यूबैक्टीरिया ( Eubacteria : सत्य जीवाणु ) – जीवाणुओं के सामान्य लक्षण , जीवाणुओं के प्रकार , जीवाणु कोशिका संरचना

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यूबैक्टीरिया ( Eubacteria : सत्य जीवाणु ) 

ये वास्तविक जीवाणु होते हैं । इनकी पहचान कठोर कोशिका भित्ति एवं कशाभ की उपस्थिति ( चल जीवाणु ) द्वारा की जाती है । नील हरित शैवाल को सायनोबैक्टीरिया कहते हैं किन्तु ये अकाशिभिक होते हैं तथा इनमें हरे पादपों की जैसे पर्णहरित ‘ ए ‘ पाया जाता है व ये प्रकाश संश्लेषी स्वपोषी होते हैं । सायनोजीवाणु एककोशिक , कॉलोनियल  अथवा तंतुमय , लवण जलीय , समुद्री अथवा स्थलीय होते हैं । इनकी कॉलोनी प्रायः एक झिल्लीनुमा आवरण से ढकी होती है । उदाहरण – नॉस्टॉक , ऐनाबीना आदि । इनमें उपस्थित हेटेरोसिस्ट वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करते हैं । जबकि रसायन संश्लेषी ( Chemosynthetic ) जीवाणु नाइट्रोजन , नाइट्रेट , नाइट्राइट एवं अमोनिया आदि अकार्बनिक पदार्थों को ऑक्सीकृत कर उनसे मुक्त ऊर्जा का उपयोग A.T.P. उत्पादन के लिए करते हैं । जीवाणु नाइट्रोजन , फॉस्फोरस , आयरन व सल्फर जैसे पोषकों के पुनर्चक्रण में भी अहम् भूमिका निभाते हैं । परपोषी जीवाणु प्रायः अपघटक होते हैं व प्रकृति में अधिकता से पाये जाते हैं । ये मानव जीवन में अनेक लाभदायक व हानिप्रद प्रभाव उत्पन्न करते हैं । ये मानव , पशु व पौधों में रोग भी उत्पन्न करते जीवाणु एककोशिक एवं प्रोकैरियोटिक सूक्ष्मजीव होते हैं । सर्वप्रथम इनको देखने का श्रेय हॉलैण्ड निवासी एण्टोनी वान ल्यूवेनहॉक ( Antonie van Leeuwenhoek ) को दिया जाता है । इन्होंने पुराने रखे हुए जल लार व दांतों के खुरचे हुए मैल में सूक्ष्मदर्शी से विभिन्न प्रकार के छोटे-छोटे जीव देखे जिनको उन्होंने एनिमलक्यूल ( Animalcule ) नाम दिया । इस खोज के लिए इन्हें जीवाणु विज्ञान का जनक ( Father of Bacteriology ) कहते हैं । एहरेनबर्ग ( Ehrenberg ) ने इनको बैक्टीरिया नाम के वंश में रखा । लुई पाश्चर (Louis Pasteur ) ने रोगाणु सिद्धान्त (Germ theory of disease ) दिया । रॉबर्ट कोच ( Robert Koch ) ने एन्थ्रेक्स (Anthrax ) , हैजा ( Cholera ) व क्षय रोग ( Tuberculosis ) का कारण जीवाणुओं को बताया । जे.एल. लीस्टर ( J.L. Leister ) ने कार्बोलिक अम्ल का उपयोग रोगाणुनाशी (Antiseptic )  के रूप में किया |

