संकरण द्वारा प्रजनन की विधियाँ ( Methods of Breeding by Hybridization )
1. वंशावली विधि ( Pedigree Method ) : वंशावली विधि में F1 तथा बाद की पीढ़ियों में एकल पौधों का चयन किया जाता है तथा उनकी संततियों को अलग – अलग संतति कतारों में उगाया जाता है । सभी चयन किये गए पौधों के जनक एवं पूर्वज पौधों का रिकार्ड रखा जाता है , जिसे वंशावली रिकार्ड कहते हैं ।
वंशावली विधि की प्रक्रिया ( Procedure of Pedigree Method ) –

2. पुंज विधि ( Bulk Method ) : इस विधि का सर्वप्रथम प्रयोग निल्सन एहल ( Nilsson Ehle ) ने 1908 में किया था । इस विधि में विसंयोजी पीढ़ियाँ पुंज में उगायी जाती है | F2 पीढ़ी या बाद की किसी पीढ़ी में उन्नत पौधों का चयन करके पादप संततियाँ उगायी जाती हैं और उनका मूल्यांकन किया जाता है ।
पुंज विधि की प्रक्रिया ( Procedure of Bulk Method ) –

3. प्रतीप संकरण विधि ( Back Cross Method ) : इस विधि में F1 तथा बाद की पीढ़ियों का सम्बन्धित F1 के एक जनक से प्रतीप संकरण किया जाता है । परिणामस्वरूप नई किस्म का जीनप्रारूप प्रतीप संकरण के लिए उपयोग किये गये जनक के लगभग समान होता है । प्रतीप संकरण के लिये उपयोग किये जाने वाले जनक को आवर्ती जनक कहते हैं तथा दूसरे जनक को अनावर्ती जनक कहते है ।
प्रतीप संकरण विधि की प्रक्रिया ( Procedure of Back Cross Method ) –

प्रतीप संकरण विधि के गुण ( Merits of Back Cross Method ) : इस विधि के निम्नलिखित गुण होते है –
i. यह विधि सुगम , सस्ती तथा वैज्ञानिक है ।
ii. नई प्रभेद में किसी प्रकार के कृषि कार्य का परीक्षण करने की आवश्यकता नहीं होती है ।
iii. नई प्रभेद को किसान तुरन्त ग्रहण कर लेते हैं क्योंकि वे उसके जानकारी में होती हैं ।
iv. इस विधि में हर पीढ़ी में केवल 10-100 पौधे उगाने पड़ते हैं ।
प्रतीप संकरण के दोष ( Demerits of Back Cross Method ) : इस विधि के निम्नलिखित दोष होते है –
i. इसमें प्रभेद आवर्ती जनक से अच्छी नहीं हो सकती हैं क्योंकि इसमें अतिक्रामी विविधता का लाभ नहीं उठाया जा सकता है ।
ii. यदि कई लक्षणों का स्थानान्तरण करना हो तो बहुत कठिनाई होती है ।
4. बहुसंकरण विधि ( Multiple Cross Method ) : विभिन्न उद्भव वाले दो से अधिक पौधों से किसी एक लक्षण की दृष्टि से संकरण करने को बहु- संकरण कहते हैं । बहु – संकरण उस समय किये जाते हैं जब कुछ ऐच्छिक लक्षण कई प्रभेदों में बिखरे हुए होते हैं और इन सभी प्रभेदों से सभी ऐच्छिक लक्षणों को एक ही प्रभेद में लाना आवश्यक होता है ।