सफेद लट ( White Grub ) : लक्षण, क्षति एवं महत्त्व, जीवन चक्र, प्रबन्धन

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सफेद लट ( White Grub )

 

वैज्ञानिक नाम – होलोट्रिकिया कोन्सैन्गुनिया ( Holotrichia consanguinea )

गण : कोलिओप्टेरा

कुल : मेलेलोनथिडी

सफेद लट राष्ट्रीय महत्त्व का एक सर्वव्यापी नाशीकीट हैं । इनको कोकचैफर भृंग ( Cokchafer Beetles ) मई भृंग ( May Beetles ) और जून भृंग ( June Beetles ) भी कहा जाता हैं ।

 

लक्षण ( Symptoms ) –

• प्रौढ़ भृंग का शरीर काले , भूरे रंग का 18 मि.मी. लम्बा व 7 मि.मी. चौड़ा और सिर , वक्ष व उदर में विभक्त होता है ।

• दो जोड़ी पंख जिसमें अग्र पंख मोटे जो विश्रामावस्था में पश्च् जोड़ी को ढ़के रहते हैं ।

• इसकी लट सफेद रंग की होती हैं ।

• इनका सिर भूरा तथा जबड़े मजबूत होते हैं ।

• शिशु लट 10 – 12 मि.मी. लम्बी तथा 2-3 मि.मी. चौड़ी होती हैं ।

• लट का शरीर अंग्रजी के “ सी ” ( C – shaped ) अक्षर के आकार का होता हैं ।

 

पौषक पौधे ( Nutritious plants ) – खरीफ में बोई जानी वाली लगभग सभी फसलें जैसे मूँगफली , बाजरा , मिर्च , ग्वार , मूँग , चँवला , सब्जियाँ , फल –वृक्षों की पौध आदि इससे प्रभावित होती हैं । भृंगों के बेर , खेजड़ी , नीम , गूलर , सैंजना , जामुन , बबूल आदि परपोषी वृक्ष हैं ।

 

क्षति एवं महत्त्व ( Damage and importance ) – सफेद लट एक भूमिगत कीट है तथा इसकी लटें विभिन्न फसलों , सब्जियों और पौधशाला ( Nursery ) के पौधों की जड़ें खाकर क्षति पहुँचाती हैं । शिशु गिडार ( Grub ) सर्वप्रथम सड़े – गले पदार्थ खाती हैं । तत्पश्चात् जड़ें खाना प्रारंभ कर देती हैं । इस तरह जड़ों को क्षति पहुँचाने से पौधे पीले पड़कर धीरे – धीरे सूखने लगते हैं । इस तरह के पौधों को हाथ से खींचने पर आसानी से उखड़ जाते हैं । इस कीट के अधिक प्रकोप की अवस्था में सम्पूर्ण फसल नष्ट हो जाती हैं । झकड़ा जड़ ( Adventitious Root System ) वाली फसलों की अपेक्षा मूसला जड़ ( Tap Root System ) वाली फसलें अधिक प्रभावित होती हैं । यही कारण है कि मूँगफली व मिर्च में बाजरा व ज्वार की अपेक्षा अधिक नुकसान होता हैं । सफेट लट विभिन्न फसलों को 20 से 100 प्रतिशत तक हानि पहुँचा देती हैं । फसलों को सर्वाधिक क्षति लट की तृतीय अवस्था द्वारा अगस्त माह में पहुँचाई जाती हैं । इस अवधि में लटें पूर्ण विकसित हो जाती हैं । लट की भाँति भृंग भी बहुभक्षी ( Polyphagous ) होते है । फल वृक्षों में बेर इस कीट के भृंगों का सर्वप्रिय पोषी पौधा हैं ।

 