( 1 ) जीवाणुओं के सामान्य लक्षण (General characters of Bacteria ) – 

  • जीवाणु सर्वव्यापी होते हैं । ये भूमि , मृदा , वायु , जल , भोजन व जन्तु आदि सभी स्थानों पर पाये जाते हैं । मानव की आँत में भी ई . कोलाई नामक जीवाणु मिलते हैं । ये न्यूनतम ( –190 ° C ) से उच्चतम ( 78 °C) तापमान में भी पाये जाते हैं । कुछ जीवाणु तो बर्फ व उबलते जल में भी जीवित रहते हैं । ये हवा में हजारों फीट की ऊँचाई तक व जमीन के नीचे लगभग 16 फीट की गहराई तक पाये जाते हैं । किन्तु वर्षा के जल , आसुत जल , कुएँ के गहरे जल व ज्वालामुखी की राख में नहीं पाये जाते । ये गन्दे स्थानों , कफ , मल पदार्थों , फल , दूध , सब्जी आदि में अधिकता में होते हैं । 
  • ये सरल , एककोशिकीय व प्रोकैरियोटिक प्रकार के सूक्ष्म जीव 
  • इनकी कोशिकाओं के बाहर दृढ़ कोशिका भित्ति होने के कारण इन्हें पादप जगत में रखा गया है ।
  • पोषण की दृष्टि से कुछ स्वपोषी (Autotrophic ) होते हैं व शेष परपोषी (Heterotrophic ) होते हैं जो मृतोपजीवी , परजीवी या सहजीवी के रूप में जीवन व्यतीत करते हैं । 
  • इनमें वास्तविक क्लोरोफिल का अभाव होता है किन्तु प्रकाश संश्लेषी जीवाणुओं में विशेष प्रकार का जीवाणु क्लोरोफिल पाया जाता है। 
  • इनमें केन्द्रक झिल्ली व केन्द्रिक का अभाव होता है किन्तु आनुवंशिक पदार्थ केन्द्र में एकत्रित रहकर केन्द्राभ या केन्द्रकाभ ( Nucleoid ) या आद्य केन्द्रक बनाते हैं । 
  • दृढ़ कोशिका भित्ति म्यूकोपेप्टाइड ( Mucopeptide ) से बनी होती है , इसमें सेलूलोज नहीं होता है । 
  • कोशिका द्रव्य में कोशिकांग (माइटोकोन्ड्रिया ,गॉल्जीकाय , लाइसोसोम , अन्त : प्रद्रव्य जालिका , प्लास्टिड़ आदि ) का अभाव होता है । 
  • इनके DNA में हिस्टोन प्रोटीन नही होते हैं,कोशिका दव्र्य में 70s राइबोसोम बिखरे होते हैं।
  • प्लाज्मा झिली से बने अन्तर्वलन ( infolding ) पर श्वसन एंजाइम्स होते हैं। इन रचनाओं को मिज़ोसोम्स ( mesosomes ) कहते हैं।
  • केन्द्राभ में वलयाकार ( circular ) द्विरजुकि DNA होता है जो एकगुणसूत्र को निरूपित करता है। जीवाणु कोशिका अगुणित ( Haploid ) होती हैं।
  • जीवाणु में कायिक जनन प्रायः द्विखण्डन ( binary fission ),पुटिका निर्माण ( cyst ), मुकुलन( budding ) द्वारा होता है।
  • इनमे अलैंगिग जनन कोनिडिया, चलबीजानु एवं अंत:बीजाणुओ के द्वारा होता है।
  • जीवाणुओ में वास्तविक लैंगिग जनन नही पाया जाता किन्तु कुछ जीवाणुओ में आनुवांशिक ( genetic recombination ) के उदाहरण मिलते हैं। यह संयुग्मन ( conjugation ), पराक्रमन( transduction ) एवं रूपांतरण ( transformation ) द्वारा होता है। 

( 2 ) जीवाणुओं के प्रकार ( Types of Bacteria ) –

इनके प्रकारों को आमाप व आकार आधार पर समझा जा सकता है। 

( अ ) आमाप ( size ) – ये सूक्षम आमाप के होते है। सामान्यतः जीवाणु कोशिका का व्यास 0.2-1.5um होता है तथा लम्बाई 2-10um होती है । सबसे छोटा जीवाणु युबेक्टिरियम ( eubacterium ) , डायालिस्टर न्यूमोसिन्टिस ( Dialister pneumosintes ) होता है जबकि सबसे बड़ा जीवाणु बेगियोटोआ मिराबिलिस ( Beggiatoa mirabilis ) है । 

