शस्य विज्ञान ( Agronomy )
परिभाषा ( Definition ) – विज्ञान की वह शाखा जिसमें फसल उत्पादन व मृदा प्रबन्धन के सिद्धान्तों तथा क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है शस्य विज्ञान कहलाती है ।
शस्य विज्ञान ( Agronomy ) शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्द एग्रोनोमस ( AGRONOMOS ) हुई है । शब्द दो शब्दों के युग्म से बना है : एग्रोस ( AGROS ) + नोमोस ( NOMOS ) । एग्रोस का अर्थ है भूमि ( Field ) तथा नोमोस का अर्थ है प्रबन्धन । विज्ञान की इस शाखा में भूमि प्रबन्धन के साथ – साथ फसल उत्पादन भी आधुनिक व श्रेष्ठ विधियों का संयोजन है । अतः व्यापकता में यह कहना उचित होगा कि शस्य विज्ञान भूमि प्रबन्धन व फसलोत्पादन के सिद्धान्तों का अध्ययन करने वाली विज्ञान की महत्त्वपूर्ण शाखा है ।
महत्त्व व कार्य क्षेत्र ( Importance and Scope ) –
शस्य विज्ञान को कला , विज्ञान व व्यवसाय के रूप में जाना जाता है । कृषि सम्पूर्ण जनसंख्या के जीवन का आधार है । भारतवर्ष में जनसंख्या का एक बड़ा भाग सीधे – सीधे कृषि व्यवसाय से जुड़ा है जिसमें फसलोत्पादन प्रमुख है । कृषि विज्ञान में शस्य विज्ञान का सबसे अधिक महत्वपूर्ण स्थान है , क्योंकि खेत में उगायी जाने वाली सभी प्रकार की फसलों के उत्पादन का विज्ञान शस्य विज्ञान है ।
शस्य विज्ञान की आवश्यकता निम्न क्षेत्रों में है : –
1. कृषि उत्पादन में
2. नियोजन में
3. व्यवसाय में
4. उद्योग में ।
1. कृषि उत्पादन में : फसलोत्पादन कृषि का सबसे महत्वपूर्ण अंग है । किसी भी राष्ट्र की प्रगति का प्रथम सूचक है वहाँ का खाद्यान्न उत्पादन , उत्पादकता एवं खाद्य सुरक्षा विभिन्न फसलों की खेती में शस्य क्रियाओं का योगदान सर्वाधिक महत्वपूर्ण है । खेत की तैयारी , उन्नत किस्मों का चुनाव , बुआई , पोषक तत्व प्रबन्धन , खरपतवार प्रबन्धन , सिंचाई प्रबन्धन , पौध कटाई , गहाई व भण्डारण जैसे महत्वपूर्ण कार्यों का सम्पादन उचित तरीके से करना शस्य विज्ञान की सीमा में आते हैं । दूसरे शब्दों में उचित शस्य प्रबन्धन ही फसलोत्पादन का आधार है । अनेकों प्रयोगों के सारांश को संजोते हुए प्रत्येक फसल की क्षेत्रवार अथवा जलवायु के अनुसार उन्नत कृषि विधियाँ ( Improved package of practices ) तैयार कर फसलोत्पादन को वैज्ञानिक आयाम दिया गया है । राष्ट्र की बढ़ती जनसंख्या के अनुरूप खाद्यान्न उत्पादित करके ही खाद्य सुरक्षा का लक्ष्य साधा जा सकता है । अविकसित देशों में किसान फसल जीवन निर्वाह के लिए उगाते हैं- वे अपनी दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु या भोजन के लिए अन्न प्राप्त करने के लिए खेती करते हैं । जबकि विकासशील देशों में कुछ किसान अधिकतम मुनाफे के उद्देश्य से तथा कुछ किसान जीवन निर्वाह के लिए फसल उत्पादन करते हैं ।
2. नियोजन में : हमारे राष्ट्र में वर्तमान में अनेक कृषि विश्वविद्यालय कृषि शिक्षा , शोध व प्रसार में रत है । यहाँ से जिस मानव संसाधन को विकसित किया जा रहा है उन्हें अनेक प्रकार के रोजगार के अवसर प्राप्त होते हैं , जैसे कि –
( i ) कृषि में शिक्षण , अनुसंधान या प्रसार कार्य हेतु
( ii ) बैंक में कृषि सलाहकार / कृषि अधिकारी हेतु
( iii ) उर्वरक कम्पनियों में जैसे इफको , कृभको आदि में शस्य विज्ञान हेतु
( iv ) नींदानाशी रसायन बनाने वाली कम्पनियों में
( v ) पौध वृद्धि हेतु हारमोन्स , ऑक्सीजन , या कृषि में काम आने वाले पदार्थ / रसायन बनाने वाली कम्पनियों में ।
3. व्यवसाय में : एक कृषि स्नातक जिसे शस्य विज्ञान की सिद्धि प्राप्त है , कृषि जनित व्यवसाय में एक सफल व्यक्तित्व साबित हो सकता है । कृषि से जुड़े कुछ व्यवसाय जहाँ शस्य विज्ञान अहम योगदान देता है , निम्नानुसार है –
( i ) एग्रो इण्डस्ट्रीज
( ii ) खाद , बीज एवं कृषि दवाओं , यंत्रों आदि का व्यापार
( iii ) कृषि पैदावार का लेनदेन का व्यापार
4. उद्योग में : भारत की अर्थव्यवस्था के तीन स्तम्भ हैं- कृषि , व्यापार व उद्योग । ऐसे कई उद्योग हैं जिनमें कच्चे माल की आपूर्ति कृषि उत्पादन से ही सम्भव है । अन्य शब्दों में शस्य विज्ञान ज्ञान पर आधारित फसलोत्पादन उद्योग जगत का पूरक है । ऐसे कुछ उद्योग निम्नानुसार हैं
( अ ) विभिन्न उद्योगों के लिए कच्चे माल की पूर्ति हेतु फसलें उगाकर जैसे –
( i ) डेयरी उद्योग के लिए – चारे की फसलें
( ii ) गुड़ , शक्कर , उद्योग के लिए – गन्ना , चुकन्दर की फसलें
( iii ) वस्त्र उद्योग के लिए – कपास की फसल
( iv ) बीड़ी , सिगरेट उद्योग के लिए – तम्बाकू की फसल
( v ) दवा उद्योग के लिए – औषधीय पौधे उगाकर
( vi ) मसाला उद्योग के लिए – जीरा , धनिया , हल्दी , मिर्च , अजवायन आदि फसलें ।
( ब ) फसल उत्पादन में प्रयोग किये जाने वाले साधनों के लिए नये उद्योग –
( i ) खाद – उर्वरक उद्योग
( ii ) बीज उत्पादन उद्योग
( iii ) पौध संरक्षण रसायन उद्योग
( iv ) पौध वृद्धि कारक रसायन उद्योग
( v ) नींदानाशी रसायन उद्योग
( vi ) सिंचाई के साधनों / यंत्र निर्माण उद्योग
( vii ) कृषि में प्रयोग होने वाले यंत्र , औजार आदि के उद्योग