जीवन चक्र ( Life Cycle ) – मानसून या उससे पूर्व ( मध्य मई या इसके आस – पास ) की प्रथम भारी वर्षा ( 20-25 मि.मि. ) के पश्चात् इस कीट के प्रौढ़ भृंग रात्रि में लगभग 7:30 बजे भूमि से बाहर आकर पोषी पौधों पर एकत्रित होते हैं । मध्य मई से पूर्व किसी भी बरसात में ये भूमि से बाहर नहीं आते हैं क्योंकि उस समय लैंगिक ( Sexually ) दृष्टि से परिपक्व नहीं होते हैं । सबसे पहले भूमि से मादा भृंग निकलकर नर भृंग को मैथुन के लिये अपनी ओर आकर्षित करती हैं । मादा भृंग 2 से 3 दिन में मिट्टी में 10-15 से . मी . की गहराई में अण्डे दे देती हैं । एक मादा अपने जीवन काल में 50 से 60 अण्डे देती हैं । मादा भृंग 30 से 50 दिन तक जीवित रहता हैं । अण्डों का ऊष्मायन काल 7 से 13 दिन का होता है । लटें जुलाई से मध्य अक्टूबर तक सक्रिय रहती हैं तथा इसके पश्चात् भूमि में 40 से 70 से.मी. की गहराई में उपयुक्त नम क्षेत्र में कोशित में परिवर्तित हो जाती हैं । लटकाल 82 से 113 दिन का होता हैं । कोशितकाल 2 से 3 सप्ताह का होता है , इसके पश्चात् यह भृंग में परिवर्तित हो जाते हैं । यह भृंग भूमि में लगभग एक मीटर गहराई में मध्य मई तक सुषुप्तावस्था में जीवन व्यतीत करते हैं । कीट का सम्पूर्ण जीवन चक्र 129 से 150 दिनों में पूरा हो जाता हैं तथा वर्ष में एक पीढ़ी ही होती हैं ।

 

प्रबन्धन ( Management ) –

शस्य प्रबन्धन –

• बरसात के मौसम की पहली अच्छी वर्षा के तुरन्त बाद रात्रि में प्रकाश पाश व फीरोमोन पाश एवं परपोषी पौधों की शाखाओं पर एकत्रित हुए , भृंगों को एकत्रित कर नष्ट कर देना चाहिये । यह कार्य 8:30 सायं से 11:30 बजे तक रात्रि में करना चाहिए । यह कार्यक्रम 7-8 दिन तक नियमित रूप से करना चाहिए । इस कार्यक्रम को सभी पड़ोसी किसानों को मिलकर अभियान के रूप में करना लाभप्रद रहता है । कीटों को अण्डे दिये जाने से पूर्व एकत्रित कर नष्ट करना बहुत प्रभावी रहता हैं ।

रासायनिक प्रबन्धन –

• मूंगफली की बुवाई करते समय 80 किलो बीज को 2 लीटर क्लोरपायरीफॉस 20 ई.सी. या क्यूनॉलफॉस 25 ई.सी. कीटनाशी से उपचारित कर बुवाई करनी चाहिए ।

• वर्षा ऋतु की प्रथम भारी वर्षा के बाद उसी दिन खेतों में मौजूद बेर , खेजड़ी , नीम , सैंजना इत्यादि वृक्षों पर 1.25 मि.ली. मोनोक्रोटोफॉस प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए । इस तरह रात में कीटनाशकों से उपचारित वृक्षों की पत्तियों को खाकर भृंग मर जायेंगे ।

• फसलों में लटों के प्रकोप की रोकथाम के लिये क्यूनॉलफॉस 5 प्रतिशत कण या कार्बोफ्यूरान 3 प्रतिशत कण 20-25 किलो प्रति हैक्टेयर की दर से बुवाई से पूर्व कतारों में ऊर देना चाहिए ।

• खड़ी फसल में सफेद लट के नियंत्रण के लिये 4.0 लीटर क्लोरपायरीफॉस 20 ई.सी. प्रति हैक्टेयर की दर से सिंचाई के पानी के साथ देना चाहिए ।

 

कीट विज्ञान ( Entomology )

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