( ब ) आकार ( Shape ) – जीवाणु निम्नलिखित आकारों के होते हैं-

( क ) गोलाणु या कोकस जीवाणु ( Spherical or Coccus bacteria ) – इस प्रकार के जीवाणु गोलाकार या अण्डाकार होते हैं । प्राय : जीवाणु में यह सबसे छोटे होते हैं तथा इनमें कशमभिकाएँ अनुपस्थित होती हैं । ये निम्न प्रकार के होते हैं –

  • माइक्रोकोकाई ( Micrococci ) – इस प्रकार के जीवाणु सरल होते हैं , जैसे माइक्रोकोस एगीलिस ( Micrococcus agilis ) एवं मा . आरियस ( M. aureus ) |  
  • डिप्लोकोकाई ( Diplococci ) – ये गोलाणु जोड़ी ( pair ) में रहते हैं , उदाहरण – डिप्लोकोकस निमोनी ( Diplococcus pneumoniae ) । 
  • टेट्राकोकस ( Tetracoccus ) – ये गोलाणु चार – चार के समूहों में होते हैं , उदाहरण – माइक्रोकोकस टेट्राजिनस ( Micrococcus tetragenus ) एवं नाइसिरिया ( Neisseria ) । 
  • स्ट्रेप्टोकोकाई ( Streptococci ) – यह गोलाणु एक – दूसरे से जुड़कर लम्बी श्रृंखला या जंजीर सी बनाते हैं , उदाहरण स्ट्रेप्टोकोकस लेक्टिस ( Streptococcus lactis ) । 
  • स्टेफाइलोकोकाई ( Staphylococci ) – गोलाणुओं की कोशिकायें झुण्ड या अंगूर के गुच्छे के समान रचना बनाती हैं , उदाहरण – स्टेफाइलोकोकस ऑरियस (Staphylococcus  aureus ) ।
  • सारसिनि ( Sarcinae ) – इसमें 8 से 64 गोलाणु कोशिकायें घनाकार ( cuboid ) के रूप में व्यवस्थित होती हैं , उदाहरण सारसिनि ल्यूटिया ( Sarcinae lutea ) ।

( ख ) बेसिलस या छड़ाकार जीवाणु ( Bacillus or Rod shaped bacteria ) – इन जीवाणुओं की आकृति छड़ या दण्डाणु के समान होती है । इनके सिरे गोल , चपटे या नुकीले होते हैं । ये कशाभियुक्त ( flagellated ) या अकशाभिकीय ( non – facilitated ) होते हैं । ये निम्न प्रकार के होते हैं –

  • एकल दण्डाणु या मोनोबेसिलस ( Mono Bacillus ) – एक छड़ाकार जीवाणु कोशिका जो एकल रूप में पाये जाते हैं , उदाहरण – बेसिलस ( Bacillus ) ।
  • डिप्लोबेसिलस ( Diplobacillus ) – जब दण्डाणु दो के समूह या युग्म ( pair ) के रूप में मिलते हैं , उदाहरण- डिप्लोबेसिलस निमोनी ( Diplobacillus pneumoniae ) ।
  • स्ट्रेप्टोबेसिलस ( Streptobacillus ) – जब बेसीलस जीवाणु श्रृंखला ( chain ) में पाये जाते हैं , उदाहरण – बेसिलस ट्यूबरकुलोसिस ( Bacillus – tuberculosis)।

 

( ग ) सर्पिलाकृत या कुंडलित जीवाणु ( Spiral or helical bacteria ) – इन जीवाणुओं की आकृति सर्पिल या कुंडलित होती है , इन्हें स्पाइरिलम ( spirillum ) भी कहा जाता है । ये प्रायः एकल कोशिकीय स्वतंत्र इकाइयों के रूप में पाये जाते हैं । ये कशाभिकायुक्त होते हैं । उदाहरण – स्पाइरिलम माइनस ( Spirillum minus ) , स्पा . बोलूटेन्स ( S. volutans ) । 

( घ )विब्रियो या कोमा ( vibrio or koma) – ये जीवाणु कोमा या छोटी घुमावदार आकृति के होते हैं , इनके सिरे पर कशाभिका उपस्थित होती है , उदाहरण – विब्रियो कोलेराई ( Vibrio cholerae ) ।

