माइकोप्लाज्मा : संरचना , सामान्य लक्षण , वर्गीकरण

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माइकोप्लाज्मा प्रोकेरियोटिक , एककोशिकीय सूक्ष्मजीव है । इसमें कोशिका भिति का अभाव होता है तथा बाहरी परत लाइपोप्रोटीनेसियसयुक्त ( Lipoproteinaceous ) , त्रिस्तरी ( tilamellar ) , एकक झिल्ली ( plasma membrane ) की प्लाज्मा झिल्ली ( plasma membrane ) होती है । रासायनिक दृष्टिकोण से झिल्ली में लिपिड ( फास्फोलिपिड ) एवं कोलीस्टीरोल होते हैं । कोशिका भित्ति के अभाव फलस्वरूप हो माइकोप्लाज्मा पर एन्जाइम तथा पैनिसिलिन का प्रभाव नहीं होता है । प्लाज्मा झिल्ली के अन्दर कोशिका द्रव्य भरा होता है जिसमें झिल्ली युक्त कोशिकांगों , केन्द्रक झिल्ली तथा केन्द्रिका ( nucleous ) का अभाव होता है । इसमें कभी – कभी रिक्तिकायें ( vacuoles ) भी पाई जाती हैं तथा 70S के कणिकीय राइबोसोम ( granular ribosome ) व घुलित प्रोटीन ( soluble protein ) पाये जाते हैं । माइकोप्लाज्मा के द्रव्य में एक नग्न वृत्ताकार द्विकुण्डलित रेशेदार डी.एन.ए. ( double helix fibrillar circular D.N.A. ) होता है , अनेक 70S के कणिकीय राइबोसोम , एकल कुंडलित आर.एन.ए. ( single helix R. N.A. ) , रिक्तकायें ( vacuoles ) , वसा , घुलित प्रोटीन ( soluble protein ) , एन्जाइम तथा अन्य उपापचयी पदार्थ पाये जाते हैं।

 

माइकोप्लाज्मा ( Mycoplasma ) –

माइकोप्लाज्मा जीवाणुओं से भी छोटे आमाप ( size ) के जीव होते हैं । यद्यपि इनका उल्लेख पॉश्चर ( Pasteur ) ने पशुओं के प्लूरोनिमोनिया ( borine pleuropneumonia ) रोग में किया था तथा उनके अनुसार यह रोग माइकोप्लाज्मा द्वारा होता है । पॉश्चर इन जीवों को पृथक् ( isolate ) करने में असफल रहे तथा इसी के साथ इनको संवर्धन माध्यम ( culture medium ) में उगा सकने में भी असमर्थ रहे । नोकार्ड एवं रस्का ( Nocard & Ruska , 1888 ) फ्रांसीसी वैज्ञानिकों ने प्लुरोन्यूमोनिया ( Pleuropneumonia ) से ग्रसित पशुओं के प्लूरल द्रव के अध्ययन आधार पर माइकोप्लाज्मा की खोज की और इन्हें संवर्धन माध्यम में उगाने में सफलता प्राप्त की । माइकोप्लाज्मा इस प्रकार के संवर्धन माध्यम में ही उगने में समर्थ थे जिसमें कार्बन की अधिकता होती है । नोकार्ड एवं रस्का ने पहले इन्हें प्लूरो – निमोनिया जैसे जीव ( pleuropneumonia PPLO ) कहा तत्पश्चात् इन्हें माइकोप्लाज्मा कहा।

 

