मेथी एवं सरसों का मोयला ( Fenugreek and Mustard Aphid ) : लक्षण, क्षति

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मेथी एवं सरसों का मोयला ( Fenugreek and Mustard Aphid )

 

वैज्ञानिक नाम – लाइपेफिस इरिसाइमी ( Lipaphis erysimi )

गण : हेमिप्टेरा

कुल : एफिडिडी

मेथी एवं सरसों का मोयला मुख्यतः उत्तर प्रदेश , मध्य प्रदेश , पंजाब , महाराष्ट्र , बिहार , गुजरात , कर्नाटक तथा राजस्थान में पाया जाता हैं ।

 

लक्षण ( Symptoms ) –

• प्रौढ़ पंखयुक्त तथा पंखहीन दोनों प्रकार के होते हैं ।

• इनका शरीर आकार में छोटा लगभग 1/10 सेमी . लम्बा , कोमल , रंग हरा अथवा हल्का स्लेटी होता हैं ।

• पंख पारदर्शक होते हैं जिनमें से अगली जोड़ी बड़े तथा पिछले छोटे होते हैं ।

• वक्ष के निम्न तल पर तीन जोड़ी टाँगे होती हैं ।

• इनका उदर नौ खण्ड का होता हैं जिसके प्रत्येक खण्ड में मोम ग्रन्थियाँ होती । अंतिम खण्ड के पिछले सिरे पर गुदा ( Anus ) होती है जिससे मल , मधु स्राव के रूप में निकलता हैं ।

क्षति एवं महत्त्व ( Damage and importance ) – यह नवम्बर के अंतिम सप्ताह या दिसम्बर के प्रथम सप्ताह से फसल पर दिखाई देने लगता हैं तथा फरवरी में संख्या अत्यधिक हो जाती हैं । इस कीट के शिशु तथा प्रौढ़ दोनों ही हानि पहुँचाते हैं । ये कीट पौधों की जड़ों को छोड़कर शेष सभी भागों से रस चूसते हैं तथा पौधों पर स्थायी रूप से समूह में चिपके रहते हैं । इनका सबसे अधिक प्रकोप तने के मुलायम भागों तथा फलियों पर होता है । इनके प्रकोप से पौधों की बढ़वार रूक जाती है । पौधें पीले पड़कर सूखने लगते हैं तथा इनमें कम शाखायें लगती हैं । ये कीट अपने शरीर से मधु – स्राव भी निकालते हैं जिसमें काले कवक का आक्रमण भी हो जाता हैं । इस प्रकार से ग्रसित पौधों पर फलियाँ भी कम लगती हैं । इसके साथ ही साथ तेल की मात्रा में भी कमी आ जाती हैं ।

जीवन चक्र ( Life Cycle ) – इस कीट का जीवन चक्र मैदानी तथा पहाड़ी भागों में अलग – अलग प्रकार से चलता हैं । मैदानी क्षेत्रों में मादा कीट अण्डे नहीं देती , बल्कि सीधे शिशुओं को जन्म देती हैं । अतः दो ही अवस्थायें शिशु तथा प्रौढ़ मिलती हैं जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में तीन अवस्थायें – अण्डा , शिशु एवं प्रौढ़ पाई जाती हैं ।

माहू कीट शुरू – शुरू में नवम्बर – दिसम्बर के महीने में सरसों के पौधों पर दिखाई पड़ते हैं इनमें से मादा कीटों की संख्या अधिक होती हैं । मादायें सीधे शिशुओं को जन्म देती हैं । इस क्रिया को अण्डजरायुजता ( Ovoviviparity ) कहते हैं तथा कीटों को अण्डजरायुज ( Ovoviviparous ) अर्थात् जो अण्डा तथा बच्चे दोनों देते हैं , कहते हैं ।

मादा कीट दो प्रकार से शिशुओं को जन्म देती हैं –

1. नर से सम्भोग करने के पश्चात्

2. नर से बगैर सम्भोग किये हुए इस क्रिया को अनिषेकजनन ( Parthenogenesis ) क्रिया कहते हैं ।

इस प्रकार से थोड़े ही समय में इनकी संख्या काफी बढ़ जाती हैं । शिशु 3-7 दिन के अन्दर ही प्रौढ़ कीटों में बदल जाते हैं तथा पुनः बच्चे देना शुरू कर देते हैं किन्तु फरवरी से यह पंखयुक्त होते हैं जिससे एक स्थान से दूसरे स्थान तक उड़कर जा सकें । मैदानों में इनकी कई पीढ़ियाँ मिलती हैं ।

प्रबन्धन ( Management ) –

शस्य प्रबन्धन –

• सरसों की बुवाई जल्दी कर देनी चाहिए ताकि जिस समय नवम्बर , दिसम्बर में कीटों का आक्रमण हो तो पौधे काफी बड़े होकर आक्रमण को सहन कर सकें ।

• प्रतिरोधी किस्में जैसे ए. जी. एच. 1 तथा टाइप 101 बोनी चाहिए ।

जैविक प्रबन्धन –

• माहू कीट के प्राकृतिक शत्रुओं लेडी बर्ड बीटिल ( Coccinella septempunctata ) , एफिड लायन ( Chrysoperla carnea ) इत्यादि को नियंत्रण हेतु उपयोग में लेना चाहिए ।

रासायनिक प्रबन्धन –

• फसल पर कीट का प्रकोप होने पर मैलाथियान 5 प्रतिशत या क्यूनॉलफॉस 5 प्रतिशत धूल दवाओं में से किसी एक का 20-25 किग्रा . प्रति हैक्टेयर की दर से फसल पर भुरकाव करना चाहिए ।

• जहाँ पानी की सुविधा हो , वहाँ कीट प्रकोप होने पर डाइमिथोएट 30 ई.सी. एक लीटर प्रति हैक्टर की दर से या थायोमिथोक्साम 25 डब्लयू . जी . 100 ग्राम या ऐसीफेट 75 एस . पी . 750 ग्राम प्रति हैक्टर की दर से उचित पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करना चाहिए ।

 

गेहूं का तना छेदक (Wheat Stem Borer)

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