( च ) तन्तुमय ( Filamentous ) – ये जीवाणु मूलत : के होते हैं , जो लम्बी श्रृंखला के रूप में वृद्धि करते हैं एवं नलिकाकार आवरण से ढके होते हैं । ये जीवाणु आवरण में ही विभक्त होते हैं , उदाहरण – लेप्टोथ्रिक्स ( Leptothrix ) , क्लेडोथ्रिक्स ( Cladothrix ) एवं बेगिटोआ ( Beggiatoa ) आदि । इस प्रकार के जीवाणु प्राय : लौहयुक्त जल में पाये जाते हैं । 

( छ ) बहुरूपी जीवाणु ( Pleomorphic )- कुछ जीवाणु बदलते हुए वातावरण केअनुसार अपनी आकृति व आमाप को  परिवर्तित करते हैं ,अत: इन अस्थाई परिवर्तनों के फलस्वरूप ये जीवाणु एक से अधिक प्रारूपों में पाये जाते हैं , उदाहरण – एसिटोबेक्टर ( Acetobacter ) । 

( 3 ) जीवाणु कोशिका संरचना ( Bacteria Cell Structure ) –  जीवाणु अति सूक्ष्म होते हैं अतः इनका अध्ययन इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की सहायता से एवं विभिन्न अभिरंजन विधियों का उपयोग कर किया जा सकता है । अध्ययन के आधार पर जीवाणु एक प्रोकैरियोट संरचना होती है । पादप कोशिकाओं के समान जीवाणु कोशिका में भी कोशिका भित्ति , प्लाज्मा झिल्ली एवं जीवद्रव्य होता है । इनके अतिरिक्त कुछ अन्य संरचनाएँ भी पाई जाती हैं , जैसे अवपंक पर्त या सम्पुटिका , कशाभिकाएँ , पाइलाई इत्यादि । कोशिकाद्रव्य में राइबोसोम , केन्द्रक पदार्थ , प्लाज्मिड़ एवं अन्य संग्रहीत पदार्थ पाये जाते हैं । जीवाणु कोशिका की प्रमुख संरचनाओं का विवरण निम्न प्रकार से हैं – 

(अ ) कोशिका भित्ति तथा कैप्सूल ( Cell wall and Capsule ) – प्रत्येक जीवाणु कोशिका एक कोशिका भित्ति से ढकी होती है , यह भित्ति विशेष प्रकार के रासायनिक पदार्थ जैसे म्यूरेमिक अम्ल तथा डाइएमीनोपिमेलिक अम्ल से बनी होती है , इन्हें पेप्टिडोग्लाइकेन ( Peptidoglycan ) भी कहते हैं । प्रायः जीवाणुओं में कोशिका भित्ति के बाहर जलीय बहुल पदार्थ का एक श्लेष्मीय आवरण होता है जो श्यान प्रकृति ( viscous ) का होता है , इसे स्लाइम पर्त ( slime layer ) कहते हैं । कुछ जीवाणुओं में यह परत अधिक मोटी होती है तब इसे सम्पुटिका या कैप्सूल ( Capsule ) कहते हैं ।

अवपंक पर्त की सहायता से जीवाणु विभिन्न आधारस्तरों से चिपक जाते हैं , प्रतिकूल परिस्थितियों के दौरान जीवाणु इससे पोषण प्राप्त करता है तथा अस्थाई शुष्कता से बचाती है । डेनमार्क के क्रिश्चियन ग्राम ( Christian – Gram ) ने अभिरंजन विधि के द्वारा जीवाणुओं को दो समूहों में विभक्त किया । वे जीवाणु जो ग्राम से अभिरंजित होने के बाद ऐल्होहॉल से धोने के पश्चात् भी अभिरंजित बने रहते हैं , इन्हें धनात्मक ग्राम ग्राही ( Gram positive ) कहते हैं , किन्तु वे जीवाणु जो ऐल्कोहॉल से धोने के बाद रंगहीन हो जाते हैं , उन्हें ग्राम ऋणात्मक ( Gram – negative ) जीवाणु कहते हैं ।

 

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