सिंचाई ( Irrigation ) : परिभाषा, उद्देश्य, सिंचाई कब और कितनी करें ?

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सिंचाई ( Irrigation )

 

सिंचाई की परिभाषा ( Definition of Irrigation ) – पौधों की वृद्धि के लिये मृदा में आवश्यक नमी संभरण हेतु में कृत्रिम रूप से पानी देने की क्रिया को सिंचाई कहते हैं ।

 

सिंचाई के उद्देश्य ( Objectives of Irrigation ) –

  1. पौध वृद्धि हेतु मृदा में आवश्यक नमी की पूर्ति हेतु ।

2. फसल को अल्पावधि सूखे से बचा कर उत्पादन सुनिश्चित करने हेतु ।

3. पौध वृद्धि हेतु फसल छत्र ( Crop canopy ) के ऊपर अल्प वायुमण्डल ( Micro atmosphere ) को ठण्डा रख कर उसे पौध वृद्धि के लिये अनुकूल बनाने हेतु ।

4. कर्षण परत ( Plough layer ) को नरम कर उसे कर्षण क्रियाओं हेतु अनुकूल बनाने हेतु ।

5. मृदा में स्थित लवणों के निक्षालण ( Leaching ) करने या उसे तनु ( Dilute ) करने हेतु ।

6. फसलों को पाले ( Frost ) से बचाने हेतु ।

 

फसल में सिंचाई कब करें ( Scheduling of Irrigation ) – फसलों में उपयुक्त समय पर सिंचाई करने के लिए निम्नलिखित आधार अपनाये जा सकते हैं –

1. पौधों के आधार पर ( Based on plants ) –

सिंचाई का समय पौधों में जल की मात्रा या जल विभव मापकर , पौधों में जल की कमी से उत्पन्न लक्षणों को देखकर व पौधों की उचित क्रान्तिक अवस्थाएँ ( Critical stages ) जानकर कर सकते हैं –

( अ ) पौधों की बाह्य स्थिति देखकर : प्रातःकाल एवं दोपहर के समय खेत में जाकर पौधों का अवलोकन करना चाहिए । यदि प्रातःकाल दो तीन दिन तक लगातार पत्तियाँ मुरझाई हुई दिखाई दें तो सिंचाई करना आवश्यक है ।

( ब ) पौधों की पत्तियों में जल मात्रा या जल विभव ( Leaf water potential ) मापकर : पौधों की पत्तियों की स्फीति एवं उनमें वर्तमान जल विभव या जल की मात्रा को सही मापकर सिंचाई करें तो यह विधि सिद्धान्त रूप से सबसे उपयुक्त है ।

( स ) पत्तियों का तापमान मापकर ( Leaf temperature ) : जब मृदा व पौधों में पानी की कमी होने लगती है तो पत्तियों के पर्ण रन्ध्र ( Stomata ) आंशिक व पूर्णतया बन्द हो जाते हैं जिससे वाष्पोत्सर्जन में कमी आती है व पत्तियों का तापमान बढ़ जाता है । इस विधि में इन्फ्रा रेड थर्मामीटर की सहायता से फसल की सतह का तापमान मापकर सिंचाई का निर्धारण करते हैं ।

( द ) फसलों की क्रान्तिक अवस्थाओं ( Critical stages ) के आधार पर : फसलों में कुछ अवस्थाएँ ऐसी होती हैं जिन पर पानी की कमी हो जाये तो पौधों को बहुत क्षति पहुँचती है और उपज काफी कम होती है । पौधों की ऐसी अवस्था को ही सिंचाई के आधार पर क्रान्तिक अवस्था कहते हैं ।

 

( 2 ) मृदा नमी के आधार पर ( Depending on soil moisture ) –

मृदा में उपलब्ध जल की ऊपरी सीमा क्षेत्र क्षमता ( Field capacity ) तथा निचली सीमा स्थाई म्लानि बिन्दु ( Permanent wilting point ) कहलाती है । इन दोनों के मध्य मृदा जल की मात्रा ही पौधों को उपलब्ध होती है । इसे प्राप्य जल ( Available water ) कहते हैं । वाष्पीकरण व वाष्पोर्त्सन के कारण धीरे – धीरे मृदा नमी का ह्रास होता रहता है और अस्थाई म्लानि बिन्दु की अवस्था आने लगती है , जिससे पौधों की वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है , इस अवस्था से पूर्व ही फसल में सिंचाई करना आवश्यक है ।

 

सिंचाई के लिए फसलों की क्रान्तिक अवस्थाएँ ( Critical stages of crops for irrigation ) – 

फसल

क्रान्तिक अवस्थाएँ

गेहूँ

शीर्ष जड़ निकलना ( Crown root initiation ) ,

कल्ले फूटान ( Late tillering ) ,

गाँठ अवस्था ( Late jointing ) ,

बालिया निर्माण ( Ear emergence ) ,

दाने की दूधिया अवस्था ( Milk stage ) ,

दाना पकने की अवस्था ( Dough stage )

जौ

बुवाई के 30 दिन बाद ,

दाने भरते समय

चना , सरसों , अलसी 

फूल आने से पहले ,

फलियां बनते समय

आलू

अंकुरण के समय ,

कन्द बनने का प्रारम्भिक समय

गन्ना

अंकुरण ,

कल्ले निकलते समय ,

बढ़वार के समय

कपास

डोडे वाली शाखायें बनते समय ,

फूल आते समय ,

डोडे बनते समय

तम्बाकू

चुंटाई के समय

मूँगफली

सुइयाँ बनने से मूँगफली बनना शुरू होते तक

धान

कल्ले निकलते समय ,

फूल आने से पहले व फूल आते समय

मक्का

नरमंझरी आते समय ,

भुट्टे बनते समय

 

फसलों में सिंचाई कितनी करें ? ( How much to irrigate ? ) –

फसल उत्पादन में सिंचाई समय का जितना महत्व है उतना ही फसल की आवश्यकतानुसार सिंचाई की मात्रा का भी है । इसलिए किसी फसल में कितनी सिंचाई और एक सिंचाई में कितने जल की मात्रा दी जाये , यह जानना आवश्यक है । किसी फसल के लिए जल की मात्रा की आवश्यकता विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है । इनमें फसल की किस्म , भूमि की किस्म , बुआई का समय , जलवायु आदि प्रमुख हैं । विभिन्न फसलों के लिए सिंचाई की जल माँग अलग – अलग होती है जो पौधों की क्रान्तिक अवस्थाओं के समय सिंचाई पर निर्भर करती है । विभिन्न फसलों में सिंचाई की संख्या व समय तथा जल माँग सारणी में दी गई है –

विभिन्न फसलों की जल माँग ( Water demand of different crops ) –

फसल

जल माँग ( मि.मी. )

धान

900-2500

गेहूँ

450-650

गन्ना

1500-2500

आलू

500-700

मूँगफली

500-700

कपास

700-1300

सोयाबीन

450-700

मक्का

500-800

 

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