( i ) माइकोप्लाज्मा के सामान्य लक्षण ( General characters of Mycoplasma ) – 

  • माइकोप्लाज्मा सूक्ष्मतम ( smallest ) जीव होते हैं । 
  • माइकोप्लाज्मा एककोशिकीय , अचल ( non – motile ) , प्रोकैरियोटिक ( prokaryotic ) तथा तले हुए अण्डे ( fried egg ) प्रकार की कॉलोनी ( colony ) जैसे प्रदर्शित होते हैं । 
  • ये गोलाभ या अण्डाकार समूह बनाते हैं तथा मिट्टी , वाहित मल ( sewage ) , सड़े – गले पदार्थों व प्राणियों तथा पौधों में पाये जाते हैं । 
  • ये बहुआकृतिक या बहुरूपी ( pleomorphic ) जीव हैं , जो गोलाभ ( spheroid ) , तन्तुल ( filamentous ) , ताराकार ( stellate ) या अनियमित पिण्ड के रूप में पाये जाते हैं । इसी कारण माइकोप्लाज्मा को जीव जगत के जोकर की उपमा दी गई है । वैसे इनकी आकृति संवर्धन माध्यम की प्रकृति पर निर्भर करती है । माइकोप्लाज्मा जैलीसेप्टीकम ( M. gellisepticum ) के कोशिका की आकृति कोका – कोला बोतल ( Coca – Cola bottel ) जैसी होती है ।
  • इन्हें कोशिका के अतिरिक्त स्वतंत्र माध्यम ( Cell free media ) अर्थात् अजैविक संवर्धन माध्यम में उगाया ( संवर्धन = culture ) जा सकता है । यदि संवर्धित माइकोप्लाज्मा को अचानक जल से तनु ( dilute ) में रख दें तो इनकी कोशिकायें फूलकर फट जाती हैं ।
  • माइकोप्लाज्मा परजीवी ( parasitic ) या मृतोपजीवी ( saprophytic ) होते हैं । 
  • इन्हें जीवाणुज फिल्टर ( bacterial filter ) से छानना असम्भव है ( इनका आकार 100 से 500mm तक ) । 
  • इनमें कोशिका भित्ति ( cell wall ) का अभाव होता है और इसकी बाहरी परत त्रिस्तरीय ( triple layered ) लिपोप्रोटीन की एकक झिल्ली ( unit membrane of lipoprotein ) से बनी होती है । 
  • ये ग्राम अभिरंजन ( gram stain ) के प्रति अनुक्रिया प्रदर्शित नहीं करते हैं अतः माइकोप्लाज्मा ग्राम ऋणात्मक ( gram negative ) होते हैं । 
  • माइकोप्लाज्मा में दोनों प्रकार के न्यूक्लिक अम्ल ( लगभग DNA = 4 % तथा RNA = 8 % ) उपस्थित होते हैं । 
  • कोशिकाद्रव्य ( Cytoplasm ) में 70S प्रकार के राइबोसोम मिलते हैं । 
  • इनकी वृद्धि ( growth ) हेतु स्टीरोल की आवश्यकता होती है । इनमें लिपिड्स ( lipids ) कॉलेस्टरोल के रूप में रहते हैं । 
  • एन्जाइम के प्रति संवेदनशील नहीं होते तथा पैनिसिलिन ( penicillin ) , वेनकोमाइसीन ( vancomycin ) , सिफेलोरीडीन ( cephaloridine ) इत्यादि प्रतिजैविकों ( antibiotics ) का कोई प्रभाव नहीं होता है । 
  • इन पर टेट्रासाइक्लीन व क्लोरेम्फनिकोल जैसे प्रतिजैविक ( antibiotics ) का प्रभाव होता है , ये मुख्य रूप से उपापचयी क्रियाओं ( metabolic processes ) को प्रभावित करते हैं ।

           पूर्व में यह माना जाता था कि माइकोप्लाज्मा केवल प्राणियों में ही रोग उत्पन्न करते हैं परन्तु जापानी वैज्ञानिक डोय व इनके सहयोगियों ( DOi et al , 1967 ) ने रोगी पौधों में भी बहुरूपी माइकोप्लाज्मा जैसे जीव ( Mycoplasma like organism = MLO ) बताये । माइकोप्लाज्मा के रोगाणु शीतोष्ण ( temperate ) व उष्णकटिबंधीय ( tropical ) क्षेत्रों में मिलते हैं परन्तु उष्ण क्षेत्रों की फसलों ( कपास , धान , आलू , मक्का ) में अधिक रोग उत्पन्न करते हैं । माइकोप्लाज्मीय रोग से संक्रमित पौधों में ये रोगाणु अर्थात् माइकोप्लाज्मा पादपों के फ्लोयम ( phloem ) तत्त्वों की मुख्य रूप से चालनी नलिकाओं ( sieve tubes ) व फ्लोयम मृदूतक ( phloem parenchyma ) में ही पाये जाते हैं । अध्ययन के आधार पर डोय ( Doi ) ने बताया कि अनुमानतः फ्लोयम का उच्च परासरणीय दाब ( high osmotic pressure ) व क्षारीय ( alkaline PH ) लक्षण माइकोप्लाज्मा की वृद्धि हेतु अनुकूल स्थितियाँ उत्पन्न करती हैं । माइकोप्लाज्मा कीट , जन्तुओं व मानव की लार ग्रन्थियों ( Salivary glands ) में रहते हैं । यही नहीं पुष्पों के मकर ग्रन्थियों ( nectar glands ) , जीर्ण क्लोरोप्लास्ट ( old chloroplast ) में भी माइकोप्लाज्मा की उपस्थिति बताई गई है ।

               

वर्गीकरण (classification) –

  

वर्ग                –        मोलिक्यूट्स

(Class)          –        (mollicutes)

गण                –    माईकोप्लाज्मेटेलीज

(Order)           –    (mycoplasmatales)

कुल          –    माईकोप्लाज्मेटेसी

(Family)            (mycoplasmatacae)

वंश             –        माइकोप्लाज्मा

(Genus)            (Mycoplasma)

 

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