भारत में जैविक खेती का भविष्य
भारत में सन् 1993 में कृषि मंत्रालय द्वारा गठित तकनीकी समिति ने पहली बार सैद्धान्तिक रूप से यह अनुमोदित किया कि भारत में रासायनिक पदार्थों के खेती में अधिक उपयोग को हतोत्साहित करना चाहिए तथा कमबद्ध तरीके से इनका उपयोग कम किया जाना चाहिए तथा जैविक कृषि के सिद्धान्तों को लागू करना चाहिए । अप्रैल , 2000 में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय , भात सरकार द्वारा राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम की शुरूआत की गई । सरकार द्वारा 1 जुलाई , 2001 से ऑर्गेनिक प्रोडक्ट प्रमाणीकरण के लिए चार संस्थाओं , स्पाइस बोर्ड , टी बोर्ड , कॉफी बोर्ड एवं एपीडा को अधिकृत एजेन्सी बनाया गया । दसवीं पंचवर्षीय योजना के तहत भारत सरकार ने जैविक खेती को राष्ट्रीय प्राथमिकता क्षेत्र घोषित किया । वर्ष 2004 में राष्ट्रीय जैविक खेती केन्द्र , गाजियाबाद ( उत्तरप्रदेश ) में स्थापित किया गया । 18 जनवरी , 2016 को सिक्किम को देश का प्रथम जैविक राज्य घोषित किया गया । राष्ट्रीय टिकाऊ कृषि मिशन ( NMSA ) . परम्परागत कृषि विकास योजना ( PKVY ) , राष्ट्रीय कृषि विकास योजना ( RKVY ) , एकीकृतबागवानी विकास मिशन ( MIDH ) , राष्ट्रीय तिलहन बीज एवं ऑयल पाम मिशन ( NMOOP ) तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के जैविक खेती नेटवर्क परियोजना के माध्यम से जैविक खेती को विभिन्न अनुसंधान एवं विस्तार कार्यक्रमों का क्रियान्वयन किया जा रहा है ।
वर्तमान में जैविक खेती विश्व के लगभग 179 देशों में 509 लाख हैक्टर भूमि पर 24 लाख कृषकों द्वारा की जा रही है ( FiBL & IFOAM Year Book 2017 ) । जैविक खेती का विस्तार हो रहा है । वर्ष 2015-16 में भारत में जैविक खेती के अंतर्गत कुल 57.1 लाख हेक्टेयर प्रमाणित क्षेत्र था । जिसमें से 42.2 लाख हेक्टेयर वन्य / जंगली और 14.9 लाख हेक्टेयर कर्षित क्षेत्र था । वर्ष 2015-16 में 13.5 लाख टन जैविक उत्पादों का उत्पादन किया गया । मध्यप्रदेश , हिमाचल प्रदेश , राजस्थान , उत्तराखंड , केरल , कर्नाटक , असम , सिक्किम और अन्य उत्तर – पूर्वी राज्य जैविक खेती को अपनाने वाले प्रमुख राज्य हैं । इसमें सोयाबीन , कपास , गन्ना , तिलहन , दलहन , बासमती धान , मसाले , चाय , फल , सूखे फल , सब्जियाँ , कॉफी और उनसे प्राप्त मूल्य संवर्धित उत्पाद शामिल हैं ।
भारत में निम्न कारणों से जैविक खेती की प्रचुर संभावनाएँ हैं –
1. संसाधनों की उपलब्धता – देश की विविध जलवायु , अपार प्राकृतिक सम्पदा , समृद्ध पशुधन , उपभोक्ता बाजार , रासायनिक उर्वरकों के प्रति इकाई क्षेत्र में कम खपत , इत्यादि के कारण देश में जैविक खेती की प्रचुर संभावनाएँ हैं । अन्य देशों की अपेक्षा भारत में श्रम की उपलब्धता सस्ती व आसान होने से भारतीय जैविक उत्पाद विश्व स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्धी सिद्ध हो सकते हैं ।
2. प्रति इकाई क्षेत्र में पेस्टीसाइड एवं उर्वरकों की कम मात्रा का उपयोग – भारत में अधिकतर छोटे और मध्यम श्रेणी के कृषकों के खेतों पर प्रति इकाई क्षेत्रों में रासायनिक उर्वरकों उवं अकार्बनिक पदार्थों की खपत अन्य देशों की तुलना कम है । भारत का वर्ष 2014 में औसत उर्वरक एवं पेस्टीसाइड की खपत कमाश : 128 किग्रा . / हे . तथा 310 ग्राम प्रतिहेक्टेयर था । इसी प्रकार नत्रजन , फॉस्फोरस एवं सूक्ष्म तत्वों पोटाश की पोषक तत्व उपयोग दक्षता 33 , 15 एवं 20 प्रतिशत थी जो कि कम है । साथ ही देश के पहाड़ी व उत्तर – पूर्वी राज्यों में जहाँ उर्वरक उपयोग 25 से 50 किग्रा . प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष है , ऐसे क्षेत्र में कृषकों के खेतों पर जैविक खेती से अधिक फायदा लिया जा सकता है । भारत में आज भी कई गाँवों में कृषक परम्परागत पद्धति से खेती कर रहे हैं जिसमें फसलों के साथ पशुपालन , वानिकी व चरागाह प्रबंधन में सामंजस्य से जीवन यापन कर रहे हैं । ऐसे किसान जैविक खेती के घटकों को अपनाकर बिना रसायनों के खेती कर लाभ ले सकते हैं ।
3. कार्बनिक अवशिष्टों की उपलब्धता – भारत में काफी मात्रा में प्रतिवर्ष कार्बनिक अवशिष्टों का उत्पादन होता है । देश में प्रतिवर्ष उपलब्ध 280 मिलियन टन गोबर , 273 मिलियन टन फसल अवशेष , 6351 मिलियन टन कूड़ा – करकट तथा 22 मिलियन हेक्टेयर में उगाई जाने वाली दलहनी फसलों का उचित उपयोग कर जैविक माध्यम से फसलों की पोषक तत्वों की माँग पूरी की जा सकती है ।
4. निर्यात की संभावना – भारत में विविध जलवायु के कारण गुणवत्तायुक्त फसलें जैसे मसाले , औषधीय एवं संगधीय फसलें , बासमती व अन्य चावल , फल , सब्जियाँ , कपास , चाय , कॉफी , ड्यूरम ( काठिया ) गेहूँ आदि की जैविक खेती की जाकर तथा उनका निर्यात कर विदेशी मुद्रा अर्जित की जा सकती है । इस प्रकार जैविक खेती से प्राकृतिक संसाधन सुरक्षित रख कर देश को स्वावलम्बी बना सकते हैं ।
5. प्रमाणीकरण संस्थाओं की उपलब्धता – जैविक खेती की मुख्य समस्या है जैविक उत्पादों का प्रमाणीकरण । जैविक उत्पादों का विदेशी प्रमाणीकरण संस्थाओं द्वारा प्रमाणीकरण की प्रक्रिया काफी महंगी पड़ती है । परन्तु आज देश में 26 से ज्यादा संस्थाओं को सरकार ने अधिकृत कर जैविक प्रमाणीकरण के कार्य को सुविधाजनक कर दिया है । साथ ही सहभागिता गारण्टी पद्धति से आम किसान भी बहुत कम लागत में जैविक प्रमाणीकरण करवा सकता है ।