रोगमुक्तता ( Free from diseases ) : बीज निरोग , रोगाणु एवं कीट व्याधि प्रकोप रहित होने चाहिए । रोग एवं कीटग्रस्त बीज की अंकुरण क्षमता कम होती है । कई रोगों के विषाणु – जीवाणु बीजों के साथ लगे होते हैं जिससे अंकुरित होते ही पौधे रोग / कीट ग्रस्त हो जाते हैं । इसलिए उत्तम बीज सभी प्रकार के रोगों से मुक्त होना चाहिए ।

7. परिपक्वता ( Maturity ) : उत्तम बीज पूर्णरूप से परिपक्व , साफ तथा सुडौल आकार का होना चाहिए । पूर्णरूप से परिपक्व बीज चमकीला , साफ एवं भरा हुआ होता है जबकि अपरिपक्व बीज सिकुड़े हुए , छोटे तथा बदरंग होते हैं । अपरिपक्व बीजों में अंकुरण कम होता है तथा पौधे प्रारम्भ से ही छोटे तथा कमजोर रह जाते हैं । उनमें जलवायु तथा मृदा की प्रतिकूल दशाओं , खरपतवार , कीट तथा रोगों से संघर्ष करने की क्षमता भी कम होती है । अतः अच्छी प्रकार से परिपक्व , साफ , गुद्देदार तथा सुडौल आकार का बीज ही बोना चाहिए ।

8. वास्तविक उपयोगिता मान ( Real value ) : अच्छे बीज का वास्तविक उपयोगिता मान 75 प्रतिशत से कम नहीं होना चाहिए । यह अच्छे बीज का महत्वपूर्ण गुण है ।

• वास्तविक उपयोगिता मान = अंकुरण प्रतिशत x शुद्धता प्रतिशत / 100

9. बीज की जीवन क्षमता ( Seed longevity ) : उत्तम बीज में जीवित भ्रूण होना चाहिए जिसमें अंकुरण क्षमता होती है । बीज में उपस्थित भ्रूण विभिन्न कारणों से क्षतिग्रस्त हो जाता है तो उसकी जीवन क्षमता नष्ट हो जाती है । बीज के कट जाने , गल जाने , रोग के प्रभाव या भण्डारण के दोषों के कारण भ्रूण की जीवन क्षमता नष्ट हो सकती है । अतः बीज को बोने से पहले प्रयोग द्वारा उसकी जीवन क्षमता ज्ञात करना लाभदायक रहता है ।

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