संकरण ( Hybridization )
परिभाषा ( Definition ) : दो भिन्न जीनप्रारूपों वाले पौधों में से एक विभेद के परागकणों से दूसरे विभेद के पुष्पों का परागण करने तथा इन परागणों से संतति प्राप्त करने को संकरण ( Hybridization ) कहते हैं ।
संकरण शस्य सुधार की सबसे अच्छी आधुनिक तथा वैज्ञानिक विधि है यद्यपि संकरण की क्रिया का ज्ञान प्राचीन काल से ही था , परन्तु फसलों में सुधार करने के उद्देश्य से इसका प्रयोग 1900 ईस्वी में मेंडल के आनुवांशिकता के नियमों ( Laws of inheritance ) के पुनः अन्वेषण के बाद ही किया जाने लगा था ।
संकरण के उद्देश्य ( Objectives of Hybridization ) –
संकरण का निम्नलिखित में से कोई एक उद्देश्य हो सकता हैं –
1. संकर बीज उत्पादन ( Hybrid Seed Production )
2. आनुवांशिक विविधता का उत्पादन ( Creation of Genetic Variation )
संकरण के प्रकार ( Types of Hybridization ) –
संकरण को निम्नलिखित दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता हैं –
1. अंतर प्रभेदी संकरण ( Inter Varietal Hybridization ) : इस प्रकार के संकरणों में एक ही जाति की विभिन्न किस्मों में संकरण किया जाता है । पादप प्रजनन में अन्तर प्रभेदीय संकरण का ही सर्वाधिक उपयोग किया जाता है ।
2. दूरस्थ संकरण ( Distant Hybridization ) : जब दो भिन्न प्रजातियों में संकरण किया जाता है तो उसे अन्तरजातीय संकरण कहते हैं । ये दोनों प्रजाति एक ही जीनस ( Genus ) या अलग – अलग जीनस की हो सकती है । इसे दूरस्थ संकरण ( Distant Hybridization ) या विस्तृत संकरण ( Wide Cross ) भी कहते हैं ।
संकरण की विधि ( Technique of Hybridization ) – पादप प्रजनन के लिए संकरण की क्रिया को निम्नलिखित सात भिन्न चरणों में बाँटा जा सकता है –
1. जनकों का चयन ( Selection of Parents ) : जनकों का चयन मुख्य रूप से संकरण के उद्देश्य पर निर्भर होता है । जिन लक्षणों में सुधार की योजना है , उनका एक जनक में समुचित परिमाण में उपस्थित होना अनिवार्य होता है ।
2. जनकों का मूल्यांकन ( Evaluation of Parents ) : यदि सम्बन्धित क्षेत्र में एक या अधिक जनकों का निष्पादन ज्ञात नहीं हो , तो उन्हें एक दो वर्षों तक उस क्षेत्र में उगाना चाहिए ।
3. विपुंसन ( Emasculation ) : परागकणों के परिपक्व होने के पहले परागकोषों या पुंकेसर को , स्त्रीकेसर को बिना क्षति पहुँचाए , किसी पुष्प से निकाल देना या परागकणों को निर्जीव कर देना विपुंसन कहलाता है ।
4. थैली लगाना ( Bagging ) : अवांछित परागण से बचाने के लिए विपुंसन के बाद पुष्पक्रम अथवा पुष्पों को बटर पेपर , पोलीथीन आदि उचित आकार की थैली में बन्द कर दिया जाता है ।
5. टैग लगाना ( Tagging ) : विपुंसित पुष्पों में कागज का एक टैग बाँध दिया जाता है । टैग पर कार्बन पेन्सिल से निम्नलिखित सूचना नोट की जाती है –
i. विपुंसन की तिथि
ii. परागण की तिथि एवं
iii. मादा तथा नर जनकों के नाम
6. परागण ( Pollination ) : नर जनक के परिपक्व एवं उर्वर परागकणों को एकत्रित करके वर्तिकाग्र ( Stigma ) पर डालने को परागण कहते है ।
7. F1 बीजों को एकत्रित करना व उनका भण्डारण ( Collection of F1 Seeds and their Storage ) : प्रत्येक संकरण से उत्पन्न बीजों को सावधानीपूर्वक अलग – अलग एकत्रित करके कागज के लिफाफे में रखते हैं । भण्डारण के लिए इनमें कोई उपयुक्त कीटनाशी मिलाते हैं ।
संकरण कार्यक्रम की योजना बनाना ( Planning of Hybridization Programme ) : संकरण का मुख्य उद्देश्य नई किस्मों का विकास करना होता है । अतः प्रजनक को यह स्पष्ट निर्णय लेना होता है कि वह किस प्रकार की किस्म का विकास करना चाहता है और इस किस्म में वह किन लक्षणों में सुधार करना चाहता है ।
संकरण द्वारा प्रजनन की विधियाँ ( Methods of Breeding by Hybridization ) : फसलों में प्रायः निम्नलिखित विधियाँ प्रयोग की जाती हैं –
1. वंशावली विधि ( Pedigree Method )
2. पुंज विधि ( Bulk Method )
3. प्रतीप संकरण ( Back Cross Method )
4. बहुसंकरण विधि ( Multiple Cross Method )